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78 Degree By Arun Kumar Asafal (Paperback)

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78 डिग्री- अरुण कुमार असफल


इक्कीसवीं सदी में जिस प्रकार वैज्ञानिक समुदाय ब्लैकहोल की गुत्थी सुलझाने में लगा हुआ है और इस संबंध में नित नयी धारणाएँ बन रही हैं, उसी प्रकार आज से तीन-चार सौ साल पहले पृथ्वी के आकार की गुत्थी सुलझाने में संसार भर के खगोलशास्त्री, गणितज्ञ और भौतिकशास्त्री लगे हुए थे। नयी धारणाएँ बन रही थीं और पुरानी टूट रही थीं। उन्नत वैज्ञानिक यंत्रों का अभाव था और हम कल्पना कर सकते हैं कि पृथ्वी के आकार को सही-सही ज्ञात करने का कार्य कितना जटिल और कठिन रहा होगा। बीसवीं सदी का मध्य आते-आते अंतरिक्ष में मनुष्यों के हस्तक्षेप से थोड़े ही समय में कृत्रिम उपग्रहों से अंतरिक्ष आच्छादित हो गया। ऐसे में पृथ्वी के वास्तविक स्वरूप को जानना सरल हो गया, लेकिन तीन-चार सौ साल पहले, जब इन कृत्रिम उपग्रहों की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी, तब धरती पर देशांतर और अक्षांश रेखाओं के छोटे-छोटे टुकड़ों अर्थात् चाप को नाप कर पृथ्वी के आकार का अंदाजा उसी तरह लगाया जाता था, जिस तरह से एक लोककथा में कुछ दृष्टिबाधित लोग हाथी के अलग-अलग अंगों को छूकर उसके आकार की कल्पना करते हैं। इस विषय पर सबसे बड़ा वैज्ञानिक अभियान भारतीय भूभाग पर ही संपन्न हुआ। यह दो वैज्ञानिकों विलियम लैंबटन और जॉर्ज एवरेस्ट की ज़िद के कारण हो संभव हो पाया। यह अभियान भूविज्ञान में ग्रेट आर्क के नाम से प्रचलित है, जिसके अंतर्गत कन्याकुमारी और मसूरी होकर गुजरने वाली देशांतर रेखा को नापने का प्रयास किया गया था। इस कार्य में लगभग आधी सदी लगी और यह कहा जाता है कि उतनी ही जानें गयीं जितनी कि उस समय की लड़ाइयों में जाया करती थीं। यह किसी एक देश की धरती पर होने वाला दुनिया का सबसे बड़ा वैज्ञानिक अभियान है। यह किताब उसी कथा को कहती है।

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Description

78 Degree By Arun Kumar Asafal Paperback edition


एवरेस्ट द्वारा सन् 1847 में प्रकाशित पृथ्वी के स्थिरांकों से विश्व में वैज्ञानिक समुदाय द्वारा पृथ्वी के आकार के संबंध में जो शोध हो रहा था उसे काफी बल मिला था। इन्हीं भौगोलिक मानों के आधार पर हिमालय की चोटियों की सही-सही ऊँचाइयाँ ज्ञात करने में आसानी हो गयी थी। सन् 1850 के आसपास जब यह पता चला कि एक चोटी जिसका तब कोई नाम न था और गणना पुस्तिका में उसको ‘पीक-15’ दर्ज किया गया था, विश्व की तमाम चोटियों से सबसे ऊँची है। तब 1 मार्च, 1856 को तत्कालीन महासर्वेक्षक वॉघ को विश्व के सामने इसे जॉर्ज एवरेस्ट के नाम पर माउंट एवरेस्ट रखने में कोई हिचकिचाहट नहीं हुई थी। जॉर्ज एवरेस्ट अब सितारों को छूने लगा था। वास्तव में वह इसी का हकदार भी था।

– इसी पुस्तक से

Additional information

ISBN

9788194240341

Author

Arun Kumar Asafal

Binding

Paperback

Pages

264

Publisher

Setu Prakashan Samuh

Imprint

Setu Prakashan

Language

Hindi

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