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Ghane Andhkar Men Khulti Khidki By Yadvendra

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घने अन्धकार में खुलती खिड़की ईरान के मौजूदा यथार्थ, जो कि काफ़ी डरावना है, की एक जीती-जागती तस्वीर पेश करती है। यादवेन्द्र की यह किताब न कहानी है न उपन्यास, फिर भी यह एक दास्तान है। तनिक भी काल्पनिक नहीं। पूरी तरह प्रामाणिक । सारे किरदार वह सब कुछ बयान करते हैं जो उन्होंने भुगता है और उन सबके अनुभव एक दुख को साझा करते हैं – यह दुख है मज़हबी कट्टरता के आतंक में जीने का दुख। सन् 1979 में ईरान के शाह मुहम्मद रजा पहलवी के ख़िलाफ़ हुई क्रान्ति में जहाँ मज़हबी कट्टरवादी शक्तियाँ सक्रिय थीं, वहीं बहुत से लिबरल और सेकुलर समूह भी शामिल थे। लेकिन उस क्रान्ति के बाद मज़हबी कट्टरवादी ताक़तें सारी सत्ता पर क़ाबिज़ हो गयीं और दिनोदिन अधिकाधिक निरंकुश होती गयीं


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Description

About the Author:

1957 में बिहार में जन्म और शुरुआती शिक्षा इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद रुड़की (उत्तराखण्ड) स्थित एक राष्ट्रीय शोध संस्थान में लगभग अड़तीस साल का प्रोफ़ेशनल वैज्ञानिक जीवन जिसमें प्राकृतिक आपदा न्यूनीकरण और सांस्कृतिक धरोहर संरक्षण की विशेषज्ञता हासिल की। इसके साथ-साथ प्रमुख राष्ट्रीय अख़बारों, पत्रिकाओं में विज्ञान और सामयिक विषयों पर प्रचुर लेखन के बाद साहित्यिक अनुवाद की ओर प्रवृत्त हुए। सभी प्रमुख साहित्यिक पत्रिकाओं में अनुवाद प्रकाशित। जिन पड़ोसी समाजों की ओर हिन्दी साहित्यकारों का ध्यान नहीं गया, उनके सांस्कृतिक- साहित्यिक क्रियाकलापों में विशेष रुचि यायावरी, सिनेमा और फ़ोटोग्राफ़ी का शौक़ । प्रकाशित कृतियाँ : तंग गलियों से भी दिखता है आकाश (2018), स्याही की गमक (2019), कविता का विश्व रंग : युद्धोत्तर विश्व कविता के प्रतिनिधि स्वर (2019), कविता का विश्व रंग : समकालीन विश्व कविता के प्रतिनिधि स्वर (2019), जगमगाते जुगनुओं की जोत (2022) और क़िस्सा मेडिसन काउण्टी के पुलों का (2022)। पटना में निवास ।

Additional information

ISBN

9789392228056

Author

YADVENDRA

Binding

Hardcover

Pages

448

Publication date

25-02-2023

Imprint

Setu Prakashan

Language

Hindi

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