Description
Jungle Pati Pati By Madhukar Upadhyay
बेरियर एल्विन
(29 अगस्त 1902-22 फरवरी 1964) को मानविकी के क्षेत्र में उनके काम के लिए दुनिया भर में जाना जाता है। ब्रिटिश मूल के एल्विन एक पादरी के रूप में भारत आए थे, लेकिन यहाँ उनकी जीवन धारा बदल गयी। यहाँ चर्च से उनका टकराव हुआ, और दूसरी तरफ वह न सिर्फ महात्मा गांधी, सरदार वल्लभभाई पटेल, जमनालाल बजाज व ठक्कर चापा आदि के निकट संपर्क में आए बल्कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम के कायल व हमदर्द भी हो गए। संभवतः आदिवासियों के बीच काम करने के उनके निश्चय के पीछे ठक्कर बापा की सलाह थी। बहरहाल, एल्विन ने न सिर्फ मिशनरी जीवन को अलविदा कह दिया बल्कि 1935 में ईसाई धर्म छोड़कर हिन्दू धर्म अपना लिया। उन्होंने विवाह भी एक आदिवासी लड़की से किया। मप्र में अमरकंटक के पास करंजिया में आश्रम बनाकर वह लम्बे समय तक रहे। गोंड सेवा मंडल की स्थापना और उसके माध्यम से आदिवासियों के बीच सेवा और समाज सुधार के काम में उनके मित्र व सहयोगी शामराव हिवाले की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। वेरियर एल्विन मध्यप्रदेश और ओड़िशा की बैगा और गोंड जनजातियों के बारे में अपने जमीनी अध्ययन की बदौलत आदिवासियों की परंपरा, जीवन शैली और संस्कृति के अधिकारी विद्वान माने गये। उनकी आत्मकथा ‘द ट्राइबल वर्ल्ड आफ वेरियर एल्विन’ को खासी प्रसिद्धि मिली, 1965 में इसे साहित्य अकादेमी का अँग्रेजी भाषावर्ग का पुरस्कार मिला। सन् 1945 में भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण विभाग स्थापित हुआ तो एल्विन इसके उपनिदेशक बनाये गये। भारत के आजाद होने के बाद उन्होंने यहीं की नागरिकता ले ली। उन्होंने अरुणाचल प्रदेश, जो तब नेफा कहा जाता था, की जनजातियों के बारे में भी जमीनी अध्ययन किया। उनके काम और अनुभव को देखते हुए प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें पूर्वोत्तर का आदिवासी मामलों का सलाहकार बनाया था। 1961 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया। प्रस्तुत पुस्तक एल्विन की डायरी ‘लीव्स फ्राम द जंगल’ का अनुवाद है।
शामराव हिवाले
नृतत्त्वशास्त्री वेरियर एल्विन के अनन्य सहयोगी थे। आदिवासियों के बीच सेवा और सुधार के कामों में भी और जमीनी शोध कार्य में भी। दोनों लगभग हमउम्र थे; एल्विन से महज कुछ महीने छोटे थे शामराव। अमरकंटक के पास एक आदिवासी गाँव का एल्विन का अनुभव प्रस्तुत पुस्तक का आधार है। वहाँ शामराव भी रहे। उन्होंने एल्विन द्वारा स्थापित गॉड सेवा मण्डल का सारा काम बड़ी लगन और मेहनत से सँभाला, जिसकी बदौलत एल्विन अध्ययन और लेखन तथा यात्राओं के लिए वक्त निकाल पाये। एल्विन की पहली किताब ‘सांग्स आफ द फारेस्ट’ आयी, तो शामराव उसके सहलेखक थे। उन्होंने एल्विन के बारे में भी ‘स्कालर जिप्सी’ नाम से एक किताब लिखी है। प्रस्तुत पुस्तक का भी एक हिस्सा एल्विन की डायरी है, तो एक हिस्सा शामराव की लिखी डायरी। महात्मा गांधी के निकट सहयोगी सी. एफ. एंड्रयूज के जरिये शामराव, एल्विन के सम्पर्क में आए थे और फिर हमेशा के लिए दोस्त और हमसफर बन गये। एल्विन को दुनिया जानती है पर शामराव के काम और शख्सियत के बारे में कम लोग जानते हैं। इस पुस्तक का एक अतिरिक्त महत्त्व शामराव के मद्देनजर भी है।
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मधुकर उपाध्याय का जन्म 1956 में अयोध्या में हुआ। आपातकाल के दौरान उन्होंने वहीं से पढ़ाई के साथ पत्रकारिता शुरू की। दस वर्ष बीबीसी से जुड़े रहे। पीटीआई, भाषा, लोकमत समाचार और आज समाज के सम्पादक रहे। वह जामिया मिलिया इस्लामिया के मास कम्युनिकेशन रिसर्च सेण्टर और इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक में स्कॉलर-इन-रेजीडेंस रहे।
1857 के स्वतंत्रता संग्राम पर उनकी पुस्तकें ‘किस्सा पाण्डे सीताराम’, ‘विष्णुभट्ट की आत्मकथा’ और ‘सितारा गिर पड़ेगा’ खासी चर्चित रही हैं। ‘फिफ्टी डेज टु फ्रीडम’ और ‘पंचलाइन’ उनकी अन्य पुस्तकों में शामिल हैं, जिनका कई भारतीय भाषाओं में अनुवाद हुआ है। मधुकर ने महात्मा गांधी की दाण्डी यात्रा पर ‘धुँधले पदचिह्न’ और दक्षिण अफ्रीका से उनकी वापसी पर ‘एक खामोश डायरी’ पुस्तक लिखी है।
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