Description
Lokayan Ki Samajikta By Dhananjay Singh
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लोकायन में लोक साहित्य की लोकगाथा, लोकगीत, लोक कथा, लोक कहावतें, किस्से, लोकबुझौवल (पहेलियाँ), लोक बालगीत एवं लोक बालखेल, मिथक इत्यादि तो हैं ही। इसके साथ इसमें लोक की वो सब प्रथाएँ, अनुष्ठान एवं लोक सांस्कृतिक व्यवहार एवं परम्पराएँ शामिल हैं, जिनसे लोकायन बनता है। बहुधा वह अपनी जैविकता के साथ समग्रता में प्रस्तुत होता है। कई बार लोकायन वैज्ञानिक और ऐतिहासिक सत्यों पर आधारित न होकर सामूहिक आस्था और विश्वास की गतिकी में चलता है अर्थात् इसका एक भाग सामाजिक संरचना को आधार देता है, दूसरा भाग आस्थाओं और विश्वासों को। यह सामाजिक श्रुति के रूप में जीवित रहता है। इसमें भी दिक्, काल और कार्यकारण सम्बन्ध की अवधारणाएँ अन्तर्निहित होती हैं। इसमें तथ्यों और सूचनाओं का विशाल संग्रह होता है, जिसकी स्मृति एक के बाद अनेक पीढ़ियों और कई कालखण्डों तक जीवित रहती है। यह जातीय स्मृति ही परम्पराओं का मूल स्रोत है।
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WishlistLokayan Ki Samajikta By Dhananjay Singh
Author | Dhananjay Singh |
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Binding | Paperback |
ISBN | 9788119899159 |
Language | Hindi |
Pages | 256 |
Publication date | 10-02-2024 |
Publisher | Setu Prakashan Samuh |
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Unnati Prakash –
लोकायन में लोक साहित्य की विविधता और समृद्धि को श्रेष्ठता के साथ प्रस्तुत किया गया है। यह पुस्तक अद्वितीय है।