Manthar Hoti Prarthana – Sudeep Sohni

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Manthar Hoti Prarthana – Sudeep Sohni
मन्थर होती प्रार्थना – सुदीप सोहनी

सुदीप सोहनी का यह पहला कविता संग्रह मन्थर होती प्रार्थना उस भाव के रचनात्मक संवेदना में रूपायित होते रहने का उपक्रम है।

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    समय गति है, जिससे स्थायी-स्वभाव वाली स्मृति उलझती रहती है। समय और स्मृति के इसी उलझाव- सुलझाव में हमारी पहचान पोशीदा है। अज्ञेय जब कहते हैं कि ‘होना’ और ‘मैं’ दोनों स्मृति में बँधे हैं या ‘स्मरण करना’ ‘होना’ है तो सिलसिला ‘सर्वशास्त्राणं प्रथमं ब्रह्मणां स्मृतम्‌’ तक पहुँचता है। अर्थात्‌ प्राचीनता के साथ नित्य नवीनता तक।
    बहुत सम्भव है चन्द्रकुमार ने इसीलिए स्मृतियों को चुनना पसन्द किया हो। अक्सर/ स्मृतियाँ ही चुनता हूँ/ मैं प्रेमी से ज़्यादा/ कवि बनकर जीता हूँ।

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    स्मृतियों के बीच घिरी है पृथ्वी – गौरव पांडेय

    कविता मनुष्य की प्रारम्भिक अभिव्यक्ति का साधन रही है। यही वजह है कि कविता में प्रकृति से जुड़ाव के साथ-साथ मानवीय मूल्यों की हमेशा अहमियत रही। इसी क्रम में कविता उस प्रतिरोध का व्याकरण रचती हुई दिखाई पड़ती है, जो मनुष्यता के सामने किसी भी तरह का अवरोध खड़ा करती है।

     

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  • Bhasha Mein Nahi By Sapna Bhatt

    सपना भट्ट की कविताओं से गुजरते हुए वाल्टर पीटर होराशियो का यह कथन कि ‘All art constantly aspires towards the condition of music’ बराबर याद आता है। समकालीन कविता में ऐसी संगीतात्मकता बिरले ही दिखाई पड़ती है। यह कविताएँ एक मद्धम सिम्फनी की तरह शुरू होती हैं, अन्तर्निहित संगीत और भाषा का सुन्दर वितान रचती हैं और संगीत की ही तरह कवि मन के अनन्त मौन में तिरोहित हो जाती हैं। पूरे काव्य में ध्वनि, चित्र, संकोच, करुणा, विनय और ठोस सच्चाइयाँ ऐसे विन्यस्त कि कुछ भी अतिरिक्त नहीं। यह कविताएँ ठण्डे पर्वतों और उपत्यकाओं के असीमित एकान्त के बीच से जैसे तैरती हुई हमारी ओर आती हैं। इन सुन्दर कविताओं में कामनाहीन प्रेम की पुकारें, रुदन, वृक्षों से झरती पत्तियाँ और इन सब कुछ पर निरन्तर गिरती बर्फ जैसे अनगिनत विम्ब ऐसे घुले मिले हैं कि चित्र और राग संगीत, एकसाथ कविताओं से पाठक के मन में कब चले आते हैं पता ही नहीं चलता। यह कविताएँ किस पल आपको अपने भीतर लेकर बदल देती हैं यह जानना लगभग असम्भव है।

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