The Polity of Sukranitisara By Nand Kishore Acharya

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The Polity of Sukranitisara By Nand Kishore Acharya

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About Author

Nand Kishore Acharya (born 31 August 1945) is an Indian playwright, poet, and critic who was born in Bikaner, Rajasthan.
His plays, poems criticism, articles on issues of contemporary concerns and on education and his translations have been praised. Ajneya called him the “inimitable bard of the beauty of the desert”.

He has translated many classical as well as modern and contemporary poets including Riocaan, Brodsky and Lorca and the works of M.N. Roy.

Currently a Professor of Eminence at IIIT Hyderabad, Acharya teaches courses on themes as diverse as non-violence and development. He is a life member of Vatsalnidhi Trust. He is also an Assistant Editor in Everyman’s, Co-Editor of Naya Pratik, and Editor of Arumaru, Marudeep and Chiti.

The Sahitya Akademi’s journal Madhumati has published a complete issue (July / August 2000) on him as a person and poet.

SKU: The Polity of Sukranitisara
Category:
ISBN

9788185127064

Author

Nand Kishore Acharya

Binding

Paperback

Pages

216

Publisher

Setu Prakashan Samuh

Imprint

Vagdevi

Language

Hindi

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    यह पुस्तक एक जीवनी है और इस विधा में अपनी विशिष्ट जगह बना चुकी है। समकालीन भारत के सबसे जाने-पहचाने इतिहासकार रामचन्द्र गुहा की लिखी महात्मा गांधी की जीवनी कितनी बार पढ़ी गयी और चर्चित हुई। लेकिन गुहा की कलम से रची गयी पहली जीवनी वेरियर एल्विन (1902- 1964) की थी। यह एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जो ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से पढ़ाई समाप्त करके ईसाई प्रचारक के रूप में भारत आया। फिर यहीं का होकर रह गया। वह धर्म प्रचार छोड़कर गांधी के पीछे चल पड़ता है। उसने भारतीय आदिवासियों के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। वह उन्हीं में विवाह करता है। भारत की नागरिकता लेता है और अपने समर्पित कार्यों की बदौलत भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पण्डित जवाहरलाल नेहरू का विश्वास जीतता है। साथ ही उस विश्वास पर खरा उतरता है।

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    यह संयोग की बात नहीं है कि उर्दू के कुछ जदीद शायरों ने तो हिंदी और उर्दू की दीवार ही ढहाकर रख दी और ऐसे जदीदियों में निदा फ़ाजली का नाम सब से पहले लिया जायेगा।

     शानी


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    नैनसुख

    समान्तर सिनेमा का पुनरावलोकन  (लेखक:सुशोभित)


    1970-80 के दशक में बनायी गयी समान्तर सिनेमा की पिक्चरें ‘कला फ़िल्में’ कहलाती थीं। नसीरुद्दीन शाह, स्मिता पाटिल, शबाना आजमी, ओम पुरी, फारूख शेख, पंकज कपूर, अनन्त नाग, गिरीश कर्नाड आदि के चेहरे नियमित रूप से उनमें नजर आते। उन फ़िल्मों ने दर्शकों की सामाजिक चेतना और कलात्मक रुचियों को जगाया था और फ़िल्म माध्यम से उनकी अपेक्षाओं को उठाया था। यह किताब भारत के उसी समान्तर सिनेमा आन्दोलन के प्रति अनुराग और अतीत-मोह का परिणाम है और उस भूले-बिसरे पैरेलल सिनेमा के प्रति आदरांजलि है। उसकी भावभीनी याद आज भी अनेक फ़िल्म-प्रेमियों के मन में बसी होगी, और यह किताब उसी याद को पुकारती है। किताब की एक विशिष्टता उसमें भारतीय कला- सिनेमा के शलाका-पुरुष मणि कौल की फ़िल्मों पर एकाग्र पूरा खण्ड है। मणि की 12 फ़िल्मों पर लिखी इन टिप्पणियों को उनके रूपवादी-सिनेमा पर एक सुदीर्घ- निबन्ध की तरह भी पढ़ा जा सकता है।


     

     

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    मैं श्री शिन्दे की कुशलता, दीर्घायु जीवन और अच्छे स्वास्थ्य की कामना करती हूँ।
    – सोनिया गांधी

    श्री सुशील कुमार शिन्दे मेरे सम्मानित कैबिनेट सहयोगी और बीते कई वर्षों से मेरे मित्र रहे हैं। मैं भारतीय राजनीति की जटिलताओं के बारे में उनकी राय और गहरी समझ का क़ायल हूँ। इस रोचक वृत्तान्त में वर्णित श्री शिन्दे का जीवन अनेकानेक चुनौतियों के बीच उनकी उपलब्धियों, उनकी उत्कृष्टता और उनके लचीलेपन की एक असाधारण कहानी है।
    – डॉ. मनमोहन सिंह पूर्व प्रधानमन्त्री

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  • Apna Hi Desh – Madan Kashyap

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  • Mozel – Saadat Hassan Manto

    मोज़ेल – मंटो की चयनित कहानियाँ।…
    सआदत हसन मंटो


    कथा संचयन वह बहैसिय्यते-इन्सान एक महबूब शख्सिय्यत का मालिक था और बहैसिय्यते-फ़नकार सदाक़त (सच्चाई) का अलमबरदार था।

    – अहमद नदीम कासमी (पाकिस्तान)

    मण्टो हमारा सब से बड़ा अफ़सानानिगार था। यह मुबालगा (अतिशयोक्ति) नहीं अगर मैं यह कहूँ कि मण्टो हमारा मोपासां है।

    – मुक्ताज शीरीं (पाकिस्तान)

    वह मण्टो उर्दू अदब का अकेला शंकर है जिसने ज़िन्दगी के जहर को खुद घोल कर पिया है और फिर उस के रंग को खोल खोल कर बयान किया है।

    – कृश्नचन्दर

    हक़ीक़त निगारी (यथार्थ वर्णन) तख़य्युल (कल्पना) का बुनियादी अमल है। मण्टो इस मामले में बेमिसाल है।

    – वारिस अल्वी

    मण्टो अव्वल व आख़िर एक बाग़ी था। वह हर शय जिसे DOXA या रूढ़ि कहा जाता है मण्टो उन सब का दुश्मन था।

    – गोपीचन्द नारंग

    मण्टो तो पैदा ही मरने के बाद हुआ। 

    – इस्मत चुरताई


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  • Vaishvik Aatankawad Aur Bharat Ki Asmita By Ram Puniyani

    वैश्विक आतंकवाद और भारत की अस्मिता – राम पुनियानी  (सम्पादक रविकान्त)


    जरूरत इस बात की है कि हम केवल आतंकवाद के लक्षणों को न देखें बल्कि उस रोग का पता लगाने की कोशिश करें, जो आतंकवाद के उदय का मूल कारण है। केवल सुरक्षा व्यवस्था को कड़ा करने से काम नहीं चलेगा क्योंकि अधिकतर आतंकवादी अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अपना जीवन खोने के लिए तत्पर रहते हैं। हमने यह भी देखा है कि कुछ वैश्विक ताकतें आतंकवाद को प्रोत्साहन देती हैं और आतंकी संगठनों की मदद करती हैं। इसलिए यह आवश्यक है कि वैश्विक स्तर पर संयुक्त राष्ट्र संघ को और मजबूत बनाया जाए ताकि यह संगठन उन देशों के विरुद्ध कार्रवाई कर सके जो आतंकवादियों को शरण दे रहे हैं। अपने देश के स्तर पर हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि आतंकी हमलों के सभी दोषियों को बिना किसी भेदभाव के उनके किये की सजा मिले। हमें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि हमारी राजनीति नैतिक मूल्यों पर आधारित हो। जो तत्त्व व शक्तियाँ यह दावा कर रही हैं कि ये किसी धर्म विशेष या धर्म-आधारित राष्ट्रवाद की रक्षक हैं, उन्हें हमें सिरे से खारिज करना होगा। धर्म एक निजी मसला है और उसका राजनीति से घालमेल किसी तरह भी उचित नहीं कहा जा सकता। हमारी राजनीतिक व्यवस्था का आधार स्वतन्त्रता, समानता व बन्धुत्व के मूल्य होने चाहिए। अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर वैश्विक प्रजातन्त्र की स्थापना की जरूरत है जिससे चन्द देश पूरी दुनिया पर अपनी दादागिरी न चला सकें।

    – प्रस्तावना से

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