biography

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  • Adyawadhi : Shambhu Maharaj Ki Jeevani

    शम्भू महाराज की जीवनी “अद्यावधि”

    जोशना बैनर्जी आडवानी 

    रज़ा फ़ाउण्डेशन पिछले कुछ वर्षों से, मुख्यतः हिन्दी में, हमारे समय के साहित्य और कलाओं के कुछ मूर्धन्यों की जीवनियाँ लिखवाने और प्रकाशित करने का एक प्रोजेक्ट चला रहा है। कवि जोशना बैनर्जी आडवानी ने कथक मूर्धन्य शम्भू महाराज की यह जीवनी मनोयोग, अध्यवसाय और अपने कथक प्रशिक्षण का सदुपयोग करते हुए लिखी है। प्रामाणिक सामग्री का, ऐसे प्रकरणों में, अभाव सर्वविदित है पर जीवनीकार ने बहुत सारे लोगों से, उनके संस्मरणों आदि के सहारे जो जीवनी लिखी है वह संयोगवश एक मूर्धन्य कलाकार और गुरु पर पहली प्रामाणिक पुस्तक भी है। – अशोक वाजपेयी


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  • Durgawati : Garha Ki Parakrami Rani

    उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के बेचन शर्मा ‘उग्र’ पुरस्कार से सम्मानित कृति


    दुर्गावती

    गढ़ा की पराक्रमी रानी – राजगोपाल सिंह वर्मा

    न केवल गोंड राजवंश के इतिहास में बल्कि समकालीन इतिहास में जितनी कीर्ति दुर्गावती ने अर्जित की उतनी शायद ही किसी शासक ने की हो। संग्राम शाह और फिर दुर्गावती के शासनकाल में ही गोंड सत्ता की जड़ें इतनी गहरी हो गयी थीं कि आगामी दो सौ साल की पतनावस्था में भी राज्य का अस्तित्व बना रहा। यह गढ़ा-कटंगा राज्य की जीवनीशक्ति का प्रमाण है। अकबर की सेना के आक्रमण और दुर्गावती के शौर्य की कहानी जनमानस में इस तरह अंकित हुई कि उसकी याद शताब्दियों के बाद तक अक्षुण्ण है। लोक गीतों में सजकर आज भी उसकी स्मृति सुदूर अंचलों के लोगों के मन में जीवित है।
    इस पुस्तक को जीवनीपरक उपन्यास का रूप अवश्य दिया गया है, पर इतिहास के उन्हीं तथ्यों, स्थलों और तिथियों को मान्यता दी गयी है, जो शोधकर्ताओं ने हमारे सामने रखे हैं। यह पुस्तक उपन्यास रूप में है ताकि पाठकों को उस कालखण्ड की राजनीति, युद्ध और रानी के कृतित्व को समझने में सुगमता रहे। इसके बावजूद यह ध्यान रखा गया है कि घटनाओं, ऐतिहासिक तथ्यों और व्यक्तियों की बाबत प्रामाणिकता बनी रहे। आवश्यकतानुसार किये गये इस औपन्यासिक रूपान्तरण में कतिपय स्थानों पर काल्पनिकता का पुट दिया गया है, पर प्रयास किया गया है कि उससे इस वीरांगना तथा तत्कालीन परिस्थितियों की ऐतिहासिकता अक्षुण्ण बनी रहे। साथ ही एक प्रयोग और भी किया गया है। रानी दुर्गावती के युद्ध मैदान में आत्मघात के बाद उपन्यास अवश्य खत्म हुआ है, लेकिन गढ़ा साम्राज्य की इस नायिका द्वारा पल्लवित यह साम्राज्य बाद के सैकड़ों वर्षों तक अक्षुण्ण रहा, कभी थोड़ा निर्बल हुआ, तो फिर उभरकर शक्तिशाली बना। इस परिवर्तन और विवरण के ऐतिहासिक पक्ष को पुस्तक के दूसरे भाग में सामने लाया गया है। इसके लिए प्रोफेसर सुरेश मिश्र के शोध को आधार माना गया है।

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  • Sabhyata Ke Kone By Ramachandra Guha

    संशोधित-परिवर्द्धित हिन्दी संस्करण

    सभ्यता के कोने

    वेरियर एल्विन
    और
    भारतीय आदिवासी समाज

    – रामचन्द्र गुहा
    – अनुवादक अनिल माहेश्वरी

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    यह पुस्तक एक जीवनी है और इस विधा में अपनी विशिष्ट जगह बना चुकी है। समकालीन भारत के सबसे जाने-पहचाने इतिहासकार रामचन्द्र गुहा की लिखी महात्मा गांधी की जीवनी कितनी बार पढ़ी गयी और चर्चित हुई। लेकिन गुहा की कलम से रची गयी पहली जीवनी वेरियर एल्विन (1902- 1964) की थी। यह एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जो ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से पढ़ाई समाप्त करके ईसाई प्रचारक के रूप में भारत आया। फिर यहीं का होकर रह गया। वह धर्म प्रचार छोड़कर गांधी के पीछे चल पड़ता है। उसने भारतीय आदिवासियों के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। वह उन्हीं में विवाह करता है। भारत की नागरिकता लेता है और अपने समर्पित कार्यों की बदौलत भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पण्डित जवाहरलाल नेहरू का विश्वास जीतता है। साथ ही उस विश्वास पर खरा उतरता है।

    एल्विन का जीवन आदिवासियों के लिए समर्पण की वह गाथा है जिसमें एक बुद्धिजीवी अपने तरीके का ‘एक्टिविस्ट’ बनता है तथा अपनी लेखनी और करनी के साथ आदिवासियों के बीच उनके लिए जीता है। यहाँ तक कि स्वतन्त्रता सेनानियों में भी ऐसी मिसाल कम ही है।

    रामचन्द्र गुहा ने वेरियर एल्विन की जीवनी के साथ पूर्ण न्याय किया है। मूल अँग्रेजी में लिखी गयी पुस्तक आठ बार सम्पादित हुई। मशहूर सम्पादक रुकुन आडवाणी के हाथों और निखरी। जीवनी के इस उत्तम मॉडल में एल्विन के जीवन को उसकी पूर्णता में उभारा गया है और शायद ही कोई पक्ष अछूता रहा है।

    एल्विन एक बहुमुखी प्रतिभा के व्यक्तित्व थे। वे मानव विज्ञानी, कवि, लेखक, गांधीवादी कार्यकर्ता, सुखवादी, हर दिल अजीज दोस्त और आदिवासियों के हितैषी थे। भारत को जानने और चाहने वाले हर व्यक्ति को एल्विन के बारे में जानना चाहिए ! यह पुस्तक इसमें नितान्त उपयोगी है।

    राम गुहा ने इस पुस्तक के द्वितीय संस्करण में लिखा है कि किसी लेखक के लिए उसकी सारी किताबें वैसे ही हैं जैसे किसी माता- पिता के लिए उनके बच्चे। यानी किसी एक को तरजीह नहीं दी जा सकती और न ही कोई एक पसन्दीदा होता है। फिर भी वो अपनी इस किताब को लेकर खुद का झुकाव छुपा नहीं पाये हैं। ऐसा लगता है गुहा अपील करते हैं कि उनकी यह किताब जरूर पढ़ी जानी चाहिए। और क्यों नहीं ?

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  • Rajneetik Safar Ke Panch Dashak by Sushil Kumar Shinde

    श्री सुशील कुमार शिन्दे की आत्मकथा का प्रकाशन बड़ी ख़ुशी की बात है। मुझे यक़ीन है कि यह पिछली आधी सदी और उससे भी ज्यादा के राजनीतिक एवं सामाजिक इतिहास को समझने में हमारी मदद करेगी।

    इनका जीवन संघर्ष की एक गाथा है। इनकी राह में अनेक मुश्किलें आयीं, लेकिन इन्होंने उन सभी पर विजय प्राप्त की। ये कई उच्च पदों पर आसीन हुए, जिनका इन्होंने बड़ी कर्मठता और उद्देश्यपूर्ण तरीक़ों से इस्तेमाल कर महत्त्वपूर्ण स्थायी योगदान दिये। अपने लम्बे सियासी कॅरियर के दौरान ये एक निष्ठावान काँग्रेसी रहे हैं, जो पार्टी के बुनियादी मूल्यों, ख़ासतौर पर धर्मनिरपेक्षता, समाज के कमज़ोर वर्गों के प्रति चिन्ता और सामाजिक न्याय एवं सशक्तीकरण के प्रतीक हैं।
    इनके साथ अपनी सियासी यात्रा के दौरान जिस बात ने मुझे सबसे ज़्यादा प्रभावित किया, वह है इनका व्यक्तित्व। हमेशा मुस्कराता, शान्त एवं स्थिर चेहरा। उत्कृष्ट भारतीय परम्पराओं के अनुसार अलग-अलग दृष्टिकोणों को सुनकर मध्य की राह निकालने की इनमें अद्भुत क्षमता रही है।
    मैं श्री शिन्दे की कुशलता, दीर्घायु जीवन और अच्छे स्वास्थ्य की कामना करती हूँ।
    – सोनिया गांधी

    श्री सुशील कुमार शिन्दे मेरे सम्मानित कैबिनेट सहयोगी और बीते कई वर्षों से मेरे मित्र रहे हैं। मैं भारतीय राजनीति की जटिलताओं के बारे में उनकी राय और गहरी समझ का क़ायल हूँ। इस रोचक वृत्तान्त में वर्णित श्री शिन्दे का जीवन अनेकानेक चुनौतियों के बीच उनकी उपलब्धियों, उनकी उत्कृष्टता और उनके लचीलेपन की एक असाधारण कहानी है।
    – डॉ. मनमोहन सिंह पूर्व प्रधानमन्त्री

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  • Ke Viruddh Swaminathan : Ek Paksh (Biography)

    के विरुद्ध – अखिलेश

    स्वामीनाथन : एक पक्ष

    ————————–

    अखिलेश ने इस किताब ‘के विरुद्ध’ में देश के विलक्षण चित्रकार और चिन्तक जगदीश स्वामीनाथन को अपनी तरह से याद किया है। उनके इस याद करने में स्वामीनाथन तो हैं ही, उनके साथ ही अनेक चित्रकार, लेखक आदि ने भी इस किताब में अपनी जगह बनायी है। इन पन्नों में स्वामीनाथन और अन्यों के जीवन्त चित्र तो हैं ही पर साथ ही जगह-जगह अखिलेश ने उनके चित्रों का अपनी तरह से पर्याप्त विश्लेषण भी किया है। आप लक्ष्य करेंगे और स्वयं अखिलेश ने भी इस ओर इशारा किया है कि ‘के विरुद्ध’ को महात्मा गांधी के बीज-ग्रन्थ ‘हिन्द स्वराज’ में अपनायी गयी शैली में लिखा गया है। जब मैं इस स्मृति ग्रन्थ में इस शैली के औचित्य के विषय में सोच रहा था तो मुझे लगा कि सम्भवतः यह शैली इस बात का संकेत है कि जगदीश स्वामीनाथन जैसे जटिल कलाकार और चिन्तक को समझने के लिए अनेक तरह के मार्ग लेना आवश्यक है। उसके बगैर उन्हें किसी भी हद तक समझ पाना और उनकी कला व चिन्तन को अपने समय के लिए उपलब्ध करा पाना मुमकिन नहीं है। स्वामीनाथन को जानने के अनेक रास्ते खोजने होंगे। अखिलेश की खोज उन्हें अगर ‘हिन्द स्वराज’ की शैली तक ले गयी है तो इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है। वे निश्चय ही स्वामीनाथन जैसे विलक्षण लेकिन जटिल व्यक्तित्व को समझने की ख़ातिर दूसरे रास्तों को छोड़ इस रास्ते पर आए हैं।
    मैं जगदीश स्वामीनाथन को बहुत क़रीब से जानता रहा हूँ। वे जितने अनोखे चित्रकार थे, उतने ही मौलिक चिन्तक भी। वे अपने समय में काफ़ी विवादास्पद भले ही रहे हों, उनके कृतित्व और वैचारिक मौलिकता को सभी सम्मान की दृष्टि से देखते थे। उन्होंने न केवल भारत की चित्रकला परम्परा को गहराई से देखा, बल्कि उस अन्तश्चेतना को अपने समय में आयत्त करने के क्रम में जो चित्र बनाये उन्हें आज भी पूरी उत्सुकता और आवेग के साथ देखा जाता है। स्वामी अकादमिक चिन्तक नहीं थे (वैसे कम-से-कम भारत में अकादमिक और चिन्तक ये दो पद शायद ही किसी व्यक्ति में साथ आए हों), वे तत्त्व-चिन्तक थे। संस्कृतियों और सभ्यताओं के प्रश्नों और समाधानों के मर्म को सहज ही देख पाने की उनमें ऐसी सामर्थ्य थी जो बहुत विरल है। उनके चित्रों और चिन्तन में वह भारत भी स्पन्दित होता था जो हमारे शहरी कला संस्थानों और विश्वविद्यालयों से लुप्त हो चुका है, जिसे समझने और अन्तस्थ करने के लगभग सभी मार्ग अब अवरुद्ध हो चुके हैं। अगर इस संक्षिप्त से सन्दर्भ में ‘के विरुद्ध’ को पढ़ा जाए तो हम कह सकेंगे कि अखिलेश ने यह किताब स्वामीनाथन नामक प्रांजल रहस्य को किसी हद तक बूझने के उपक्रम में लिखी है। स्वामी के जीवन और उनके चित्रों को पूरी निष्ठा से समझने और महसूस करने की आकांक्षा के बिना यह किताब नहीं लिखी जा सकती थी। जगदीश स्वामीनाथन के जीवन, चिन्तन और उनकी कला के प्रति अखिलेश की गहरी निष्ठा ने ही इस किताब में वह उजास लायी है जिसे आप जगह-जगह महसूस करेंगे। अखिलेश ने अन्य चित्रकारों के जीवन और कृतित्व पर भी समय-समय पर लिखा है। चूँकि वे स्वयं एक प्रतिभावान चित्रकार हैं, वे अलग-अलग चित्रकारों के कृतित्व में प्रवेश के नये-नये रास्ते खोजते हैं। वे जिन रास्तों पर चल कर, मसलन, सैयद हैदर रजा के जीवन और उनकी कला में प्रवेश करने का प्रयास करते हैं, जगदीश स्वामीनाथन की कला और उनके जीवन में प्रवेश के लिए वे उन्हीं रास्तों को नहीं अपनाते, उनके स्थान पर वे एक बार फिर नये रास्तों की खोज करते हैं।
    मेरा पक्का विश्वास है कि इस किताब को पढ़ते समय पाठक स्वयं को जगदीश स्वामीनाथन और उनके समकालीन चित्रकारों व लेखकों के निरन्तर सान्निध्य में पाएगा। उसे महसूस होगा मानो वे सारी बहसें या घटनाएँ जो ‘के विरुद्ध’ में दर्ज हैं, उनके आसपास हो रही हों और वह स्वयं उन बहसों और घटनाओं में शामिल हो रहा हो। यह किसी चित्रकार के जीवन और कला पर लिखी गयी एक किताब के लिए कोई छोटी उपलब्धि नहीं है।
    उदयन वाजपेयी

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  • Muktibodh Ki Jeevani Combo Set – (2 Khand) – paperback

    यह सम्भवतः हिन्दी में किसी लेखक की सबसे लम्बी जीवनी है। इसमें सन्देह नहीं कि इस वृत्तान्त से हिन्दी के एक शीर्षस्थानीय लेखक के सृजन और विचार के अनेक नये पक्ष सामने आएँगे और कविता तथा आलोचना की कई पेचीदगियाँ समझने में मदद मिलेगी।

    मुक्तिबोध के हमारे बीच भौतिक रूप से न रहने के छः दशक पूरे होने के वर्ष में इस लम्बी जीवनी को हम, इस आशा के साथ, प्रकाशित कर रहे हैं कि वह मुक्तिबोध को फिर एक जीवन्त उपस्थिति बना सकने में सफल होगी।
    – अशोक वाजपेयी

     

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  • Jinna : Unki Safaltayein, Vifaltayein Aur Itihas Me Unki Bhoomika – Ishtiaq Ahmed- Hardcover

    मुहम्मद अली जिन्ना भारत विभाजन के सन्दर्भ में अपनी भूमिका के लिए निन्दित और प्रशंसित दोनों हैं। साथ ही उनकी मृत्यु के उपरान्त उनके इर्द- गिर्द विभाजन से जुड़ी अफवाहें खूब फैलीं।

    इश्तियाक अहमद ने कायद-ए-आजम की सफलता और विफलता की गहरी अन्तर्दृष्टि से पड़ताल की है। इस पुस्तक में उन्होंने जिन्ना की विरासत के अर्थ और महत्त्व को भी समझने की कोशिश की है। भारतीय राष्ट्रवादी से एक मुस्लिम विचारों के हिमायती बनने तथा मुस्लिम राष्ट्रवादी से अन्ततः राष्ट्राध्यक्ष बनने की जिन्ना की पूरी यात्रा को उन्होंने तत्कालीन साक्ष्यों और आर्काइवल सामग्री के आलोक में परखा है। कैसे हिन्दू मुस्लिम एकता का हिमायती दो-राष्ट्र की अवधारणा का नेता बना; क्या जिन्ना ने पाकिस्तान को मजहबी मुल्क बनाने की कल्पना की थी-इन सब प्रश्नों को यह पुस्तक गहराई से जाँचती है। आशा है इस पुस्तक का हिन्दी पाठक स्वागत करेंगे।
    JINNAH: His Successes, Failures and Role in History का हिन्दी अनुवाद
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  • Jinna : Unki Safaltayein, Vifaltayein Aur Itihas Me Unki Bhoomika by Ishtiaq Ahmed

    मुहम्मद अली जिन्ना भारत विभाजन के सन्दर्भ में अपनी भूमिका के लिए निन्दित और प्रशंसित दोनों हैं। साथ ही उनकी मृत्यु के उपरान्त उनके इर्द- गिर्द विभाजन से जुड़ी अफवाहें खूब फैलीं।

    इश्तियाक अहमद ने कायद-ए-आजम की सफलता और विफलता की गहरी अन्तर्दृष्टि से पड़ताल की है। इस पुस्तक में उन्होंने जिन्ना की विरासत के अर्थ और महत्त्व को भी समझने की कोशिश की है। भारतीय राष्ट्रवादी से एक मुस्लिम विचारों के हिमायती बनने तथा मुस्लिम राष्ट्रवादी से अन्ततः राष्ट्राध्यक्ष बनने की जिन्ना की पूरी यात्रा को उन्होंने तत्कालीन साक्ष्यों और आर्काइवल सामग्री के आलोक में परखा है। कैसे हिन्दू मुस्लिम एकता का हिमायती दो-राष्ट्र की अवधारणा का नेता बना; क्या जिन्ना ने पाकिस्तान को मजहबी मुल्क बनाने की कल्पना की थी-इन सब प्रश्नों को यह पुस्तक गहराई से जाँचती है। आशा है इस पुस्तक का हिन्दी पाठक स्वागत करेंगे।
    JINNAH: His Successes, Failures and Role in History का हिन्दी अनुवाद
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  • Mera Jivan Sangharsh By Swami Sahjanand Sarswati

    स्वामी सहजानन्द की जीवनगाथा में यह संघर्ष एक सुस्पष्ट दिशा की ओर बढ़ता हुआ दिखाई देता है-शास्त्र से समाज की ओर, धर्म से धर्मनिरपेक्षता की ओर, समाज सुधार से सामाजिक क्रान्ति की ओर, वर्ग-सामंजस्य से वर्ग-संघर्ष की ओर, वेदान्ती समतावाद से वैज्ञानिक समाजवाद की ओर । ऐसा आत्मसंघर्ष और व्यक्तित्व का ऐसा विलक्षण रूपान्तरण, बहुत कम राष्ट्रनेताओं में देखने को मिलता है। स्वामी सहजानन्द के जीवन संघर्ष की कथा एक महान् राष्ट्रनेता के व्यक्तित्व के विकास और रूपान्तरण की महागाथा के रूप में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।

    – सम्पादक
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  • Tujhse Naraz Nahi Zindagi (Autobiography) By Umakant Shukla

    तुझसे नाराज़ नहीं ज़िन्दगी …
    एक प्रशासक की प्रेरक आत्मकथा – उमाकान्त शुक्ल

    यह आत्मकथा क्यों? क्यों एक प्रशासक, जो सारा जीवन सत्ता के करीब रहा और आयकर विभाग जैसे ताकतवर विभाग में रहा, उसकी आत्मकथा के क्या मायने? उसे लिखना चाहिए भी या नहीं क्योंकि इसके पहले तो उसने कभी कुछ लिखा नहीं। शायद साहित्यिक पुस्तकों को बहुत पढ़ा भी नहीं! लेकिन पुस्तकों को भले ही पर्याह्रश्वत मात्रा में न पढ़ा हो,चेहरों को सारा जीवन पढ़ा है और चेहरे भाषा के सबसे विश्वसनीय आधार हुआ करते हैं। चेहरे कई बार सक्वबन्धों के बनते-बिगड़ते आधार की पहचान करते हैं या यह भी कह सकते हैं कि सक्वबन्धों की वास्तविक पहचान के लिए चेहरों की भाषा का अध्ययन बहुत जरूरी होता है। (इसी पुस्तक से )

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