biography

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  • Rajneetik Safar Ke Panch Dashak by Sushil Kumar Shinde

    श्री सुशील कुमार शिन्दे की आत्मकथा का प्रकाशन बड़ी ख़ुशी की बात है। मुझे यक़ीन है कि यह पिछली आधी सदी और उससे भी ज्यादा के राजनीतिक एवं सामाजिक इतिहास को समझने में हमारी मदद करेगी।

    इनका जीवन संघर्ष की एक गाथा है। इनकी राह में अनेक मुश्किलें आयीं, लेकिन इन्होंने उन सभी पर विजय प्राप्त की। ये कई उच्च पदों पर आसीन हुए, जिनका इन्होंने बड़ी कर्मठता और उद्देश्यपूर्ण तरीक़ों से इस्तेमाल कर महत्त्वपूर्ण स्थायी योगदान दिये। अपने लम्बे सियासी कॅरियर के दौरान ये एक निष्ठावान काँग्रेसी रहे हैं, जो पार्टी के बुनियादी मूल्यों, ख़ासतौर पर धर्मनिरपेक्षता, समाज के कमज़ोर वर्गों के प्रति चिन्ता और सामाजिक न्याय एवं सशक्तीकरण के प्रतीक हैं।
    इनके साथ अपनी सियासी यात्रा के दौरान जिस बात ने मुझे सबसे ज़्यादा प्रभावित किया, वह है इनका व्यक्तित्व। हमेशा मुस्कराता, शान्त एवं स्थिर चेहरा। उत्कृष्ट भारतीय परम्पराओं के अनुसार अलग-अलग दृष्टिकोणों को सुनकर मध्य की राह निकालने की इनमें अद्भुत क्षमता रही है।
    मैं श्री शिन्दे की कुशलता, दीर्घायु जीवन और अच्छे स्वास्थ्य की कामना करती हूँ।
    – सोनिया गांधी

    श्री सुशील कुमार शिन्दे मेरे सम्मानित कैबिनेट सहयोगी और बीते कई वर्षों से मेरे मित्र रहे हैं। मैं भारतीय राजनीति की जटिलताओं के बारे में उनकी राय और गहरी समझ का क़ायल हूँ। इस रोचक वृत्तान्त में वर्णित श्री शिन्दे का जीवन अनेकानेक चुनौतियों के बीच उनकी उपलब्धियों, उनकी उत्कृष्टता और उनके लचीलेपन की एक असाधारण कहानी है।
    – डॉ. मनमोहन सिंह पूर्व प्रधानमन्त्री

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  • Ke Viruddh Swaminathan : Ek Paksh (Biography)

    के विरुद्ध – अखिलेश

    स्वामीनाथन : एक पक्ष

    ————————–

    अखिलेश ने इस किताब ‘के विरुद्ध’ में देश के विलक्षण चित्रकार और चिन्तक जगदीश स्वामीनाथन को अपनी तरह से याद किया है। उनके इस याद करने में स्वामीनाथन तो हैं ही, उनके साथ ही अनेक चित्रकार, लेखक आदि ने भी इस किताब में अपनी जगह बनायी है। इन पन्नों में स्वामीनाथन और अन्यों के जीवन्त चित्र तो हैं ही पर साथ ही जगह-जगह अखिलेश ने उनके चित्रों का अपनी तरह से पर्याप्त विश्लेषण भी किया है। आप लक्ष्य करेंगे और स्वयं अखिलेश ने भी इस ओर इशारा किया है कि ‘के विरुद्ध’ को महात्मा गांधी के बीज-ग्रन्थ ‘हिन्द स्वराज’ में अपनायी गयी शैली में लिखा गया है। जब मैं इस स्मृति ग्रन्थ में इस शैली के औचित्य के विषय में सोच रहा था तो मुझे लगा कि सम्भवतः यह शैली इस बात का संकेत है कि जगदीश स्वामीनाथन जैसे जटिल कलाकार और चिन्तक को समझने के लिए अनेक तरह के मार्ग लेना आवश्यक है। उसके बगैर उन्हें किसी भी हद तक समझ पाना और उनकी कला व चिन्तन को अपने समय के लिए उपलब्ध करा पाना मुमकिन नहीं है। स्वामीनाथन को जानने के अनेक रास्ते खोजने होंगे। अखिलेश की खोज उन्हें अगर ‘हिन्द स्वराज’ की शैली तक ले गयी है तो इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है। वे निश्चय ही स्वामीनाथन जैसे विलक्षण लेकिन जटिल व्यक्तित्व को समझने की ख़ातिर दूसरे रास्तों को छोड़ इस रास्ते पर आए हैं।
    मैं जगदीश स्वामीनाथन को बहुत क़रीब से जानता रहा हूँ। वे जितने अनोखे चित्रकार थे, उतने ही मौलिक चिन्तक भी। वे अपने समय में काफ़ी विवादास्पद भले ही रहे हों, उनके कृतित्व और वैचारिक मौलिकता को सभी सम्मान की दृष्टि से देखते थे। उन्होंने न केवल भारत की चित्रकला परम्परा को गहराई से देखा, बल्कि उस अन्तश्चेतना को अपने समय में आयत्त करने के क्रम में जो चित्र बनाये उन्हें आज भी पूरी उत्सुकता और आवेग के साथ देखा जाता है। स्वामी अकादमिक चिन्तक नहीं थे (वैसे कम-से-कम भारत में अकादमिक और चिन्तक ये दो पद शायद ही किसी व्यक्ति में साथ आए हों), वे तत्त्व-चिन्तक थे। संस्कृतियों और सभ्यताओं के प्रश्नों और समाधानों के मर्म को सहज ही देख पाने की उनमें ऐसी सामर्थ्य थी जो बहुत विरल है। उनके चित्रों और चिन्तन में वह भारत भी स्पन्दित होता था जो हमारे शहरी कला संस्थानों और विश्वविद्यालयों से लुप्त हो चुका है, जिसे समझने और अन्तस्थ करने के लगभग सभी मार्ग अब अवरुद्ध हो चुके हैं। अगर इस संक्षिप्त से सन्दर्भ में ‘के विरुद्ध’ को पढ़ा जाए तो हम कह सकेंगे कि अखिलेश ने यह किताब स्वामीनाथन नामक प्रांजल रहस्य को किसी हद तक बूझने के उपक्रम में लिखी है। स्वामी के जीवन और उनके चित्रों को पूरी निष्ठा से समझने और महसूस करने की आकांक्षा के बिना यह किताब नहीं लिखी जा सकती थी। जगदीश स्वामीनाथन के जीवन, चिन्तन और उनकी कला के प्रति अखिलेश की गहरी निष्ठा ने ही इस किताब में वह उजास लायी है जिसे आप जगह-जगह महसूस करेंगे। अखिलेश ने अन्य चित्रकारों के जीवन और कृतित्व पर भी समय-समय पर लिखा है। चूँकि वे स्वयं एक प्रतिभावान चित्रकार हैं, वे अलग-अलग चित्रकारों के कृतित्व में प्रवेश के नये-नये रास्ते खोजते हैं। वे जिन रास्तों पर चल कर, मसलन, सैयद हैदर रजा के जीवन और उनकी कला में प्रवेश करने का प्रयास करते हैं, जगदीश स्वामीनाथन की कला और उनके जीवन में प्रवेश के लिए वे उन्हीं रास्तों को नहीं अपनाते, उनके स्थान पर वे एक बार फिर नये रास्तों की खोज करते हैं।
    मेरा पक्का विश्वास है कि इस किताब को पढ़ते समय पाठक स्वयं को जगदीश स्वामीनाथन और उनके समकालीन चित्रकारों व लेखकों के निरन्तर सान्निध्य में पाएगा। उसे महसूस होगा मानो वे सारी बहसें या घटनाएँ जो ‘के विरुद्ध’ में दर्ज हैं, उनके आसपास हो रही हों और वह स्वयं उन बहसों और घटनाओं में शामिल हो रहा हो। यह किसी चित्रकार के जीवन और कला पर लिखी गयी एक किताब के लिए कोई छोटी उपलब्धि नहीं है।
    उदयन वाजपेयी

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  • Muktibodh Ki Jeevani Combo Set – (2 Khand) – paperback

    यह सम्भवतः हिन्दी में किसी लेखक की सबसे लम्बी जीवनी है। इसमें सन्देह नहीं कि इस वृत्तान्त से हिन्दी के एक शीर्षस्थानीय लेखक के सृजन और विचार के अनेक नये पक्ष सामने आएँगे और कविता तथा आलोचना की कई पेचीदगियाँ समझने में मदद मिलेगी।

    मुक्तिबोध के हमारे बीच भौतिक रूप से न रहने के छः दशक पूरे होने के वर्ष में इस लम्बी जीवनी को हम, इस आशा के साथ, प्रकाशित कर रहे हैं कि वह मुक्तिबोध को फिर एक जीवन्त उपस्थिति बना सकने में सफल होगी।
    – अशोक वाजपेयी

     

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  • Jinna : Unki Safaltayein, Vifaltayein Aur Itihas Me Unki Bhoomika – Ishtiaq Ahmed- Hardcover

    मुहम्मद अली जिन्ना भारत विभाजन के सन्दर्भ में अपनी भूमिका के लिए निन्दित और प्रशंसित दोनों हैं। साथ ही उनकी मृत्यु के उपरान्त उनके इर्द- गिर्द विभाजन से जुड़ी अफवाहें खूब फैलीं।

    इश्तियाक अहमद ने कायद-ए-आजम की सफलता और विफलता की गहरी अन्तर्दृष्टि से पड़ताल की है। इस पुस्तक में उन्होंने जिन्ना की विरासत के अर्थ और महत्त्व को भी समझने की कोशिश की है। भारतीय राष्ट्रवादी से एक मुस्लिम विचारों के हिमायती बनने तथा मुस्लिम राष्ट्रवादी से अन्ततः राष्ट्राध्यक्ष बनने की जिन्ना की पूरी यात्रा को उन्होंने तत्कालीन साक्ष्यों और आर्काइवल सामग्री के आलोक में परखा है। कैसे हिन्दू मुस्लिम एकता का हिमायती दो-राष्ट्र की अवधारणा का नेता बना; क्या जिन्ना ने पाकिस्तान को मजहबी मुल्क बनाने की कल्पना की थी-इन सब प्रश्नों को यह पुस्तक गहराई से जाँचती है। आशा है इस पुस्तक का हिन्दी पाठक स्वागत करेंगे।
    JINNAH: His Successes, Failures and Role in History का हिन्दी अनुवाद
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  • Jinna : Unki Safaltayein, Vifaltayein Aur Itihas Me Unki Bhoomika by Ishtiaq Ahmed

    मुहम्मद अली जिन्ना भारत विभाजन के सन्दर्भ में अपनी भूमिका के लिए निन्दित और प्रशंसित दोनों हैं। साथ ही उनकी मृत्यु के उपरान्त उनके इर्द- गिर्द विभाजन से जुड़ी अफवाहें खूब फैलीं।

    इश्तियाक अहमद ने कायद-ए-आजम की सफलता और विफलता की गहरी अन्तर्दृष्टि से पड़ताल की है। इस पुस्तक में उन्होंने जिन्ना की विरासत के अर्थ और महत्त्व को भी समझने की कोशिश की है। भारतीय राष्ट्रवादी से एक मुस्लिम विचारों के हिमायती बनने तथा मुस्लिम राष्ट्रवादी से अन्ततः राष्ट्राध्यक्ष बनने की जिन्ना की पूरी यात्रा को उन्होंने तत्कालीन साक्ष्यों और आर्काइवल सामग्री के आलोक में परखा है। कैसे हिन्दू मुस्लिम एकता का हिमायती दो-राष्ट्र की अवधारणा का नेता बना; क्या जिन्ना ने पाकिस्तान को मजहबी मुल्क बनाने की कल्पना की थी-इन सब प्रश्नों को यह पुस्तक गहराई से जाँचती है। आशा है इस पुस्तक का हिन्दी पाठक स्वागत करेंगे।
    JINNAH: His Successes, Failures and Role in History का हिन्दी अनुवाद
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  • Mera Jivan Sangharsh By Swami Sahjanand Sarswati

    स्वामी सहजानन्द की जीवनगाथा में यह संघर्ष एक सुस्पष्ट दिशा की ओर बढ़ता हुआ दिखाई देता है-शास्त्र से समाज की ओर, धर्म से धर्मनिरपेक्षता की ओर, समाज सुधार से सामाजिक क्रान्ति की ओर, वर्ग-सामंजस्य से वर्ग-संघर्ष की ओर, वेदान्ती समतावाद से वैज्ञानिक समाजवाद की ओर । ऐसा आत्मसंघर्ष और व्यक्तित्व का ऐसा विलक्षण रूपान्तरण, बहुत कम राष्ट्रनेताओं में देखने को मिलता है। स्वामी सहजानन्द के जीवन संघर्ष की कथा एक महान् राष्ट्रनेता के व्यक्तित्व के विकास और रूपान्तरण की महागाथा के रूप में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।

    – सम्पादक
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  • Tujhse Naraz Nahi Zindagi (Autobiography) By Umakant Shukla

    तुझसे नाराज़ नहीं ज़िन्दगी …
    एक प्रशासक की प्रेरक आत्मकथा – उमाकान्त शुक्ल

    यह आत्मकथा क्यों? क्यों एक प्रशासक, जो सारा जीवन सत्ता के करीब रहा और आयकर विभाग जैसे ताकतवर विभाग में रहा, उसकी आत्मकथा के क्या मायने? उसे लिखना चाहिए भी या नहीं क्योंकि इसके पहले तो उसने कभी कुछ लिखा नहीं। शायद साहित्यिक पुस्तकों को बहुत पढ़ा भी नहीं! लेकिन पुस्तकों को भले ही पर्याह्रश्वत मात्रा में न पढ़ा हो,चेहरों को सारा जीवन पढ़ा है और चेहरे भाषा के सबसे विश्वसनीय आधार हुआ करते हैं। चेहरे कई बार सक्वबन्धों के बनते-बिगड़ते आधार की पहचान करते हैं या यह भी कह सकते हैं कि सक्वबन्धों की वास्तविक पहचान के लिए चेहरों की भाषा का अध्ययन बहुत जरूरी होता है। (इसी पुस्तक से )

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  • Kaal Ke Kapal Par Hastakshar : Harishankar Parsai Ki Pramanik Jeevani

    इस जीवनी में परसाई के अलक्षित जीवन प्रसंगों को पढ़ना रोमांचकारी है। इसमें लक्षित परसाई से कहीं अधिक अलक्षित परसाई हैं जिन्हें जाने बिना वह चरितव्य समझ नहीं आएगा, जो परसाई के मनुष्य और लेखक को एपिकल बनाता है। जीवनी जीवन चरित है। ये गद्य और पद्य दोनों में लिखी गयी हैं। संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश में जीवनी

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  • Avsaad Ka Anand – Satyadev Tripathi (Paperback)

    Avsad Ka Anand – Satyadev Tripathi

    अवसाद का आनन्द -सत्यदेव त्रिपाठी

    बनारस-रमे विद्वान और सजग रंग-समीक्षक सत्यदेव त्रिपाठी ने जयशंकर प्रसाद की यह जीवनी लिखी है। एक मूर्धन्य कवि, उसके निजी और सर्जनात्मक-बौद्धिक संघर्ष, उनकी जिजीविषा और दुखों आदि के बारे में जानकार हम प्रसाद की महिमा और अवदान को बेहतर समझ-सराह पाएँगे।

    इस पुस्तक पर २०% की विशेष छूट,
    ऑफर ३० अप्रैल २०२४ तक वैध

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  • Avsaad Ka Anand – Satyadev Tripathi

    Avsad Ka Anand – Satyadev Tripathi

    अवसाद का आनन्द -सत्यदेव त्रिपाठी

    बनारस-रमे विद्वान और सजग रंग-समीक्षक सत्यदेव त्रिपाठी ने जयशंकर प्रसाद की यह जीवनी लिखी है। एक मूर्धन्य कवि, उसके निजी और सर्जनात्मक-बौद्धिक संघर्ष, उनकी जिजीविषा और दुखों आदि के बारे में जानकार हम प्रसाद की महिमा और अवदान को बेहतर समझ-सराह पाएँगे।

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