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  • Cinemagoi By Naval Kishor Vyas

    Cinemagoi By Naval Kishor Vyas

    135.00150.00
  • Parasi Theatre By Ranbir Singh

    Parasi Theatre By Ranbir Singh
    पारसी थिएटर – रणवीर सिंह

    325.00
  • Cinema Jalsaghar By Jaiprakash Choukse (Paperback)

    Cinema Jalsaghar By Jaiprakash Choukse
    सिनेमा जलसाघर – जयप्रकाश चौकसे

    ‘सिनेमा जलसाघर’ बॉलीवुड की दुनिया की बेहद दिलचस्प और अन्तरंग झाँकी है। यह एक ऐसी किताब है जिसकी अन्य किताबों से तुलना नहीं की जा सकती। एक तरफ हिन्दी फिल्मोद्योग का इतिहास, सिनेमाशास्त्र तथा तकनीक और सिनेमा की विभिन्न धाराओं के बारे में गुरु-गम्भीर पुस्तकें हैं तो दूसरी

    225.00250.00
  • Cinema Jalsaghar By Jaiprakash Choukse

    Cinema Jalsaghar By Jaiprakash Choukse
    सिनेमा जलसाघर – जयप्रकाश चौकसे

    ‘सिनेमा जलसाघर’ बॉलीवुड की दुनिया की बेहद दिलचस्प और अन्तरंग झाँकी है। यह एक ऐसी किताब है जिसकी अन्य किताबों से तुलना नहीं की जा सकती। एक तरफ हिन्दी फिल्मोद्योग का इतिहास, सिनेमाशास्त्र तथा तकनीक और सिनेमा की विभिन्न धाराओं के बारे में गुरु-गम्भीर पुस्तकें हैं तो दूसरी

    473.00525.00
  • GURUDUTT By Arun Khopkar Trans. By Nishikant Thakar

    सिनेमा को सजग होकर पढ़ने के नये तरीकों को अंजाम देने वाली पुस्तक है गुरुदत्त: तीन अंकी त्रासदी। ईसा मसीह की तरह सिने-निर्देशक गुरुदत्त और उनके सिनेमा का समयान्तर से पुनर्जीवन हुआ और आज विश्व के मास्टर्स ऑफ सिनेमा में उनका सम्मानपूर्वक जिक्र किया जाता है। करीब चौंतीस वर्ष पूर्व लिखी अपनी इस पुस्तक के नये संस्करण में अरुण खोपकर ने अपनी सिने-कलाशास्त्र की समग्र साधना को दाँव पर लगा दिया है और इसे आमूलाग्र नया रूपाकार और अधिक परिपूर्ण अन्तर्वस्तु से प्रस्तुत किया है। विश्व सिनेमा का गहन अध्ययन, सिनेकला और तकनीक की अन्तरंग जानकारी, सिने निर्माण का सीधा अनुभव और समझ के साथ ही साहित्य और ललित कलाओं के सौन्दर्यशास्त्र की पुख़्ता ज़मीन पर उन्होंने गुरुदत्त के सिनेमा को जिस तरह अभिजात शैली से समझा दिया है, वह पाठकों और दर्शकों की सिने- समझ के आयामों को अनायास विस्तार दे ही जाता है। संवेदनात्मक प्रगतिशील दृष्टिकोण उनके आभिजात्य को अभिनव बना देता है। गुरुदत्त के सिनेमा में भाषा, गीत और संगीत को लेकर बदलता नज़रिया इस लोचना की विशेषता है। अँधेरों और उजालों, यथार्थ और रोमांच, त्रासदी और महाकाव्य, बिम्बों और परछाइयों, रंजन और कला- मूल्यों को समग्रता में दृष्टिक्षेत्र में रखना इस समालोचना को मुकम्मल बना देता है। रोमाण्टिक कलाकार गुरुदत्त और सिनेमा की कला के प्रति सच्ची आस्था और प्रेम की बदौलत अरुण खोपकर ने भारतीय ही नहीं शायद विश्व सिने समालोचना में अपनी जगह बनायी है।


     


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