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  • Lucknow : Nawabi-badshahi Kaal Aur 1857 Ki Kranti Ki Gatha By Rajgopal Singh Verma

    नवाबी-बादशाही काल और 1857 की क्रान्ति की गाथा – लखनऊ – राजगोपाल सिंह वर्मा

    अवध का इतिहास एक वृहद् विषय है। यह शून्य से शुरू होकर उत्कर्ष और ईस्ट इण्डिया कम्पनी से ब्रिटिश साम्राज्य के महत्त्वपूर्ण प्रक्षेत्र में बदलने की कहानी है तो शेखजादाओं से आरम्भ होकर नवाबी युग और फिर बादशाहत, 1857 के लम्बे चले संघर्ष का घटनाक्रम भी है। यह उत्तर भारत की उस ऐतिहासिक विरासत, संस्कृति और तहजीब का जीवन्त और विशद आख्यान है, जिसे इतिहास के किसी कालखण्ड में अनदेखा नहीं किया जा सकता। यह पुस्तक अवध के पूरे इतिहास को समेटने का प्रयास न होकर उसके बनने, बिगड़ने, सँभलने और नवाबी युग से बादशाहत के साम्राज्य में फैलने/संकुचित होने की वह कहानी है, जिसे हम जानने की उत्कण्ठा रखते हैं। इस पुस्तक में शेखजादाओं के बाद से सआदत खान और सफदरजंग के गौरवशाली इतिहास का वर्णन है, उनके शून्य से शिखर तक पहुँचने और चर्चित आखिरी बादशाह वाजिद अली शाह के शासन काल तक दरक कर विस्मृत हो जाने के समय की कथा के मुख्य बिन्दुओं का लेखन किया गया है। सन् 1801 के बाद से, जब ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी अपनी निश्चितता के साथ उत्तर भारत की प्रमुख रियासतों में पाँव पसार रही थी तो अवध पर उनकी सतर्क निगाह शुरू से ही बनी हुई थी। ऐसा एक तो इस प्रान्त की सामरिक स्थिति के कारण था, तो यहाँ की समृद्धि, सामरिक स्थिति और दिल्ली से निकटता के कारण। इसीलिए यह किताब उन घटनाक्रमों का अनायास ही इतिहास सम्मत विश्लेषण करने की कोशिश भी करती है, जिनके माध्यम से ईस्ट इण्डिया कम्पनी की सत्ता अवध को अपने साम्राज्य का अभिन्न अंग बनाने को बेचैन थी।


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  • Sabhyata Ke Kone By Ramachandra Guha

    संशोधित-परिवर्द्धित हिन्दी संस्करण

    सभ्यता के कोने

    वेरियर एल्विन
    और
    भारतीय आदिवासी समाज

    – रामचन्द्र गुहा
    – अनुवादक अनिल माहेश्वरी

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    यह पुस्तक एक जीवनी है और इस विधा में अपनी विशिष्ट जगह बना चुकी है। समकालीन भारत के सबसे जाने-पहचाने इतिहासकार रामचन्द्र गुहा की लिखी महात्मा गांधी की जीवनी कितनी बार पढ़ी गयी और चर्चित हुई। लेकिन गुहा की कलम से रची गयी पहली जीवनी वेरियर एल्विन (1902- 1964) की थी। यह एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जो ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से पढ़ाई समाप्त करके ईसाई प्रचारक के रूप में भारत आया। फिर यहीं का होकर रह गया। वह धर्म प्रचार छोड़कर गांधी के पीछे चल पड़ता है। उसने भारतीय आदिवासियों के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। वह उन्हीं में विवाह करता है। भारत की नागरिकता लेता है और अपने समर्पित कार्यों की बदौलत भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पण्डित जवाहरलाल नेहरू का विश्वास जीतता है। साथ ही उस विश्वास पर खरा उतरता है।

    एल्विन का जीवन आदिवासियों के लिए समर्पण की वह गाथा है जिसमें एक बुद्धिजीवी अपने तरीके का ‘एक्टिविस्ट’ बनता है तथा अपनी लेखनी और करनी के साथ आदिवासियों के बीच उनके लिए जीता है। यहाँ तक कि स्वतन्त्रता सेनानियों में भी ऐसी मिसाल कम ही है।

    रामचन्द्र गुहा ने वेरियर एल्विन की जीवनी के साथ पूर्ण न्याय किया है। मूल अँग्रेजी में लिखी गयी पुस्तक आठ बार सम्पादित हुई। मशहूर सम्पादक रुकुन आडवाणी के हाथों और निखरी। जीवनी के इस उत्तम मॉडल में एल्विन के जीवन को उसकी पूर्णता में उभारा गया है और शायद ही कोई पक्ष अछूता रहा है।

    एल्विन एक बहुमुखी प्रतिभा के व्यक्तित्व थे। वे मानव विज्ञानी, कवि, लेखक, गांधीवादी कार्यकर्ता, सुखवादी, हर दिल अजीज दोस्त और आदिवासियों के हितैषी थे। भारत को जानने और चाहने वाले हर व्यक्ति को एल्विन के बारे में जानना चाहिए ! यह पुस्तक इसमें नितान्त उपयोगी है।

    राम गुहा ने इस पुस्तक के द्वितीय संस्करण में लिखा है कि किसी लेखक के लिए उसकी सारी किताबें वैसे ही हैं जैसे किसी माता- पिता के लिए उनके बच्चे। यानी किसी एक को तरजीह नहीं दी जा सकती और न ही कोई एक पसन्दीदा होता है। फिर भी वो अपनी इस किताब को लेकर खुद का झुकाव छुपा नहीं पाये हैं। ऐसा लगता है गुहा अपील करते हैं कि उनकी यह किताब जरूर पढ़ी जानी चाहिए। और क्यों नहीं ?

    552.00649.00
  • Jinna : Unki Safaltayein, Vifaltayein Aur Itihas Me Unki Bhoomika – Ishtiaq Ahmed- Hardcover

     

    मुहम्मद अली जिन्ना भारत विभाजन के सन्दर्भ में अपनी भूमिका के लिए निन्दित और प्रशंसित दोनों हैं। साथ ही उनकी मृत्यु के उपरान्त उनके इर्द- गिर्द विभाजन से जुड़ी अफवाहें खूब फैलीं।

    इश्तियाक अहमद ने कायद-ए-आजम की सफलता और विफलता की गहरी अन्तर्दृष्टि से पड़ताल की है। इस पुस्तक में उन्होंने जिन्ना की विरासत के अर्थ और महत्त्व को भी समझने की कोशिश की है। भारतीय राष्ट्रवादी से एक मुस्लिम विचारों के हिमायती बनने तथा मुस्लिम राष्ट्रवादी से अन्ततः राष्ट्राध्यक्ष बनने की जिन्ना की पूरी यात्रा को उन्होंने तत्कालीन साक्ष्यों और आर्काइवल सामग्री के आलोक में परखा है। कैसे हिन्दू मुस्लिम एकता का हिमायती दो-राष्ट्र की अवधारणा का नेता बना; क्या जिन्ना ने पाकिस्तान को मजहबी मुल्क बनाने की कल्पना की थी-इन सब प्रश्नों को यह पुस्तक गहराई से जाँचती है। आशा है इस पुस्तक का हिन्दी पाठक स्वागत करेंगे।
    JINNAH: His Successes, Failures and Role in History का हिन्दी अनुवाद
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  • Kabhi Purniya Mein (History) By Dr. Ashok Kumar Jha

    कभी पूर्णिया में” डॉ. आशोक कुमार झा,

    एक महत्त्वपूर्ण किताब है जो केवल पूर्णिया क्षेत्र में रहने वाले ब्रिटिश नागरिकों के जीवन के दस्तावेजीकरण तक सीमित नहीं है बल्कि इसकी वास्तविक प्रासंगिकता औपनिवेशिक भारत में यूरोपीय आबादी और स्थानीय समाज के मध्य बुने गये सम्बन्धों के उस जटिल ताने-बाने को उजागर करने में है जिसके स्रोत आज भी पूर्णिया क्षेत्र में देखे जा सकते हैं।

    -देवेन्द्र चौबे,
    भारतीय भाषा अध्ययन केन्द्र,
    जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय
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    553.00650.00
  • Jinna : Unki Safaltayein, Vifaltayein Aur Itihas Me Unki Bhoomika by Ishtiaq Ahmed

    मुहम्मद अली जिन्ना भारत विभाजन के सन्दर्भ में अपनी भूमिका के लिए निन्दित और प्रशंसित दोनों हैं। साथ ही उनकी मृत्यु के उपरान्त उनके इर्द- गिर्द विभाजन से जुड़ी अफवाहें खूब फैलीं।

    इश्तियाक अहमद ने कायद-ए-आजम की सफलता और विफलता की गहरी अन्तर्दृष्टि से पड़ताल की है। इस पुस्तक में उन्होंने जिन्ना की विरासत के अर्थ और महत्त्व को भी समझने की कोशिश की है। भारतीय राष्ट्रवादी से एक मुस्लिम विचारों के हिमायती बनने तथा मुस्लिम राष्ट्रवादी से अन्ततः राष्ट्राध्यक्ष बनने की जिन्ना की पूरी यात्रा को उन्होंने तत्कालीन साक्ष्यों और आर्काइवल सामग्री के आलोक में परखा है। कैसे हिन्दू मुस्लिम एकता का हिमायती दो-राष्ट्र की अवधारणा का नेता बना; क्या जिन्ना ने पाकिस्तान को मजहबी मुल्क बनाने की कल्पना की थी-इन सब प्रश्नों को यह पुस्तक गहराई से जाँचती है। आशा है इस पुस्तक का हिन्दी पाठक स्वागत करेंगे।
    JINNAH: His Successes, Failures and Role in History का हिन्दी अनुवाद
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    567.00700.00
  • Safar Me Itihas : Etihasik Yatra Akhyan By Neelima Pandey

    आमतौर पर यात्राएँ जान लेने की हुड़क में की जाती हैं। कहते हैं जान लेना मुक्त करता है। मुक्ति का तो नहीं पता पर यात्राएँ कैथार्सिस करती चलती हैं। इस वजह से बेहद मोहती हैं हमें। यात्राओं के दौरान अतीत और भविष्य अधिक मुखर हो उठते हैं, वर्तमान कुछ कट जाता है। महज़ जगहों से गुज़रना यात्रा को कमतर करता है। यात्रा माने इतिहास से एकरूप हो जाना। इतिहास के गर्व और शर्म को दोनों हाथों से थाम लेना । जहाँ काट-छाँट का इतिहास किंकर्तव्यविमूढ़ हो दूरी बना लेता है, वर्तमान रूठ जाता है और भविष्य अपने रास्ते से भटक जाता है। दरअसल, यात्राएँ जगहों से, लोगों से मिलने का सिर्फ एक बहाना हैं। असल मुलाक़ात तो हम अपने आप से करते चलते हैं। हर यात्रा के दौरान हम अपनी ही एक नयी पहचान से मुखातिब होते हैं। ये पहचान रूह की खरोंचों का मरहम है जिसे ख़ुद ही हासिल करना होता है।

    – भूमिका से

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    298.00350.00
  • Geeta Press Aur Hindu Bharat Ka Nirman by Akshay Mukul

    गीता प्रेस और हिन्दू भारत का निर्माण – अक्षय मुकुल
    अनुवाद : प्रीती तिवारी

    पुस्तक के बारे में…

    अक्षय मुकुल हमारे लिए अमूल्य निधि खोज लाए हैं। उन्होंने गोरखपुर स्थित गीता प्रेस के अभिलेखों तक अपनी पहुँच बनाई। इसमें जन विस्तार वाली पत्रिका कल्याण के पुराने अंक थे। लेकिन सबसे महत्त्वपूर्ण कई दशकों तक कल्याण के संपादक और विचारक रहे हनुमान प्रसाद पोद्दार के निजी कागजात तक पहुँचना था। इन कागजात के जरिये मुकुल हमें हिन्दुत्व परियोजना के बीजारोपण से लेकर जनमानस में उसे मजबूत किए जाने के पूरे वाकये से रूबरू करवाते हैं। इससे भी आगे वे इसकी जड़ में मौजूद जटिलता तक पहुँचते हैं जहाँ रूढ़िग्रस्त ब्राह्मणवादी हिन्दुओं और मारवाड़ी, अग्रवाल और बनिया समुदाय के अग्रणी पंरॉय
    मदन मोहन मालवीय, गांधी, बिड़ला बंधुओं और गीता प्रेस के बीच की सहयोगी अंतरंगता, किंतु कभी मधुर कभी तिक्त संबंध बिखरे दिखाई देते हैं। यह किताब हमारी जानकारी को बहुत समृद्ध करेगी और आज जिन सूरत-ए-हालों में भारत उलझा है उसे समझने में मददगार साबित होगी।
    – अरुंधति रॉय

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    509.00599.00
  • Bharat Se Kaise Gaya Buddh Ka Dharm By Chandrabhushan

    औपनिवेशिक भारत में स्तूपों की खुदाई, शिलालेखों और पाण्डुलिपियों के अध्ययन ने बुद्ध को भारत में पुनर्जीवित किया। वरना एक समय यूरोप उन्हें मिस्त्र या अबीसीनिया का मानता था। 1824 में नियुक्त नेपाल के ब्रिटिश रेजिडेण्ट हॉजसन बुद्ध और उनके धर्म का अध्ययन आरम्भ करने वाले पहले विद्वान थे। महान बौद्ध धर्म भारत से ऐसे लुप्त हुआ जैसे वह कभी था ही नहीं। ऐसा क्यों हुआ, यह अभी भी अनसुलझा रहस्य है। चंद्रभूषण बौद्ध धर्म की विदाई से जुड़ी ऐतिहासिक जटिलताओं को लेकर इधर सालों से अध्ययन-मनन में जुटे हैं। यह पुस्तक इसी का सुफल है। इस यात्रा में वह इतिहास के साथ-साथ भूगोल में भी हैं। जहाँ वेदों, पुराणों, यात्रा-वृत्तान्तों, मध्यकालीन साक्ष्यों तथा अद्यतन अध्ययनों से जुड़ते हैं, वहीं बुद्धकालीन स्थलों के सर्वेक्षण और उत्खनन को टटोलकर देखते हैं। वह विहारों में रहते हैं, बौद्ध भिक्षुओं से मिलते हैं, उनसे असुविधाजनक सवाल पूछते हैं और इस क्रम में समाज की संरचना नहीं भूलते। जातियाँ किस तरह इस बदलाव से प्रभावित हुई हैं, इसकी अन्तर्दृष्टि सम्पन्न विवेचना यहाँ आद्योपान्त है।


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    336.00395.00
  • Akhiri Mughal Badshah Ka Court-Marshal By Rajgopal Singh Verma

    इस पुस्तक में बहादुर शाह ज़फ़र के सम्प्रभु स्तर, भले ही वह नाममात्र का हो, की अन्तरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय और विदेशी कानूनों के परिप्रेक्ष्य में विवेचना की गयी है। अन्य उन कारकों का भी विश्लेषण किया गया है जिससे साबित होता है कि इस भारतीय बादशाह के विरुद्ध फिरंगी शासकों ने मनमानी, गैरकानूनी तथा अवैधानिक कार्यवाहियाँ की थीं, जिसको कोई भी सभ्य विश्व समुदाय सहमति नहीं दे सकता। साथ ही बहादुर शाह ज़फ़र पर चलाये गये इस अवैधानिक मुकदमे – कोर्ट- मार्शल की सरकारी कार्यवाही का पूरा विवरण भी परिशिष्ट के रूप में उपलब्ध कराया गया है। इस कार्यवाही को पढ़ने, सरकारी पक्ष, साक्ष्यों, अभिलेखों और प्रक्रियाओं के अवलोकन से ही ब्रिटिश प्रशासन की नीयत और मंशा आसानी से समझ आ जाती है। उम्मीद है कि 1857 के संघर्ष और पहली व्यापक क्रान्ति के सन्दर्भ में महत्त्वपूर्ण और जरूरी विश्लेषण के इस दस्तावेज को पाठक गम्भीरता से लेंगे।

    – भूमिका से
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  • Itihas Purush : Bakht Khan by Rajgopal Singh Verma

    चूँकि यह एक स्वतःस्फूर्त आन्दोलन था, इसलिए 1857 की इस क्रान्ति का कोई एक सर्वमान्य नेता न था, न ही सेना की कमाण्ड किसी एक उच्च अधिकारी के हाथ में थी। हर बागी एक नेता था और हर व्यक्ति आज़ादी के इस जुनून को दिल में सँजोये हुए था। ऐसे में बरेली स्थित सैन्य घुड़सवार-आर्टिलरी ब्रिगेड के एक स्थानीय अधिकारी मुहम्मद बख़्त ख़ान का अपने समर्थकों के साथ दिल्ली पहुँचना, बादशाह द्वारा उसे फिरंगियों के विरुद्ध सेना का नेतृत्व करने के लिए सर्वोच्च ओहदा देना एक बहुत बड़ा कदम और सम्मान था। बादशाह ने उसे सैन्य बलों का कमाण्डर-इन-चीफ बना दिया था। अफरातफरी और अराजकता के उस माहौल में इस जाँबाज़ सैन्य अधिकारी ने अपनी सेना में अनुशासन बनाया, व्यवस्थाओं को दुरुस्त किया, प्रशासनिक मशीनरी को सक्रिय किया और सेना का संचालन तथा शासन चलाने के लिए आवश्यक धनराशि की व्यवस्था की। उसने अव्यवस्था फैलाने और लूटपाट करने वालों को चेतावनी दी तथा न मानने पर उनके विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की। बख़्त ख़ान ने हिन्दू-मुस्लिम सौहार्द की स्थितियों को बनाये रखने में भी अपना योगदान दिया, तथा बादशाह के खोये हुए गौरव को एक बार फिर से स्थापित करने के लिए जरूरी काम किये।

    238.00280.00
  • Emergency Raj Ki Antarkatha By Anand Kumar

    अतिरंजित ‘आन्तरिक’ चुनौतियों के शमन के लिए लाये गये इमरजेंसी राज का क्या अर्थ था ? शुरू में इसे अराजकता के खिलाफ एक मजबूत कदम बताया गया। अनुशासन की वापसी के लिए ‘कड़वी दवा’ का इस्तेमाल कहा गया। लेकिन शीघ्र ही यह निरंकुशता की बढ़ती बीमारी में बदलता चला गया। यह स्पष्ट होने लगा कि आपातकाल की घोषणा ने एक नयी शासन व्यवस्था पैदा की जिसके संचालक निरंकुश थे। इस व्यवस्था ने हर नागरिक को असहाय और सारे देश को एक खुली जेल में बदल दिया।

    – इसी पुस्तक से
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    233.75275.00
  • SCINDIA AUR 1857 By Dr. Rakesh Pathak

    Scindia Aur 1857 By Dr. Rakesh Pathak

     

     

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    255.00300.00
  • Auopaniveshik Bharat Ki Jununi Mahilayen By Rajgopal Singh Verma

    औपनिवेशिक भारत की जुनूनी महिलाएँ:-

    देश के हज़ारों वर्षों के गौरवशाली इतिहास के बाद भी यदि स्त्रियों के लिए तमाम क्षेत्रों में दख़ल, योगदान या रुचि लेना निषिद्ध, वर्जित और प्रतिबन्धित है, तो यह पीढ़ी दर पीढ़ी और वंशानुगत चलते षड्यन्त्रकारी पूर्वाग्रहों के अलावा और क्या है ? अपवादस्वरूप जो स्त्रियाँ पुरुषों के साथ खड़ी दिखाई देती हैं, वे इस परम्परा का इतना सूक्ष्म अंश हैं कि हम उन्हें नगण्य कह सकते हैं। यद्यपि स्त्री-पुरुष दोनों ही सृष्टि के महत्त्वपूर्ण घटक हैं और एक-दूसरे के पूरक हैं, तथापि स्त्रियों को हमेशा निचले पायदान पर रखा गया। स्त्री मानव की कोमलतम भावनाओं की संरक्षक और संवर्धक है। स्त्रियों के बिना घरों का संचालन भी दूभर हो जाएगा। स्त्री के बिना इस सम्पूर्ण ग्रह पर रहने और बेहतर जीवन बिताने की कल्पना भी नहीं की जा सकती । दुखद यह भी था कि विदेशी शासकों के काल में भी भारतीय उच्चवर्ग यह समझने को तैयार नहीं था कि इस कठिन दौर में महिलाओं को साथ लेकर चलना, उन्हें राष्ट्रप्रेम और जीवन की मुख्यधारा में सम्मिलित करना समय की माँग थी। सदियों पुराने, दकियानूसी, अतार्किक परम्पराओं, टोटकों और सड़ी-गली मान्यताओं को इतिहास के कूड़ेदान में फेंक कर एक नवसमाज की संरचना का समय था वह । लेकिन भारतीय समाज इसके लिए तत्पर न था।

    339.00399.00
  • Nishad Samaj Ka Vrihat Itihas

    Nishad Samaj Ka Vrihat Itihas By Cho. Lautanram Nishad (चौधरी लौटन राम निषाद)

    ‘निषाद जाति का वृहत् इतिहास’ भारतीय संस्कृति और इतिहास की उन प्राचीनतम परतों की पड़ताल है, जिन्हें आर्य संस्कृति के नीचे दबा दिया गया है। या यूँ कहें कि सांस्कृतीकरण की प्रक्रिया के दौरान हड़प लिया गया है । इसकी पुष्टि सुनीति कुमार चटर्जी, कुबेरनाथ राय, रांगेय राघव, आचार्य चतुरसेन सहित विदेशी मूल के अनेक ख्यातिनाम लेखकों/ इतिहासकारों के अलावा उन धर्म- ग्रन्थों से भी होती है, जिन्हें आज भारतीय संस्कृति का आधार माना जाता है।

    595.00700.00
  • Sawarna Aur Awarna Ki Utpatti – Suvira Jaiswal

    Sawarna Aur Awarna Ki Utpatti – Suvira Jaiswal

    प्रो. सुवीरा जायसवाल ने जाति-व्यवस्था पर अपने शोधों को प्रस्तुत किया था। उन्होंने धर्म, वर्ण, जाति और जेण्डर पर उपलब्ध साक्ष्यों के आलोक में विस्तृत विमर्श करने के पश्चात उनके अन्तर्सम्बन्धों को उजागर किया है।

    298.00350.00
  • Shahar Jo Kho Gaya – Vijay Kumar

    Shahar Jo Kho Gaya – Vijay Kumar

    एक शहर बहुत सारी स्मृतियों से बनता है। अपनी स्थानिकताओं से हमारे ये रिश्ते इस कदर सघन होते हैं कि कई बार तो यह समूचा परिवेश एक पहेली, तिलस्म या मिथक की तरह से लगने लगता है। समय की गति इस तरह से अनुभव होती है कि जो कल तक मौजूद था वह अब वहाँ नहीं है। लेकिन उसकी स्मृति हमारे भीतर अब अपने नये अर्थ रचने लगती है। एक आक्रामक ग्लोबल समय में अपने जनपद, अपनी स्थानिकताओं से यह रिश्ता मुझे ज़रूरी लगता है, वह अपने होने के बोध को एक नया अर्थ देता है। मेरा यह शहर जो विकास का एक मिथक रचता है और भारतीय आधुनिकता का प्रतीक कहलाता है, शायद वह हमारी आधुनिक सभ्यता की किसी मायावी दुनिया के तमाम रहस्यों को अपने भीतर समेटे किसी अकथ विकलता को रचता है। इस शहर की बसावट, इसकी बस्तियाँ, बाज़ार, मोहल्ले, इमारतें और गलियाँ, पुल और सड़कें, इसकी पहाड़ियाँ और इसका प्राचीन समुद्र, इसके दिन और रात, शोर और निस्तब्धता, भीड़ और घनघोर अकेलापन, क्रूरताएँ और करुणा, भव्यता और क्षुद्रताएँ, स्मृति और विस्मृति, संवाद और निर्वात सब एक-दूसरे से जटिल रूप से आबद्ध हैं। मनुष्य इन्हीं सबके बीच जीता चला जाता है। यह शहर मेरे लिए एक पाठ की तरह से रहा है, जिसमें समय, स्थितियों, मनुष्य और परिवेश के रिश्तों को खोलती हुई अनेक परतें हैं। एक गहरा विश्वास रहा है कि साहित्य और कला में कोई भी स्थानिकता कभी पूरी तरह से स्थानिक नहीं होती।


     

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  • Social Media : Virtual Se Vaastwik – Kavita Bhatia (Hardcover)

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  • Patrakarita Ka Andha Yug By Anand Swaroop Verma (Paperback)

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    238.00280.00
  • Patrakarita Ka Andha Yug By Anand Swaroop Verma

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