Showing 1–12 of 112 results

  • Hua Karte the Raadhe by Meena Gupta


    हुआ करते थे राधे – मीना गुप्ता


    कई कथाकृतियाँ अपने समय के यथार्थ को बुनने और सामान्य जीवन का अक्स बन जाने की कामयाबी के कारण ही महत्त्वपूर्ण हो उठती हैं। मीना गुप्ता का उपन्यास ‘हुआ करते थे राधे’ भी इसी सृजनात्मक सिलसिले की एक कड़ी है। जैसा कि नाम से ही संकेत मिलता है, उपन्यास के केन्द्र में राधे नामक चरित्र है। उपन्यास शुरू से आखीर तक उसकी जिजीविषा और जद्दोजहद की दास्तान है। एक साधारण वैश्य परिवार में जन्मे राधे को, पिता की असामयिक मृत्यु हो जाने के कारण, बचपन से ही घर-परिवार का बोझ उठाना पड़ा। लेकिन राधे का जीवन संघर्ष यहीं तक सीमित नहीं है। अपने जीवन की दुश्वारियों के साथ-साथ उसे समाज के संकुचित व प्रगतिविरोधी मानसिकता वाले लोगों से भी जूझना पड़ता है। मसलन, घर में शौचालय बनवाने का राधे का निर्णय कुछ उच्चवर्णीय लोगों को रास नहीं आता। उनके विरोध के आगे झुकने के बजाय राधे गाँव छोड़ देता है। नयी जगह उसकी मेहनत और लगन रंग लाती है, परिवार में समृद्धि आती है। लेकिन यह समृद्धि टिकाऊ साबित नहीं होती, बेटे की गैरजिम्मेवारियों की भेंट चढ़ जाती है। उसकी हरकतों से आजिज आकर राधे सारी वसीयत पुत्रवधू के नाम कर देता है। वह पढ़ने- लिखने के लिए अपनी पोतियों को बराबर प्रेरित करता रहता है। बेटे की नालायकी से टूट चुके राधे की निगाह में लड़कियाँ ज्यादा जिम्मेदार और भरोसे के काबिल हैं। उपन्यास में व्यक्ति और समाज के द्वन्द्व को जितने तीखे ढंग से उकेरा गया है उतनी ही शिद्दत से परिवार के भीतर के द्वन्द्व को भी। कथ्य के साथ-साथ कहन शैली के लिहाज से भी यह उपन्यास महत्त्वपूर्ण बन पड़ा है।


    1 Click Order Using Razorpay

    300.00375.00
  • Chakravyuh Mein Darvaaza Nahi Hai By Ravindra Verma


    चक्रव्यूह में दरवाज़ा नहीं है – रवीन्द्र वर्मा

    रवीन्द्र वर्मा हमारे समय के हिन्दी के एक प्रमुख कथाकार हैं। उनकी कहानियाँ और उपन्यास नयी कहन शैली और नये आस्वाद के लिए जाने जाते हैं। यह किताब उनके चार लघु उपन्यासों का संकलन है। इन चारों में किसी भी तरह का दोहराव नहीं है, अगर कुछ सामान्य है तो मनुष्य का बढ़ता अकेलापन और चतुर्दिक असहायता की अनुभूति । नियति जैसी लगती इन स्थितियों के पीछे कहीं व्यवस्थागत कारण हैं तो कहीं पीढ़ीगत बदलाव के साथ रिश्तों में आ रही दूरी और तनाव। भ्रष्टाचार और नौकरशाही के शिकंजे में पिसते इंसान की यन्त्रणा और जद्दोजहद को पढ़ते हुए हम पाते हैं कि उसे जहाँ से अन्तिम उम्मीद होती है वहाँ से भी आखिरकार निराशा ही हाथ लगती है। ट्रिब्यूनल और अदालत से न्याय पाने की आस में चक्कर काटते उम्र गुज़र जाती है। आदमी अपने को चक्रव्यूह में घिरा हुआ पाता है, जहाँ से बच निकलने का कोई दरवाज़ा नहीं दीखता। भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ चले अभियान भी एक समय के बाद अपनी दिशा और अर्थवत्ता खोते मालूम पड़ते हैं। राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर निरन्तर अनसुना किये जाने की व्यथा और निस्सहायता को रवीन्द्र वर्मा ने जहाँ बड़ी गहराई से चित्रित किया है वहीं निजी रिश्तों की चाहतों और टूटन को भी उन्होंने काफी शिद्दत से उकेरा है। उम्मीद की जानी चाहिए कि उनके चार लघु उपन्यासों की एकत्र इस प्रस्तुति का उत्साहपूर्ण स्वागत होगा।


    Buy This Book with 1 Click Using RazorPay

    279.00349.00
  • Baraf Mahal Translated by Neelakshi Singh – hardcover

    वह एक सम्मोहक महल था। उसमें प्रवेश करने का रास्ता जल्द खोज लेना था। वह भूलभुलैया, उत्कण्ठा जगाने वाले रास्तों और विशाल दरवाजों से भरा होने वाला था और उसे उसमें दाखिले का रास्ता खोजकर ही दम लेना था। यह कितनी अजीब बात थी कि उसके सामने आते ही उन्न बाकी का सबकुछ बिल्कुल ही बिसरा चुकी थी। उस महल के भीतर समा जाने की इच्छा के सिवा हर दूसरी चीज का अस्तित्व उसके लिए समाप्त हो चुका था। आह। पर क्या वह सब इतना आसान था ! कितनी तो जगहें थीं, जो दूर से अब खुलीं कि तब खुलीं दिखती थीं, पर जैसे ही उन्न वहाँ पहुँचती, वे धोखा देने पर उतर आतीं। पर वह भी कहाँ हार मानने वाली थी !

    438.00625.00
  • Strigatha By Prem Ranjan Animesh

    स्त्रीगाथा (उपन्यास) – प्रेम रंजन अनिमेष

    उनकी नयी कृति स्त्रीगाथा, दो हिस्सों में विभाजित, यह उपन्यास, जैसा कि नाम से जाहिर है, स्त्री की व्यथा-कथा और उसके आत्म-सम्मान तथा स्वतन्त्र अस्मिता के उसके संघर्ष की एक दास्तान कहता है, यों तो ऐसी रचनाओं की कमी नहीं, जो स्त्री की वेदना से बुनी हुई हैं, उसकी पीड़ा और उसके संघर्ष को शब्द देती हैं, स्त्री की पक्षधरता में मुखर हैं और इस तरह स्त्री विमर्श का एक आख्यान रचती हैं।
    प्रेम रंजन अनिमेष का यह उपन्यास स्त्री विमर्श का पात्र होते हुए भी, ऐसी बहुत सी रचनाओं से थोड़ा अलग हटकर, और विशिष्ट है। इसमें रचनाशीलता की कीमत पर विमर्श का मोह नहीं पाला गया है। और यही वजह है कि इस उपन्यास की कथाशीलता कहीं भी क्षतिग्रस्त नहीं होती।
    इसका यह अर्थ नहीं कि इसमें विचार हाशिये पर या नेपथ्य में है। सच यह है कि यह उपन्यास सरोकार को अनुस्यूत करते हुए उसे बल प्रदान करने का एक उत्कृष्ट उदाहरण है

    इस पुस्तक को आप १ क्लिक ऑर्डर बटन से भी ख़रीद सकते हैं
    339.00399.00
  • Mitne Ka Adhikaar By Prachand Praveer

    इस अप्रतिम प्रेम कथा में चित्रकार रघु विवाहिता और अपूर्व सुन्दरी गौरी के प्रेम में पड़कर अपने जीवन को उलझा लेता है। पुस्तक के पहले हिस्से में रघु प्रेम के आरम्भ में ही प्रेम से छुटकारा पा लेना चाहता है किन्तु वह गौरी के प्रणय को अस्वीकार नहीं कर पाता। इस कशमकश में गौरी ही हारकर रघु को छोड़कर चली जाती है। दूसरे हिस्से में पराजित और लज्जित रघु संन्यासियों जैसे भटकने के लिए निकल पड़ता है। भारतीय दर्शन से जुड़ी यह कथा इक्कीसवीं सदी के भारत से जुड़कर नये आयाम खोलती है तथा पाठक को बहुत कुछ विचारने पर विवश करती है।

    Buy This Book with 1 Click, Via RazorPay (15% + 5% discount Included)

    Kindle E-Book Also Available
    Available on Amazon Kindle

    446.00525.00
  • Vaasavdutta (Novel) By Mahendra Madhukar

    प्रसिद्ध कवि, कथाकार और आलोचक डॉ. महेंद्र मधुकर का प्रस्तुत उपन्यास ‘वासवदत्ता’ राजा उदयन और राजकुमारी वासवदत्ता की ऐतिहासिक प्रेम-गाथा है, जो ढाई हजार वर्षों से भी अधिक समय से लोक कण्ठों में गूँजती रही है। कालिदास के भी पूर्व नाटककार भास ने ‘स्वप्न वासवदत्ता’ और ‘प्रतिज्ञा यौगन्धरायण’ जैसे नाटकों में इस प्रेम-गाथा का ताना- बाना रचा है। कवि कालिदास ने अपने ‘मेघदूत’ के तीसवें श्लोक में उदयन के प्रेम की मधुर कथा की चर्चा की है।

    वास्तव में प्रेम एक अशब्द अनुभव है, जो पुरुष या स्त्री के मन में समान रूप से पल्लवित होता है। स्त्री राजनीति या साम्राज्यवाद का मोहरा नहीं बल्कि यज्ञ की अग्नि की तरह धधक उठने वाली ज्वाला है। उदयन वीर और रोमाण्टिक नायक के रूप में अपनी घोषवती वीणा के साथ प्रस्तुत होते हैं और कला ही प्रेम का सूत्रपात करती है। यहाँ प्रेम है तो पीड़ा है और इस पीड़ा में अद्भुत आनन्द का अनुभव होता है।

    महेंद्र मधुकर का यह उपन्यास आपकी अन्तरात्मा को द्रवित करेगा और इस उपन्यास की भाषा का प्रवाह आपको अपने साथ दूर तक बहा ले जाएगा।

    Buy This Book with 1 Click Via RazorPay (15% + 5% discount Included)

    319.00375.00
  • Kit Kit By Anu Shakti Singh

    Kit Kit By Anu Shakti Singh
    कित कित – अणुशक्ति सिंह

    मन की नदियों, हवाओं, चुप्पियों, कथाओं को रचना
    में रूप देने के लिए रियाज़ के साथ आत्मसंयम व
    कलात्मक अभिव्यक्ति का सन्तुलन वांछित होता है,
    तब एक रचना अपना प्रसव ग्रहण करने को उन्मुख
    होती है। जो कलाकार इस गहरे बोध से परिचित होते हैं
    वे गति से अधिक लय को भाषा में समाने का इन्तज़ार
    करते उसे अपना रूप लेने देते हैं। लय, जो अपनी
    लयहीनता में बेहद गहरे और अकथनीय अनुभव ग्रहण
    करती है उसे भाषा में उतार पाना ही कलाकार की
    असल सिद्धि है। अणु शक्ति ने अपने इस नॉवल में
    टीस की वह शहतीर उतरने दी है। यह उनके कथाकार
    की सार्थकता है कि नॉवल में तीन पात्रों की घुलनशील
    नियति के भीतर की कशमकश को उन्होंने दृश्य बन
    कहन होने दिया है। स्त्री, पर-स्त्री, पुरुष, पर-पुरुष,
    इनको हर बार कला में अपना बीहड़ जीते व्यक्त करने
    का प्रयास होता रहा। हर बार रचना में कुछ अनकही
    अनसुनी कतरनें छितराती रही हैं। वहाँ प्रेम और
    अकेलापन अपने रसायन में कभी उमड़ते हैं कभी
    घुमड़कर अपनी ठण्ड में किसी अन्त में चुप समा जाते
    हैं। अणु शक्ति इन मन:स्थितियों को बेहद कुशलता से
    भाषा में उतरने देती हैं व अपनी पकड़ को भी अदृश्य
    रखने में निष्णात साबित हुई हैं।

    Buy This Book Instantly thru RazorPay
    (15% + 5% Extra Discount Included)

    Kindle E-Book Also Available
    Available on Amazon Kindle

    212.00249.00
  • Fakira By Anna Bhau Sathe

    फकीरा’ उपन्यास अण्णा भाऊ साठे का मास्टरपीस उपन्यास माना जाता है। यह 1959 में प्रकाशित हुआ तथा इसे 1961 में राज्य शासन का सर्वोत्कृष्ट उपन्यास पुरस्कार प्रदान किया गया। इस उपन्यास पर फ़िल्म भी बनी। ‘फकीरा’ एक ऐसे नायक पर केन्द्रित उपन्यास है, जो अपने ग्राम-समाज को भुखमरी से बचाता है, अन्धविश्वास और रूढ़िवाद से मुक्ति का पुरजोर प्रयत्न करता है तथा ब्रिटिश शासन के विरुद्ध विद्रोह करता है। एक दलित जाति के नायक का बहुत खुली मानवीय दृष्टि रखना, ब्रिटिश शासन द्वारा थोपे गये अपराधी जाति के ठप्पे से जुड़ी तमाम यन्त्रणाओं का पुरजोर विरोध करना, अपने आसपास के लोगों को अन्धविश्वास के जाल से निकालने की जद्दोजहद करना तथा बहुत साहस और निर्भयता के साथ अनेक प्रतिमान स्थापित करना ‘फकीरा’ की विशेषता है। उपन्यास का नायक ‘फकीरा’ एक नायक मात्र नहीं है, विषमतामूलक समाज के प्रति असहमति का बुलन्द हस्ताक्षर है।

    Buy Instantly


    Kindle E-Book Also Available
    Available on Amazon Kindle

    254.00299.00
  • Baraf Mahal Translated by Neelakshi Singh

     

    वह एक सम्मोहक महल था। उसमें प्रवेश करने का रास्ता जल्द खोज लेना था। वह भूलभुलैया, उत्कण्ठा जगाने वाले रास्तों और विशाल दरवाजों से भरा होने वाला था और उसे उसमें दाखिले का रास्ता खोजकर ही दम लेना था। यह कितनी अजीब बात थी कि उसके सामने आते ही उन्न बाकी का सबकुछ बिल्कुल ही बिसरा चुकी थी। उस महल के भीतर समा जाने की इच्छा के सिवा हर दूसरी चीज का अस्तित्व उसके लिए समाप्त हो चुका था। आह। पर क्या वह सब इतना आसान था ! कितनी तो जगहें थीं, जो दूर से अब खुलीं कि तब खुलीं दिखती थीं, पर जैसे ही उन्न वहाँ पहुँचती, वे धोखा देने पर उतर आतीं। पर वह भी कहाँ हार मानने वाली थी !

    Buy This Book with 1 Click Via RazorPay (15% + 5% discount Included)

    238.00280.00
  • Perumal Murugan Chotu Aur Uski Duniya BY Perumal Murugan

    छोटू जानता है कि साँप कटाई किये गये ख़ाली खेतों में नहीं आते हैं। वहाँ उनको खाने के लिए क्या मिलेगा ? वे तो पोखर की शीतलता में विश्राम करना पसन्द करते हैं। उसे तो कीड़े-मकोड़ों का भी भय नहीं लगता। वह तो घोर अँधेरे में भी किसी भी चीज़ के हिलने-डुलने का अन्दाज़ा लगा सकता है और फिर करट्टूर पहाड़ी से आते हुए प्रकाश की झिलमिलाहट उसके मन को शान्त करने के लिए पर्याप्त है, वह अनजान जीवों को दूर रखने के लिए काफ़ी है। किसी कारणवश पहाड़ी का दीपक यदि नहीं जलाया जाता है, तो उसे लगता है कि उसके साथ धोखा किया गया है और उसे परित्यक्त कर दिया गया है।

     

    Kindle E-Book Also Available
    Available on Amazon Kindle

    Buy Instantly using RazorPay Button,
    Dispatch within 1 working day.

    319.00375.00
  • Shunya ki Tauheen By Ashar Najmi

    शून्य की तौहीन एक ऐसा उपन्यास है जो भारतीय उपमहाद्वीप की सबसे विकट समस्या से हमें रूबरू कराता है। अशअर नज्मी के इस उपन्यास की केन्द्रीय चिन्ता यह है कि व्यक्ति स्वातंत्र्य को कैसे सुनिश्चित किया और अक्षुण्ण रखा जाए, जिस पर नित हमले हो रहे हैं। ऐसे हमलों से उपजा आतंक पूरे उपन्यास में तारी रहता है। यों तो सत्ताधीशों, पुलिस और नौकरशाही तथा धर्मसत्ता और समाज के सामन्ती ढाँचे आदि की तरफ से नागरिक आजादी को कुचलने की कोशिशें बराबर होती रही हैं, लेकिन पिछले कुछ दशकों से यह दमन सबसे ज्यादा धर्म के नाम पर हुआ है। इसका सबसे व्यवस्थित और चरम रूप पाकिस्तान के ईशनिन्दा विरोधी कानून में दीखता है। मज़हबी भावनाएँ उकसाकर बनाये गये

    196.00230.00
  • Inshallah By Abhiram Bhadkamkar

    मुस्लिम समाज की तरफ देखने के आज तक के सारे एक तरफा और दुराग्रही दृष्टिकोण को नकारते हुए, स्पष्ट भाषा में, बेबाक वास्तव का चित्रण कराने वाले इस उपन्यास ने विचार के स्तर पर एक नये मन्थन का आरम्भ किया है।

    यह उपन्यास मुस्लिम समाज की आज की स्थिति और बहुसंख्यकों के साथ के उनके जटिल रिश्तों का भी विमर्श प्रस्तुत करता है।

    मुस्लिम समाज में व्याप्त धार्मिक संकीर्णता, रूढ़िवादिता, परम्परा और उनकी कर्मठता पर भाष्य करते हुए इस समाज को वोट बैंक बनाकर रखने और इस्तेमाल करने की राजनीतिक मानसिकता को भी आड़े हाथ लेता है।

    361.00425.00