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  • Hua Karte the Raadhe by Meena Gupta


    हुआ करते थे राधे – मीना गुप्ता


    कई कथाकृतियाँ अपने समय के यथार्थ को बुनने और सामान्य जीवन का अक्स बन जाने की कामयाबी के कारण ही महत्त्वपूर्ण हो उठती हैं। मीना गुप्ता का उपन्यास ‘हुआ करते थे राधे’ भी इसी सृजनात्मक सिलसिले की एक कड़ी है। जैसा कि नाम से ही संकेत मिलता है, उपन्यास के केन्द्र में राधे नामक चरित्र है। उपन्यास शुरू से आखीर तक उसकी जिजीविषा और जद्दोजहद की दास्तान है। एक साधारण वैश्य परिवार में जन्मे राधे को, पिता की असामयिक मृत्यु हो जाने के कारण, बचपन से ही घर-परिवार का बोझ उठाना पड़ा। लेकिन राधे का जीवन संघर्ष यहीं तक सीमित नहीं है। अपने जीवन की दुश्वारियों के साथ-साथ उसे समाज के संकुचित व प्रगतिविरोधी मानसिकता वाले लोगों से भी जूझना पड़ता है। मसलन, घर में शौचालय बनवाने का राधे का निर्णय कुछ उच्चवर्णीय लोगों को रास नहीं आता। उनके विरोध के आगे झुकने के बजाय राधे गाँव छोड़ देता है। नयी जगह उसकी मेहनत और लगन रंग लाती है, परिवार में समृद्धि आती है। लेकिन यह समृद्धि टिकाऊ साबित नहीं होती, बेटे की गैरजिम्मेवारियों की भेंट चढ़ जाती है। उसकी हरकतों से आजिज आकर राधे सारी वसीयत पुत्रवधू के नाम कर देता है। वह पढ़ने- लिखने के लिए अपनी पोतियों को बराबर प्रेरित करता रहता है। बेटे की नालायकी से टूट चुके राधे की निगाह में लड़कियाँ ज्यादा जिम्मेदार और भरोसे के काबिल हैं। उपन्यास में व्यक्ति और समाज के द्वन्द्व को जितने तीखे ढंग से उकेरा गया है उतनी ही शिद्दत से परिवार के भीतर के द्वन्द्व को भी। कथ्य के साथ-साथ कहन शैली के लिहाज से भी यह उपन्यास महत्त्वपूर्ण बन पड़ा है।


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  • Chakravyuh Mein Darvaaza Nahi Hai By Ravindra Verma


    चक्रव्यूह में दरवाज़ा नहीं है – रवीन्द्र वर्मा

    रवीन्द्र वर्मा हमारे समय के हिन्दी के एक प्रमुख कथाकार हैं। उनकी कहानियाँ और उपन्यास नयी कहन शैली और नये आस्वाद के लिए जाने जाते हैं। यह किताब उनके चार लघु उपन्यासों का संकलन है। इन चारों में किसी भी तरह का दोहराव नहीं है, अगर कुछ सामान्य है तो मनुष्य का बढ़ता अकेलापन और चतुर्दिक असहायता की अनुभूति । नियति जैसी लगती इन स्थितियों के पीछे कहीं व्यवस्थागत कारण हैं तो कहीं पीढ़ीगत बदलाव के साथ रिश्तों में आ रही दूरी और तनाव। भ्रष्टाचार और नौकरशाही के शिकंजे में पिसते इंसान की यन्त्रणा और जद्दोजहद को पढ़ते हुए हम पाते हैं कि उसे जहाँ से अन्तिम उम्मीद होती है वहाँ से भी आखिरकार निराशा ही हाथ लगती है। ट्रिब्यूनल और अदालत से न्याय पाने की आस में चक्कर काटते उम्र गुज़र जाती है। आदमी अपने को चक्रव्यूह में घिरा हुआ पाता है, जहाँ से बच निकलने का कोई दरवाज़ा नहीं दीखता। भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ चले अभियान भी एक समय के बाद अपनी दिशा और अर्थवत्ता खोते मालूम पड़ते हैं। राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर निरन्तर अनसुना किये जाने की व्यथा और निस्सहायता को रवीन्द्र वर्मा ने जहाँ बड़ी गहराई से चित्रित किया है वहीं निजी रिश्तों की चाहतों और टूटन को भी उन्होंने काफी शिद्दत से उकेरा है। उम्मीद की जानी चाहिए कि उनके चार लघु उपन्यासों की एकत्र इस प्रस्तुति का उत्साहपूर्ण स्वागत होगा।


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  • Matibhram By Raju Sharma – HardCover

    “‘मतिभ्रम’ एक ऐसा उपन्यास है, जिसे राजू शर्मा ने अपने रचनात्मक धीरज से सम्भव बनाया है। यह रचनात्मक धीरज भी इकहरा नहीं है, इसकी बहुस्तरीयता का आधार जीवन से गहरी आसक्ति और गम्भीर राजनीतिक समझ है। जीवन से आसक्ति और गहरी राजनीतिक समझ से निर्मित संवेदनात्मक संरचनाएँ घटनाओं को उन क्षितिजों तक पहुँचाती हैं, जहाँ तक अमूमन कथा विन्यास में उनका विन्यस्त हो पाना दुरूह होता है…”

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  • Kathakaar Sanjeev Books Combo

    सुप्रसिद्ध कथाकार संजीव द्वारा लिखित पुस्तकें जो आप यहाँ से आर्डर कर सकते हैं

    ‘पुरबी बयार’
    ‘मुझे पहचानो’
    ‘सागर सीमान्त’
    ‘समुद्र मन्थन का पन्द्रहवाँ रतन’

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  • Matibhram By Raju Sharma

    मतिभ्रम – राजू शर्मा

    “‘मतिभ्रम’ एक ऐसा उपन्यास है, जिसे राजू शर्मा ने अपने रचनात्मक धीरज से सम्भव बनाया है। यह रचनात्मक धीरज भी इकहरा नहीं है, इसकी बहुस्तरीयता का आधार जीवन से गहरी आसक्ति और गम्भीर राजनीतिक समझ है। जीवन से आसक्ति और गहरी राजनीतिक समझ से निर्मित संवेदनात्मक संरचनाएँ घटनाओं को उन क्षितिजों तक पहुँचाती हैं, जहाँ तक अमूमन कथा विन्यास में उनका विन्यस्त हो पाना दुरूह होता है…”

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  • O Ri Kathputli By Anju Sharma (Hardcover)

    O Ri Kathputli – Anju Sharma
    ओ री कठपुतली – अंजू शर्मा

    ओ री कठपुतली अपने परिवेश और प्रभाव, कथावस्तु और रचाव, हर लिहाज से एक बेहतरीन उपन्यास है। महानगर के अभिजात और मध्यवर्ग से लेकर झुग्गी बस्ती तक के जीवन पर कहानियाँ और उपन्यास लिखे गये हैं लेकिन आय के इस उपन्यास के पात्र और परिवेश काफी विरल हैं। यह उपन्यास एक ऐसी बस्ती की कहानी है, जो लोक कलाकारों ने बसायी है। कठपुतली नचाने, मदारी का खेल दिखाने, दीवार पर पेंटिंग करने से लेकर नट, बाजीगर, तरह-तरह के करतब व तमाशे दिखाने वाले लोक कलाकार इस बस्ती में रहते हैं। यों कठपुतली कालोनी नाम की यह बस्ती भी, नागरिक सुविधाओं की किल्लत के कारण, स्लम जैसी ही है लेकिन तरह-तरह के लोक कलाकारों की रिहाइश इसे विशिष्ट बना देती है। एक पत्रिका के लिए कवर स्टोरी लिखने के क्रम में कथानायिका का यहाँ प्रवेश होता है और फिर पाठक के सामने एक ऐसी दुनिया परत-दर-परत खुलती जाती है जहाँ जिंदगी ज्यादा बहुरंगी है, ज्यादा दिलचस्प भी। पर उतनी ही दारुण भी, जितनी एक झुग्गी बस्ती में होती है। तरह-तरह के हुनरमन्द यहाँ रहते हैं और घूम-घूमकर देश की राजधानी में रोज कहीं न कहीं अपने हुनर का प्रदर्शन करते हैं लेकिन उनका हुनर उन्हें दो जून रोटी की गारण्टी नहीं दे पाता। यह उपन्यास उनके विस्थापन का भी दर्द समेटे हुए है। 

    580.00725.00
  • Baloo Retwa By Pratap Gopendra (Hardcover)

    बालू रेतवा हिन्दी के उन विरल उपन्यासों में एक है जिनकी सबसे बड़ी खूबी आंचलिकता है। इस तरह यह उपन्यास इस बात का एक और प्रमाण है कि रेणु के ‘मैला आँचल’ से हिन्दी में आंचलिकता की जो धारा शुरू हुई थी वह सूखी नहीं है बल्कि समय-समय ऐसे कथाकार नमूदार हो जाते हैं जो किसी नये इलाके में इस धारा को मोड़ देते हैं। प्रताप गोपेन्द्र ऐसे ही एक महत्त्वपूर्ण कथाकार हैं। ‘बालू रेतवा’ की कथाभूमि हिन्दी प्रदेश की भोजपुरी पट्टी है इसलिए स्वाभाविक ही इस उपन्यास की भाषा भोजपुरी की बोली-बानी में रची-पगी है; उसके मुहावरों, लोकोक्तियों, गीतों और भंगिमाओं से भरपूर। इस उपन्यास में पात्रों के संवाद, परिवेश, रहन-सहन, रीति- रिवाज और सुख-दुख का वर्णन आदि सब कुछ इतना जीवन्त है कि उनके कथाकार का लोहा मानना पड़ता है।

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  • Anamswami By Jainendra Kumar

    `अनामस्वमी` जैनेन्द्र कुमार का कालजयी उपन्यास

    298.00350.00
  • Dashark By Jainendra Kumar

    `दशार्क` जैनेन्द्र कुमार (उपन्यास)

    297.00350.00