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  • Ekchakranagri By Gyanendrapati (Paperback)

    Ekchakranagri By Gyanendrapati (Paperback)

    एकचक्रानगरी ! यह काव्याख्यान अपनी संरचना में ही नाटकीय है; इसे पढ़ते हुए भी आप इसे अपने मन की आँखों के आगे मंचित होता महसूस कर सकते हैं।

    81.0095.00
  • Kavita Bhavita – Gyanendrapati – Paperback

    Kavita Bhavita – Gyanendrapati (Paperback)

    कविता क्या है’ का ठीक-ठीक उत्तर न आलोचकप्रवर रामचंद्र शुक्ल ढूँढ पाये न अन्य विदग्ध जन, कोशिशें तो निरंतर की जाती रहीं-न जाने कब से। सो परिभाषाएँ तो ढेरों गढ़ी गईं, लेकिन वे अधूरी लगती रहीं। पारे को अंगुलियों से उठाना संभव न हो सका।

    190.00
  • Ganga Beeti (Gangu Teli Ki Jabani) By Gyanendrapati PaperBack

    Ganga Beeti (Gangu Teli Ki Jabani) Paperback Edition
    गंगा-बीती (गंगू तेली की ज़बानी)

    इक्कीसवीं सदी दहलीज पर थी, जब ज्ञानेन्द्रपति का कविता-संग्रह ‘गंगातट’ शाया हुआ था। तब हिंदी जगत् में उसका व्यापक स्वागत हुआ था और उसे नयी राह खोजने वाली कृति की तरह देखा-पढ़ा गया था। ‘गंगातट’ को किन्हीं ने प्रकृति और सभ्यता के द्वन्द्वस्थल के रूप में चीन्हा था, तो किन्हीं को वहाँ वैश्विक परिदृश्य में हो रहे परिवर्तनों को स्थानिकता की जमीन पर लखने का ईमानदार उद्यम दिखा था जिसमें भूमण्डलीकरण के नाम पर भूमण्डीकरण में जुटे बेलगाम साम्राज्यवादी पूँजीवाद का प्रतिरोध परिलक्षित किया जा सकता था।

    172.00
  • Kavita Bhavita – Gyanendrapati

    Kavita Bhavita – Gyanendrapati
    कविता क्या है’ का ठीक-ठीक उत्तर न आलोचकप्रवर रामचंद्र शुक्ल ढूँढ पाये न अन्य विदग्ध जन, कोशिशें तो निरंतर की जाती रहीं-न जाने कब से। सो परिभाषाएँ तो ढेरों गढ़ी गईं, लेकिन वे अधूरी लगती रहीं। पारे को अंगुलियों से उठाना संभव न हो सका।

    430.00
  • Ganga Beeti (Gangu Teli Ki Jabani) By Gyanendrapati

    Ganga Beeti (Gangu Teli Ki Jabani)
    गंगा-बीती (गंगू तेली की ज़बानी)

    इक्कीसवीं सदी दहलीज पर थी, जब ज्ञानेन्द्रपति का कविता-संग्रह ‘गंगातट’ शाया हुआ था। तब हिंदी जगत् में उसका व्यापक स्वागत हुआ था और उसे नयी राह खोजने वाली कृति की तरह देखा-पढ़ा गया था। ‘गंगातट’ को किन्हीं ने प्रकृति और सभ्यता के द्वन्द्वस्थल के रूप में चीन्हा था, तो किन्हीं को वहाँ वैश्विक परिदृश्य में हो रहे परिवर्तनों को स्थानिकता की जमीन पर लखने का ईमानदार उद्यम दिखा था जिसमें भूमण्डलीकरण के नाम पर भूमण्डीकरण में जुटे बेलगाम साम्राज्यवादी पूँजीवाद का प्रतिरोध परिलक्षित किया जा सकता था।

    365.00
  • Ekchakranagri By Gyanendrapati

    एकचक्रानगरी ! यह काव्याख्यान अपनी संरचना में ही नाटकीय है; इसे पढ़ते हुए भी आप इसे अपने मन की आँखों के आगे मंचित होता महसूस कर सकते हैं।

    170.00200.00