Showing 13–24 of 78 results

  • Jeevan Ho Tum By Nishant -Paperback

    Jeevan Ho Tum By Nishant – Paperback

    एक ऐसे कठिन समय में जब चारों तरफ सामाजिक-राजनीतिक स्तर पर उथल-पुथल मची हुई हो, जब आम आदमी के हित को बहुत पीछे छोड़ सत्ता और तन्त्र के पक्ष में एक खास तरह की मानसिकता तैयार की जा रही हो, जब आम आदमी की जिंदगी को चन्द अस्मिताओं में सिमटा कर उसे वोट बैंक में तब्दील किया जा रहा हो, प्रेम को या तो हिंसा का सबसे बड़ा हथियार बनाया जा रहा हो या इस बाजारवादी संस्कृति में जिसके महत्त्व का अवमूल्यन किया जा रहा हो, तब प्रेम के लिए इस सबसे भयावह समय में निशान्त का प्रेम कविताओं का यह संग्रह कोमल पत्तों पर ओस के फाहे जैसा है। यह संग्रह जहाँ एक तरफ हमें सुकून देता है, वहीं दूसरी तरफ अपने स्वरूप में प्रतिरोध का एक नया अध्याय भी रचता है। निशान्त की कविताएँ अपने समय का अन्तर्पाठ हैं। वे कविताओं में राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तन को बहुत ही बारीकी से पकड़ने वाले कवि हैं। उनकी कविताओं को जब समग्रता में पढ़ा जाए और उसी क्रम में इन कविताओं को रखा जाए, तब यह स्पष्ट होता है कि प्रेम कविताओं का यह संग्रह भी अपने समय से जुड़कर और जूझकर रचित हुआ है। दुनिया के सारे दुखों पर/ मरहम लगाता है एक वाक्य /’मैं तुम्हें प्यार करता हूँ। राजनीतिक विद्रूपताओं के बीच यह संग्रह प्रेम का आख्यान है। इन प्रेम कविताओं को निरी प्रेम कविताएँ न मानकर इन्हें विद्रूप स्थितियों के बीच प्रेम को बचाने की एक कवि की कोशिश के रूप में देखा जाना चाहिए। एकदम ‘इलिस माछ’ की तरह, जो पानी से एक सेकेण्ड के लिए बिछड़ते ही प्राण त्याग देती है। और साथ ही इनमें एक खास तरह का उद्दाम आवेग है-‘पागल और बच्चों की तरह का।’ यहाँ कोई दाँवपेच नहीं है, कोई चालाकी नहीं, कोई स्वार्थ नहीं और बाजार का कोई षड्यन्त्र भी नहीं। यहाँ प्रेमियों की कोई अस्मिता नहीं है, वे सिर्फ प्रेमी हैं। धर्म, जाति, भाषा, प्रदेश, वर्ग सभी विभेदों से ऊपर उठकर यहाँ सिर्फ प्रेम है जो अपने स्वरूप में इस क्रूर सत्ता के क्रूर चरित्र के बरक्स प्रतिरोध के आख्यान का रूप ले लेता है। इसलिए यह प्रेम अपने समय का प्रतिआख्यान तैयार करता है। भक्ति आन्दोलन में जिस वैकल्पिक दुनिया का ख्वाब कवियों ने देखा था निशान्त ने अपनी कविताओं में उसी वैकल्पिक दुनिया का इस क्रूरतम दुनिया में ख्वाब बुना है। यह एक कवि का ख्वाब है जिसकी जड़ें जनमानस के भीतर गहरी धंसी हुई हैं। निशान्त की भाषा इन कविताओं में इतनी कोमल है कि कठोर हृदयवाला भी गलने लगता है। चूँकि वे बंगाल में रहते हैं इसलिए बांग्ला भाषा की जो हल्की-सी छुअन यहाँ है, वह इन कविताओं को थोड़ा और खूबसूरत, थोड़ा और सुन्दर बना देती है।

    117.00
  • Lekin Udas Hai Prithvi – Madan Kashyap -Paperback

    Lekin Udas Hai Prithvi – Madan Kashyap – Paperback Edition
    लेकिन उदास है पृथ्वी-मदन कश्यप

    यह कविता संग्रह वैशाली की माटी की महक में तो सनी हुई है ही, कवि ने इसे अत्यन्त कलात्मक रूप भी प्रदान किया है। उसकी ‘गनीमत है’—जैसी कविताएँ इसका साक्ष्य प्रस्तुत करती हैं। उनका मानसिक क्षितिज अपने साथ लिखने वाले कवियों की तुलना में कितना विस्तृत है, यह उनकी ‘पृथ्वी दिवस, 1991’ जैसी कविताओं से जाना जा सकता है। एक खास बात यह कि मदन कश्यप के पास राजनीति से लेकर विज्ञान तक की गहरी जानकारी है, जिसका वे अपनी कविताओं में बहुत ही सृजनात्मक उपयोग करते हैं। इसका प्रमाण उनकी ‘तिलचट्टे’ जैसी सशक्त कविताओं में मिलता है।

    नौवाँ दशक कविता की वापसी का दशक है। ऐसा कहना न केवल इस दृष्टि से सार्थक है कि इसमें कविता फिर साहित्य के केन्द्र में स्थापित हो गयी, बल्कि इस दृष्टि से भी कि इसमें गहरी सामाजिक प्रतिबद्धता वाली कविता अपने निथरे रूप में सामने आयी और पूरे परिदृश्य पर छा गयी। मदन कश्यप का संग्रह किंचित विलम्ब से निकल रहा है, वह भी मित्रों की प्रेरणा और दबाव से, लेकिन उनकी कविताएँ उक्त निथरी हुई कविता का बहुत बढ़िया उदाहरण हैं। इन कविताओं की विशिष्टता यह है कि ये वैशाली की माटी की महक में तो सनी हुई हैं ही, कवि ने इन्हें अत्यन्त कलात्मक रूप भी प्रदान किया है। उसकी ‘गनीमत है’-जैसी कविताएँ इसका साक्ष्य प्रस्तुत करती हैं। उसका मानसिक क्षितिज अपने साथ लिखने वाले कवियों की तुलना में कितना विस्तृत है, यह उसकी ‘पृथ्वी दिवस, 1991’ जैसी कविताओं से जाना जा सकता है। एक खास बात यह कि मदन कश्यप के पास राजनीति से लेकर विज्ञान तक की गहरी जानकारी है, जिसका वे अपनी कविताओं में बहुत ही सृजनात्मक उपयोग करते हैं। इसका प्रमाण उनकी ‘तिलचट्टे’ जैसी सशक्त कविताओं में मिलता है। लेकिन कविता क्या सोद्देश्य सृष्टि ही है? मदन कश्यप ने प्रतिबद्धता को संकीर्ण अर्थ में नहीं लिया, वरना वे न तो ‘चिड़िया का क्या’ जैसी नाजुक कविता लिख पाते, न ही ‘किराये के घर में’ जैसी ‘निरुद्देश्य’ कविता। तात्पर्य यह कि उनकी कविताओं में वह नजाकत और ‘निरुद्देश्यता’ भी मिलती है, जो इनकी अनुभूति को नया सौन्दर्यात्मक आयाम प्रदान करके उन्हें समृद्ध करती है। बिना इस नजाकत और ‘निरुद्देश्यता’ के प्रतिबद्ध कविता भी पूरी तरह सार्थक नहीं हो सकती है। कुल मिलाकर मदन कश्यप का यह संग्रह समकालीन हिन्दी कविता के ‘बसन्तागमन’ की पूरी झलक देता है, जिसमें ‘पलाश के जंगल से दहकते आसमान में/ अमलतास के गुच्छे-सा खिलता है सूरज!’



    112.00
  • Kavita Bhavita – Gyanendrapati – Paperback

    Kavita Bhavita – Gyanendrapati (Paperback)

    कविता क्या है’ का ठीक-ठीक उत्तर न आलोचकप्रवर रामचंद्र शुक्ल ढूँढ पाये न अन्य विदग्ध जन, कोशिशें तो निरंतर की जाती रहीं-न जाने कब से। सो परिभाषाएँ तो ढेरों गढ़ी गईं, लेकिन वे अधूरी लगती रहीं। पारे को अंगुलियों से उठाना संभव न हो सका।

    171.00190.00
  • Tani Hui Rassi Par by Sanjay Kundan Paperback

    Tani Hui Rassi Par by Sanjay Kundan – Paperback Edition
    तनी हुई रस्सी पर – संजय कुंदन

    संजय कुंदन की कविता वर्तमान में, हमारे चारों तरफ घटित हो रहे विद्रूपों, विपर्ययों और रूपान्तरणों की बाहरी-भीतरी तहों. उनकी छिपी हई परतों में जाती है और एक ऐसा परिदृश्य तामीर करती है जिसमें हम राजनीतिक सत्ता-तन्त्रों, तानाशाह व्यवस्थाओं की क्रूरता, धूर्तता और ज्यादातर मध्यवर्गीय संवेदनहीनताओं को हलचल कर

    117.00
  • Ganga Beeti (Gangu Teli Ki Jabani) By Gyanendrapati PaperBack

    Ganga Beeti (Gangu Teli Ki Jabani) Paperback Edition
    गंगा-बीती (गंगू तेली की ज़बानी)

    इक्कीसवीं सदी दहलीज पर थी, जब ज्ञानेन्द्रपति का कविता-संग्रह ‘गंगातट’ शाया हुआ था। तब हिंदी जगत् में उसका व्यापक स्वागत हुआ था और उसे नयी राह खोजने वाली कृति की तरह देखा-पढ़ा गया था। ‘गंगातट’ को किन्हीं ने प्रकृति और सभ्यता के द्वन्द्वस्थल के रूप में चीन्हा था, तो किन्हीं को वहाँ वैश्विक परिदृश्य में हो रहे परिवर्तनों को स्थानिकता की जमीन पर लखने का ईमानदार उद्यम दिखा था जिसमें भूमण्डलीकरण के नाम पर भूमण्डीकरण में जुटे बेलगाम साम्राज्यवादी पूँजीवाद का प्रतिरोध परिलक्षित किया जा सकता था।

    172.00
  • Ujalon Ko Khabar Kar Do – Balli Singh Cheema

    Ujalon Ko Khabar Kar Do – Balli Singh Cheema

    उजालों को ख़बर कर दो’ – बल्ली सिंह चीमा का पाँचवाँ और नवीनतम संग्रह है। इस नये संग्रह की ग़ज़लें और उसके शेर राजनीतिक समझ और आसपास के वातावरण से उपजे हैं। निश्चित रूप से यह राजनीतिक समझ जन सरोकारों से ओतप्रोत है। जनपक्षी राजनीति और आसपास के परिवेश के चित्र उभारने के कारण चीमा जी का यह संग्रह भी जनता का विश्वास और प्यार पा सकेगा-हमें ऐसा विश्वास है। जनता इससे जुड़ पाएगी। ये ग़ज़लें इश्क और दर्द की परंपरा से बाहर, एक संवेदनशील नागरिक की प्रतिक्रियाएँ हैं। ये प्रतिक्रियाएँ व्यवस्था के विरुद्ध हैं, पर कभी-कभी अभिव्यक्ति के लिए स्पष्टता और सूक्ष्मता के लिए संज्ञाओं का सहारा भी लिया गया है। पिछले संग्रहों की तुलना में, इस संग्रह की भाषा परिपक्व हुई है। आज के सामाजिक-राजनीतिक जीवन की त्रासदियों की गहरी समझ से भी भाषा परिपक्व हुई है और संवेदनात्मक संरचना की गुणात्मक अभिवृद्धि से भी। संभवतः इसीलिए भूमिका में प्रणय कृष्ण ने लिखा है- ” ‘उजालों को ख़बर कर दो’ बल्ली सिंह चीमा की काव्य-यात्रा की नयी मंजिल है। यह संग्रह उनके पाठकों में नयी चेतना का संस्कार करेगा और पहले की तरह ही इस संग्रह की ग़ज़लें भी आज के भारत के जनांदोलनों का कंठहार बनेंगी, इसमें कोई संदेह नहीं।”

    101.00112.00
  • Neem Roshni Main – Madan Kashyap

    Neem Roshni Main – Madan Kashyap
    नीम रोशनी में- मदन कश्यप

    मदन कश्यप की कविताओं का यह नया संग्रह ‘नीम रोशनी में’ की गयी एक सघन यात्रा की तरह है जो हमारे समाज के इतिहास, यथार्थ और नियति के सवालों से सामना करती चलती है। इस नीम रोशनी में’ हालाँकि सब कुछ दीखता है पर कुछ भी साफ़-साफ़ नहीं दीखता और इसमें कविता भी नहीं लिखी जा सकती, फिर भी मदन कश्यप का ‘कालयात्री’ मोहनजोदेडो-हडप्पा और बेबीलोनी सभ्यताओं से गुजरता हुआ, उन्हें जगाता हुआ, एक रोमांचक मानवीय अतीत को लाँघता उस वर्तमान तक आता है जो भूमंडलीकरण और लुटेरी व्यवस्थाओं और भूखी आबादियों का वर्तमान है। ‘कालयात्री’ इस संग्रह की अंतिम कविता है और इस लंबी कविता में मदन अन्याय के बरक्स प्रेम का एक ऐतिहासिक विमर्श रचते हैं जिसमें अंततः प्रेम का विमर्श बचा रहता है। ‘कालयात्री’ एक महत्त्वपूर्ण कविता है जिसमें यह महादेश ‘एक लंबी सुरंग से गुजरती ट्रेन की तरह है’ और ‘हँसी के झरनों’ और ‘उजास की दुनिया’ के लिए कवि की यात्रा जारी है। यह संग्रह चार दिलचस्प हिस्सों में बँटा है। पहले फलक में सभ्यता, इतिहास, संस्कृति और लोकजीवन का राग-विराग और स्वप्न है। यह हिस्सा इस काव्यात्मक तरकीब का भी अच्छा उदाहरण है कि लोकजीवन और स्मृति से हम क्या कुछ ले सकते हैं। ‘आँझुलिया और ‘माँ का गीत’ जैसी कविताएँ ऐसी ही लोकनिश्छलता की अभिव्यक्ति हैं। दूसरे हिस्से में एक हताशा, एक उदासी से हमारी मुठभेड़ होती है जिसमें ‘भय’, ‘झूठ’, ‘गुनाह’, ‘लालच’, और ‘ऊब’ जैसी कविताओं के जरिये सच को बचाने की चिंता प्रकट हुई है। तीसरे अंश में हम हताशा के माहौल में जन्म लेती क्रूरता को देखते हैं। इन कविताओं में हमारी व्यवस्था की अमानवीयता और अन्याय से पीड़ित समाज का, एक दयनीय देश का, विजेता की हँसी का और कुल मिला कर एक भयावह समय’ का विमर्श है। यह ऐसा वक़्त है कि ‘फूलों को देख कर कहना मुश्किल हो कि फूल ही हैं।’ ख़ास बात यह है कि चौथे अंश तक आते-आते मदन कश्यप का ‘कालयात्री’ नीम रोशनी और तपती हुई सड़क के निर्मम सूनेपन में भी फिर’ सभ्यताओं की अंतर्यात्रा करता हुआ उस लोकजीवन में लौटना चाहता है जहाँ आषाढ़ की बारिश में उपजे मोथे की जड़ों सी मीठी यादें हैं।’ यह एक कवि का बुनियादी आशावाद है, जो शब्दों को बेचने से इनकार करता है और एक प्रेम विरोधी व्यवस्था में प्रेम को संभव करता है। मदन का यह संग्रह इस अर्थ में भी महत्त्वपूर्ण है कि वे सिर्फ लोकजीवन की मासूम लगती सतह पर ही नहीं रहते. उसमें पैठते हैं, उसकी नयी जड़ों तक जाते हैं और शायद यही वजह है कि कई कविताओं में जनता की बोली-बानी के कई नये शब्द, नयी अभिव्यक्तियाँ हिंदी काव्यभाषा को दे जाते हैं।


    Kindle E-Book Also Available

    Available on Amazon Kindle

    117.00130.00
  • Door Tak Chuppi By Madan Kashyap

    Door Tak Chuppi By Madan Kashyap
    दूर तक चुप्पी – मदन कश्यप

    मदन कश्यप के इस नये संग्रह की कविताओं की एक खास बात यह है कि सभी कविताएँ छोटी हैं और विषम पंक्तियों की हैं।

    110.00
  • Pansokha Hai Indradhanush – Madan Kashyap Paperback

    Pansokha Hai Indradhanush – Madan Kashyap – Paperback Edition
    पनसोखा है इन्द्रधनुष – मदन कश्यप

    सन् 1972-73 के आस-पास से अपनी काव्य-यात्रा शुरू करने वाले कवि मदन कश्यप का छठा संग्रह है-‘पनसोखा है इन्द्रधनुष’। लगभग आधी शताब्दी की यह काव्य-यात्रा कई मायनों में विशिष्ट रही है, चुनौतीपूर्ण भी। मदन कश्यप के काव्य-व्यक्तित्व के वैशिष्ट्य को यह संग्रह कई अर्थों में ज्यादा प्रोद्भासित करता है।

    105.00
  • Ujaas – Jitendra Shrivastav Paperback

    Ujaas – Jitendra Shrivastav – Paperback Edition

    1990 के आसपास जिन कवियों ने लिखना आरंभ किया और साहित्य में अपने लिए एक अलग पहचान बनायी, उनमें जितेन्द्र श्रीवास्तव महत्त्वपूर्ण हैं। प्रस्तुत संग्रह ‘उजास’ उनके तीन पूर्ववर्ती संग्रहों का समुच्चय है। ये संग्रह हैं- ‘अनभै कथा’ (2003), ‘असुंदर सुंदर’ (2008) और ‘इन दिनों हालचाल’ (2000, 2011)।

    270.00300.00
  • Chhaya Ka Samudra By Mahesh Alok PaperBack

    Chhaya Ka Samudra By Mahesh Alok

    नब्बे के बाद जिन काव्य-व्यक्तित्वों का विकास हुआ, उसमें महेश आलोक प्रमुख हैं। यह समय सिर्फ कविता के स्वर बदलने का नहीं है। भारतीय समाज, उसकी राजनीति सब कुछ अनिवार्यतः बदल रही थी। इस बदलाव के कारण कविता की संवेदनात्मक संरचना बदल गयी।

    131.00145.00
  • Bolo Na Darvesh By Smita Sinha

    Bolo Na Darvesh By Smita Sinha – Hardcover
    बोलो न दरवेश – स्मिता सिन्हा

    ‘बोलो न दरवेश’ कवयित्री स्मिता सिन्हा का पहला कविता संग्रह है जिसमें स्त्री अस्मिता के प्रश्नों के साथ समाज प्रकृति, पर्यावरण और प्रेम के विविध रंग उपस्थित हैं।


    Kindle E-Book Also Available

    Available on Amazon Kindle

    306.00340.00