Jeevan Ho Tum By Nishant -Paperback

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Jeevan Ho Tum By Nishant – Paperback

एक ऐसे कठिन समय में जब चारों तरफ सामाजिक-राजनीतिक स्तर पर उथल-पुथल मची हुई हो, जब आम आदमी के हित को बहुत पीछे छोड़ सत्ता और तन्त्र के पक्ष में एक खास तरह की मानसिकता तैयार की जा रही हो, जब आम आदमी की जिंदगी को चन्द अस्मिताओं में सिमटा कर उसे वोट बैंक में तब्दील किया जा रहा हो, प्रेम को या तो हिंसा का सबसे बड़ा हथियार बनाया जा रहा हो या इस बाजारवादी संस्कृति में जिसके महत्त्व का अवमूल्यन किया जा रहा हो, तब प्रेम के लिए इस सबसे भयावह समय में निशान्त का प्रेम कविताओं का यह संग्रह कोमल पत्तों पर ओस के फाहे जैसा है। यह संग्रह जहाँ एक तरफ हमें सुकून देता है, वहीं दूसरी तरफ अपने स्वरूप में प्रतिरोध का एक नया अध्याय भी रचता है। निशान्त की कविताएँ अपने समय का अन्तर्पाठ हैं। वे कविताओं में राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तन को बहुत ही बारीकी से पकड़ने वाले कवि हैं। उनकी कविताओं को जब समग्रता में पढ़ा जाए और उसी क्रम में इन कविताओं को रखा जाए, तब यह स्पष्ट होता है कि प्रेम कविताओं का यह संग्रह भी अपने समय से जुड़कर और जूझकर रचित हुआ है। दुनिया के सारे दुखों पर/ मरहम लगाता है एक वाक्य /’मैं तुम्हें प्यार करता हूँ। राजनीतिक विद्रूपताओं के बीच यह संग्रह प्रेम का आख्यान है। इन प्रेम कविताओं को निरी प्रेम कविताएँ न मानकर इन्हें विद्रूप स्थितियों के बीच प्रेम को बचाने की एक कवि की कोशिश के रूप में देखा जाना चाहिए। एकदम ‘इलिस माछ’ की तरह, जो पानी से एक सेकेण्ड के लिए बिछड़ते ही प्राण त्याग देती है। और साथ ही इनमें एक खास तरह का उद्दाम आवेग है-‘पागल और बच्चों की तरह का।’ यहाँ कोई दाँवपेच नहीं है, कोई चालाकी नहीं, कोई स्वार्थ नहीं और बाजार का कोई षड्यन्त्र भी नहीं। यहाँ प्रेमियों की कोई अस्मिता नहीं है, वे सिर्फ प्रेमी हैं। धर्म, जाति, भाषा, प्रदेश, वर्ग सभी विभेदों से ऊपर उठकर यहाँ सिर्फ प्रेम है जो अपने स्वरूप में इस क्रूर सत्ता के क्रूर चरित्र के बरक्स प्रतिरोध के आख्यान का रूप ले लेता है। इसलिए यह प्रेम अपने समय का प्रतिआख्यान तैयार करता है। भक्ति आन्दोलन में जिस वैकल्पिक दुनिया का ख्वाब कवियों ने देखा था निशान्त ने अपनी कविताओं में उसी वैकल्पिक दुनिया का इस क्रूरतम दुनिया में ख्वाब बुना है। यह एक कवि का ख्वाब है जिसकी जड़ें जनमानस के भीतर गहरी धंसी हुई हैं। निशान्त की भाषा इन कविताओं में इतनी कोमल है कि कठोर हृदयवाला भी गलने लगता है। चूँकि वे बंगाल में रहते हैं इसलिए बांग्ला भाषा की जो हल्की-सी छुअन यहाँ है, वह इन कविताओं को थोड़ा और खूबसूरत, थोड़ा और सुन्दर बना देती है।

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Description

एक ऐसे कठिन समय में जब चारों तरफ सामाजिक-राजनीतिक स्तर पर उथल-पुथल मची हुई हो, जब आम आदमी के हित को बहुत पीछे छोड़ सत्ता और तन्त्र के पक्ष में एक खास तरह की मानसिकता तैयार की जा रही हो, जब आम आदमी की जिंदगी को चन्द अस्मिताओं में सिमटा कर उसे वोट बैंक में तब्दील किया जा रहा हो, प्रेम को या तो हिंसा का सबसे बड़ा हथियार बनाया जा रहा हो या इस बाजारवादी संस्कृति में जिसके महत्त्व का अवमूल्यन किया जा रहा हो, तब प्रेम के लिए इस सबसे भयावह समय में निशान्त का प्रेम कविताओं का यह संग्रह कोमल पत्तों पर ओस के फाहे जैसा है। यह संग्रह जहाँ एक तरफ हमें सुकून देता है, वहीं दूसरी तरफ अपने स्वरूप में प्रतिरोध का एक नया अध्याय भी रचता है। निशान्त की कविताएँ अपने समय का अन्तर्पाठ हैं। वे कविताओं में राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तन को बहुत ही बारीकी से पकड़ने वाले कवि हैं। उनकी कविताओं को जब समग्रता में पढ़ा जाए और उसी क्रम में इन कविताओं को रखा जाए, तब यह स्पष्ट होता है कि प्रेम कविताओं का यह संग्रह भी अपने समय से जुड़कर और जूझकर रचित हुआ है। दुनिया के सारे दुखों पर/ मरहम लगाता है एक वाक्य /’मैं तुम्हें प्यार करता हूँ। राजनीतिक विद्रूपताओं के बीच यह संग्रह प्रेम का आख्यान है। इन प्रेम कविताओं को निरी प्रेम कविताएँ न मानकर इन्हें विद्रूप स्थितियों के बीच प्रेम को बचाने की एक कवि की कोशिश के रूप में देखा जाना चाहिए। एकदम ‘इलिस माछ’ की तरह, जो पानी से एक सेकेण्ड के लिए बिछड़ते ही प्राण त्याग देती है। और साथ ही इनमें एक खास तरह का उद्दाम आवेग है-‘पागल और बच्चों की तरह का।’ यहाँ कोई दाँवपेच नहीं है, कोई चालाकी नहीं, कोई स्वार्थ नहीं और बाजार का कोई षड्यन्त्र भी नहीं। यहाँ प्रेमियों की कोई अस्मिता नहीं है, वे सिर्फ प्रेमी हैं। धर्म, जाति, भाषा, प्रदेश, वर्ग सभी विभेदों से ऊपर उठकर यहाँ सिर्फ प्रेम है जो अपने स्वरूप में इस क्रूर सत्ता के क्रूर चरित्र के बरक्स प्रतिरोध के आख्यान का रूप ले लेता है। इसलिए यह प्रेम अपने समय का प्रतिआख्यान तैयार करता है। भक्ति आन्दोलन में जिस वैकल्पिक दुनिया का ख्वाब कवियों ने देखा था निशान्त ने अपनी कविताओं में उसी वैकल्पिक दुनिया का इस क्रूरतम दुनिया में ख्वाब बुना है। यह एक कवि का ख्वाब है जिसकी जड़ें जनमानस के भीतर गहरी धंसी हुई हैं। निशान्त की भाषा इन कविताओं में इतनी कोमल है कि कठोर हृदयवाला भी गलने लगता है। चूँकि वे बंगाल में रहते हैं इसलिए बांग्ला भाषा की जो हल्की-सी छुअन यहाँ है, वह इन कविताओं को थोड़ा और खूबसूरत, थोड़ा और सुन्दर बना देती है।

About the Author:

जन्म : 4 अक्टूबर,1978, लालगंज, बस्ती (उ. प्र.)। एम ए,एम फिल, पी-एच.डी. (हिंदी) की पढ़ाई जेएनयू से। निशान्त का शैक्षणिक नाम ‘बिजय कुमार साव’ और घर का नाम ‘मिठाईलाल’ है। पहली कविता 1993 में मिठाईलाल के नाम से ‘जनसत्ता’ में प्रकाशित। ‘जवान होते हुए लड़के का कबूलनामा’, ‘जी हाँ, लिख रहा हूँ…’, ‘जीवन हो तुम’ (कविता संग्रह)। जीवनानन्द दास पर हिंदी में पहली आलोचना पुस्तक ‘जीवनानन्द दास और आधुनिक हिन्दी कविता’ प्रकाशित। कविताओं का अंग्रेजी, उर्दू, बांग्ला, ओड़िया, मराठी, गुजराती सहित कई भारतीय भाषाओं में अनुवाद। बचपन से बंगाल में रहनवारी। बांग्ला साहित्य और फिल्मों से लगाव। रवीन्द्रनाथ टैगोर की 13 कविताओं पर आधारित फिल्म त्रयोदशी में अन्तरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त फिल्मकार और कवि बुद्धदेव दासगुप्ता के साथ बतौर सहायक निर्देशक और अभिनेता कार्य। रवीन्द्रनाथ ठाकुर, जीवनानन्द दास, सत्यजीत रे, महाश्वेता देवी, सुनील गंगोपाध्याय, संख घोष, नवारुण भट्टाचार्य, जय गोस्वामी, बुद्धदेव दासगुप्ता, आलोक सरकार से लेकर बंगाल के युवा कवियों की कविताओं का बांग्ला से हिंदी अनुवाद। अनुवाद की तीन पुस्तकें प्रकाशित। कविता के लिए भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार, नागार्जुन शिखर सम्मान, शब्द साधना युवा सम्मान, नागार्जुन प्रथम कृति सम्मान, मलखान सिंह सिसोदिया पुरस्कार से सम्मानित।

Additional information

ISBN

9788194008743

Author

Nishant

Binding

Paperback

Pages

124

Publisher

Setu Prakashan Samuh

Imprint

Setu Prakashan

Language

Hindi

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