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Faasiwaad Ki Dastak By RaviBhushan

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अँग्रेज़ों ने यह कार्य (विभक्तीकरण और विभेदीकरण का) अपने स्वार्थ के लिए किया था। देश पर हुकूमत क़ायम करने के लिए देशवासियों को धर्मों, मज़हबों और विभिन्न धड़ों में विभाजित करना उनके अपने लिए फ़ायदेमन्द था। स्वतन्त्र भारत में वही तरीक़ा-कभी कम, कभी अधिक अपनाया जाता रहा है। यह भारत की आत्मा को कुचलना और लहूलुहान करना है। यहीं से सद्भाव समाप्त होने लगा और दुर्भाव बढ़ने लगा। देश में चुनौतियों और संकटों का इस स्थिति में बढ़ना, बढ़ते जाना स्वाभाविक था। आज भारतीय लोकतन्त्र और ‘सेकुलरिज्म’ के समक्ष जैसी चुनौतियाँ हैं, वैसी पहले कभी नहीं थीं।

– इसी पुस्तक से


ऐसे आलोचक कम ही होंगे जो साहित्य के इलाके से बाहर आकर भी अपने समय और समाज के बारे में सीधे अपनी बात कहते हों। और जब इस कहने की क़ीमत चुकानी पड़ सकती हो तब तो खुलकर बोलने-लिखने का माद्दा और भी कम लोगों में दीखता है। रविभूषण हिन्दी के ऐसे आलोचक हैं जो अभिव्यक्ति के खतरे उठाते रहे हैं। इसका प्रमाण है उनकी नयी किताब फ़ासीवाद की दस्तक। इसमें उनके पिछले कुछ बरसों में लिखे गये लेख संकलित हैं। यों तो इनमें से कुछ ही लेख सीधे फ़ासीवाद पर हैं लेकिन दूसरे लेखों में भी यही चिन्ता मुखर है कि ‘हम एक खतरनाक मोड़ पर हैं’। हमारे गणतन्त्र और संविधान पर गम्भीर खतरा मँडरा रहा है। ख़ासकर पिछले एक दशक में देश की सारी लोकतान्त्रिक संस्थाओं को लगातार कमजोर किया गया है, नागरिक आज्जादी पर हमले बढ़े हैं, जन आन्दोलनों तथा असहमति को कुचलने के लिए कड़े क़ानूनों का बेजा इस्तेमाल बढ़ा है, मीडिया स्वतन्त्र और निष्पक्ष नहीं रह गया है, यही नहीं न्यायपालिका पर भी भरोसा कमज़ोर हुआ है। ऐसे में लेखक फ़ासीवाद को मिटाने और लोकतन्त्र को बचाने की बार-बार गुहार लगाता है तो यह स्वाभाविक ही है। आख़िर आलोचक का काम सिर्फ़ साहित्य-समीक्षा नहीं है, सभ्यता-समीक्षा भी है; और कोई भी सभ्यता-समीक्षा वर्तमान से आँख चुराकर नहीं हो सकती। मौजूदा वक़्त का सबसे बड़ा सच यह है कि आज देश को बचाने का मतलब भारत की संकल्पना को, ‘आइडिया ऑफ इण्डिया’ को बचाना है। यह किताब हमारे वर्तमान को जानने-समझने का जतन तो है ही, एक आलोचक की निडर बौद्धिक भूमिका का साक्ष्य भी है।


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Description

Faasiwaad Ki Dastak By RaviBhushan

फासीवाद की दस्तक – रविभूषण


About the Author

सम्भवतः 17 दिसम्बर 1946 को बिहार प्रान्त के मुज़फ़्फ़रपुर जिले के गाँव चैनपुर-धरहरवा के एक सामान्य परिवार में जन्मे रविभूषण की प्रारम्भिक शिक्षा गाँव के आसपास हुई। बिहार विश्वविद्यालय के लंगट सिंह कॉलेज से हिन्दी ऑनर्स (1965) और हिन्दी भाषा-साहित्य में एम.ए. (1967-68)। भागलपुर विश्वविद्यालय से डॉ. बच्चन सिंह के निर्देशन में ‘छायावाद में रंग-तत्त्व’ पर पी-एच.डी. (1985)1 नवम्बर 1968 से अध्यापन कार्य। टी. एन. बी. कॉलेज, भागलपुर में पदस्थापित। भागलपुर विश्वविद्यालय में ही रीडर और प्रोफेसर बने। 1991 में राँची विश्वविद्यालय में स्थानान्तरण। अक्टूबर 2008 में राँची विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष पद से सेवानिवृत्त।
आलोचनात्मक लेखन का आरम्भ 1971-72 से। 1978-79 से सांस्कृतिक मोर्चे पर सर्वाधिक सक्रिय। पहले ‘नव जनवादी सांस्कृतिक मोर्चा’ और बाद में ‘जन संस्कृति मंच’ से सम्बद्ध। फ़िलहाल ‘जसम’ के राष्ट्रीय अध्यक्ष।
विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नियमित लेखन। समय और समाज को केन्द्र में रखकर साहित्य एवं साहित्येतर विषयों पर विपुल लेखन।
प्रकाशित पुस्तकें : ‘वैकल्पिक भारत की तलाश’, ‘कहाँ आ गये हम वोट देते देते?’, ‘बुद्धिजीवियों की जिम्मेदारी’, ‘आजादी सपना और हक़ीक़त’ और ‘रामविलास शर्मा का महत्त्व’ प्रकाशित। कई पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य।

Additional information

Author

Ravi Bhushan

Binding

Paperback

Language

Hindi

ISBN

9788119899548

Publication date

10-02-2024

Publisher

Setu Prakashan Samuh

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