Faasiwaad Ki Dastak By RaviBhushan

25% off

अँग्रेज़ों ने यह कार्य (विभक्तीकरण और विभेदीकरण का) अपने स्वार्थ के लिए किया था। देश पर हुकूमत क़ायम करने के लिए देशवासियों को धर्मों, मज़हबों और विभिन्न धड़ों में विभाजित करना उनके अपने लिए फ़ायदेमन्द था। स्वतन्त्र भारत में वही तरीक़ा-कभी कम, कभी अधिक अपनाया जाता रहा है। यह भारत की आत्मा को कुचलना और लहूलुहान करना है। यहीं से सद्भाव समाप्त होने लगा और दुर्भाव बढ़ने लगा। देश में चुनौतियों और संकटों का इस स्थिति में बढ़ना, बढ़ते जाना स्वाभाविक था। आज भारतीय लोकतन्त्र और ‘सेकुलरिज्म’ के समक्ष जैसी चुनौतियाँ हैं, वैसी पहले कभी नहीं थीं।

– इसी पुस्तक से

 

Buy This Book with 1 Click Via RazorPay (15% + 5% discount Included)

412.50550.00

In stock

Faasiwaad Ki Dastak By RaviBhushan

फासीवाद की दस्तक – रविभूषण

SKU: Faasiwaad Ki Dastak-Paperback
Category:
Author

Ravi Bhushan

Binding

Paperback

Language

Hindi

ISBN

9788119899548

Publication date

10-02-2024

Publisher

Setu Prakashan Samuh

Customer Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Faasiwaad Ki Dastak By RaviBhushan”

You may also like…

  • Inshallah By Abhiram Bhadkamkar

    मुस्लिम समाज की तरफ देखने के आज तक के सारे एक तरफा और दुराग्रही दृष्टिकोण को नकारते हुए, स्पष्ट भाषा में, बेबाक वास्तव का चित्रण कराने वाले इस उपन्यास ने विचार के स्तर पर एक नये मन्थन का आरम्भ किया है।

    यह उपन्यास मुस्लिम समाज की आज की स्थिति और बहुसंख्यकों के साथ के उनके जटिल रिश्तों का भी विमर्श प्रस्तुत करता है।

    मुस्लिम समाज में व्याप्त धार्मिक संकीर्णता, रूढ़िवादिता, परम्परा और उनकी कर्मठता पर भाष्य करते हुए इस समाज को वोट बैंक बनाकर रखने और इस्तेमाल करने की राजनीतिक मानसिकता को भी आड़े हाथ लेता है।

    361.00425.00
  • Navmanavvad : Swatantrya Aur Loktantra Ka Darshan – V. M. Tarkunde

    Navmanavvad : Swatantrya Aur Loktantra Ka Darshan – V. M. Tarkunde
    नवमानववाद स्वातंत्र्य और लोकतंत्र का दर्शन

    125.00
  • Matibhram By Raju Sharma

    मतिभ्रम – राजू शर्मा

    “‘मतिभ्रम’ एक ऐसा उपन्यास है, जिसे राजू शर्मा ने अपने रचनात्मक धीरज से सम्भव बनाया है। यह रचनात्मक धीरज भी इकहरा नहीं है, इसकी बहुस्तरीयता का आधार जीवन से गहरी आसक्ति और गम्भीर राजनीतिक समझ है। जीवन से आसक्ति और गहरी राजनीतिक समझ से निर्मित संवेदनात्मक संरचनाएँ घटनाओं को उन क्षितिजों तक पहुँचाती हैं, जहाँ तक अमूमन कथा विन्यास में उनका विन्यस्त हो पाना दुरूह होता है…”


    Kindle E-Book Also Available
    Available on Amazon Kindle

    468.00600.00
  • Bharat Shudron Ka Hoga – Kishan Patnayak (Paperback)

    Bharat Shudron Ka Hoga – Kishan Patnayak
    भारत शूद्रों का होगा – किशन पटनायक

    वरिष्ठ राजनैतिक विचारक-कार्यकर्ता किशन पटनायक की यह पहली पूरी किताब है। जाहिर है इसे छापते हुए कोई भी प्रकाशक निहाल होता-हमारे जैसे नये प्रकाशन के लिए तो यह गौरव की बात ही है।

    श्री पटनायक कोई लेखक नहीं हैं-सक्रिय और गम्भीर राजनीतिकर्मी हैं। बहुत कम उम्र में 1962 में सांसद बनकर उन्होंने चीन के हाथों हुई पराजय का सवाल हो या प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू के खर्च का, सरकार और संसद के अँग्रेजी की प्रधानता का सवाल हो या तत्कालीन काँग्रेसी नीतियों पर पहली बार सार्थक सवाल खड़े करने का, सभी पर खुलकर बोला और पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींचा। उस संसद में समाजवादी पार्टी के सिर्फ़ दो ही सांसद गये थे-डॉ. राममनोहर लोहिया और मधु लिमये जैसे लोग बाद में उप चुनाव जीत कर आए थे। लेकिन नौजवान किशन पटनायक ने विपक्ष की भूमिका बखूबी निभायी थी।

    वे डॉ. लोहिया के उन कुछेक शिष्यों में से एक हैं जिन्होंने उनकी मृत्यु के बाद लोहिया विचार मंच चलाया और लोहिया के बाद देश में हुए लगभग सभी बड़े आन्दोलनों में सक्रिय रूप से भाग लिया। पर वे सत्ता की होड़ वाली किसी पार्टी में नहीं गये और लगातार देश-समाज की समस्याओं, नयी प्रवृत्तियों पर गम्भीर चिन्तन-मनन करते रहे। नये राजनैतिक कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण का काम भी उन्होंने बखूबी किया है। लोहिया विचार मंच हो या 1974 का आन्दोलन, फिर समता संगठन और अब समाजवादी जन परिषद से जुड़कर वे लगातार एक आदर्शवादी वैकल्पिक राजनैतिक संगठन खड़ा करने की कोशिश में जुटे हुए हैं।

    जैसा कि पहले कहा गया है, वे कोई लेखक नहीं हैं पर वे ‘सामयिक वार्ता’ नामक राजनैतिक पत्रिका का सम्पादन 1977 से कर रहे हैं। इसके पहले वे ‘जन’ और ‘मैनकाइण्ड’ से जुड़े रहे हैं। और इन पत्रिकाओं के माध्यम से हो या दूसरे अखबारों में लेख लिखकर, अपने भाषणों और प्रशिक्षण शिविरों की बातचीत से उन्होंने किताबें लिखने वालों के लिए पर्याप्त सामग्री जुटायी है, देश में बौद्धिक बहसें छेड़ी हैं। उल्लेखनीय है कि सबसे पहले ‘सामयिक वार्ता’ ने ही जनता पार्टी में दोहरी सदस्यता का सवाल उठाकर इसे राष्ट्रीय बहस का मुद्दा बनाया था।


    Kindle E-book Also Available
    Available on Amazon Kindle

    126.00140.00