Gandhi Katha 1 : Yooh Hi Nahi Sardar
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`गांधी कथा -1 – यूं ही नहीं सरदार’ – अरविन्द मोहन
अरविन्द मोहन द्वारा पाँच खण्डों में लिखी गई गांधी कथा उस अर्थ में कथा नहीं है। यह उतना ही प्रामणिक है जितना किसी इतिहास को होना चाहिए। लेकिन यह विधिवत इतिहास नहीं है, क्योंकि इसमें कालक्रम से घटनाओं और तथ्यों का ब्योरा व् सिलसिला नहीं है। यह एक वृहत वृतान्त है जिसे किस्सागोई के अन्दाज़ में लिखा गया है। बेशक इस वृतान्त के केन्द्र में गांधी हैं, पर यह वृतान्त सिर्फ़ उनका नहीं है, उनके सहयोगियों और हमसफर रहे लोगों का भी है जिन्होंने सद्गुण साधना करते हुए देश की आजादी की लड़ाई तथा अन्य सार्वजनिक कामों में अपने को झोंक दिया।
कथाएँ अमूमन कल्पना-प्रसूत या कल्पना-मिश्रित होती हैं। पाँच खण्डों में लिखी गयी ‘गांधी कथा’ उस अर्थ में कथा नहीं है। यह उतना ही प्रामाणिक है जितना किसी इतिहास को होना चाहिए। लेकिन यह विधिवत इतिहास नहीं है, क्योंकि इसमें कालक्रम से घटनाओं और तथ्यों का ब्योरा व सिलसिला नहीं है।
यह दरअसल एक वृहत् वृत्तान्त है जिसे किस्सागोई के अन्दाज में लिखा गया है। ढेर सारे प्रसंग हैं, ढेर सारे किस्से, ऐतिहासिक तथ्यों से छनकर आते हुए, गांधी युग के इतिहास से झाँकते हुए। लेखक ने जहाँ कई अलक्षित तथ्यों को उद्घाटित किया है वहीं बहुत से अल्पज्ञात प्रसंगों पर पर्याप्त रोशनी डाली है। बेशक इस वृत्तान्त के केन्द्र में गांधी हैं, पर यह वृत्तान्त सिर्फ उनका नहीं है, उनके सहयोगियों और हमसफर रहे लोगों का भी है जिन्होंने सद्गुण साधना करते हुए देश की आजादी की लड़ाई तथा अन्य सार्वजनिक कामों में अपने को झोंक दिया। ऐसा सदियों में कभी-कभी होता है जब किसी देश और समाज में त्याग, सेवा, समर्पण, साहस और सदाचार की इतनी ज्यादा जीती-जागती मिसालें दिखाई दें। ऐसी बेजोड़ शख्सियतों को जाने बिना न तो गांधी के गहरे प्रभाव को समझा जा सकता है, न स्वाधीनता संग्राम के नैतिक बल को। ऐसे समय जब चतुर्दिक पतनशीलता को ‘न्यू नार्मल’ की तरह बताया-पेश किया जाता हो, ‘गांधी कथा’ को पढ़ना एक हैरत से गुजरना है, साथ ही एक नैतिक आलोड़न से भी। वरिष्ठ पत्रकार लेखक अरविन्द मोहन ‘चम्पारण सत्याग्रह की कहानी’, ‘चम्पारण सत्याग्रह के सहयोगी’ तथा ‘गांधी और कला’ पुस्तकें भी लिख चुके हैं। गांधी के अध्येता के रूप में ‘गांधी कथा’ उनकी नयी देन है।

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