Park Mein Hathi By Vijaya Singh
विजया सिंह का कविता-संग्रह पार्क में हाथी इस बात का साक्ष्य प्रस्तुत करता है कि एक खास कविता ऐसी भी है जो केवल आम जीवन से जुड़े जीवों-छिपकली, तितली, चींटी, खरगोश, कुछ मनुष्य भी और हाँ, पार्क में हाथी और अन्य कुछ निर्जीव पदार्थ-लाल मिर्च, मोटा नमक, रसोई के दूसरे मसाले और हाँ बुरांश के फूल में से गुज़रते हुए एक ऐसे सफ़र पर निकल पड़ी हैं जो पाठक के अवचेतन में कुछ ऐसा असर पैदा करती है जो पौराणिक भी है और आधुनिक भी, छायावादी भी है और प्रगतिवादी भी, व्यक्तिगत भी और सार्वजनिक भी। यह एक बहुत ही ख़ामोश सफ़र है जिसके भीतरी क़दम उतने ही महत्त्वपूर्ण हैं जितने की उसके बाहरी दाँव-पेच (चाहे वो कविता की भाषा, बिम्ब और ध्वनि में व्यक्त होते हैं)। ऐसा कहा जा सकता है कि पार्क में हाथी संकलन में कवयित्री एक भीतरी ध्वनि की खोज में एक ऐसे ख़ामोश और तिलिस्मी सफ़र पर निकली हैं जो शायद कविता के इतिहास में कभी हमने बाड्ला के कवि जीवनानन्द दास में पाया
About the Author:
विजया सिंह कवि, आलोचक और फ़िल्मकार राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर से अँग्रेज़ी साहित्य में पी-एच.डी. और पुणे के फ़िल्म और टेलीविज़न संस्थान से टीवी में निर्देशन । न्यू यॉर्क विश्वविद्यालय में फ़ुल्ब्रायट फ़ेलो, और भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला में फ़ेलो । First Instinct अँग्रेज़ी कविताओं का संग्रह है; Level Crossing : Railway Journeys in Hindi Cinema फ़िल्म आलोचना की किताब है। चण्डीगढ़ के एक राजकीय महाविद्यालय में अँग्रेजी पढ़ाती हैं।
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