Ekchakranagri By Gyanendrapati (Paperback)
एकचक्रानगरी – ज्ञानेन्द्रपति
एकचक्रानगरी ! यह काव्याख्यान अपनी संरचना में ही नाटकीय है; इसे पढ़ते हुए भी आप इसे अपने मन की आँखों के आगे मंचित होता महसूस कर सकते हैं।
‘एकचक्रानगरी’ एक व्यायोग है और नहीं है। है, क्योंकि इसका आकार तनु है, कथा ख्यात है, अधिकतर पुरुष पात्र हैं, स्वल्प स्त्रीजन संयुत है, समरोदय स्त्री के निमित्त नहीं होता, दीप्त काव्य-रस पाठक को अभिसिंचित करता है। नहीं है, क्योंकि इसका इतिवृत्त एक दिन में सम्पन्न नहीं होता, इसलिए भी यह एकांकी नहीं। गोया, यह शुद्ध व्यायोग नहीं। आखिर तो अपन स्पेनिश भाषा के कवि पाब्लो नेरुदा के भी मुरीद ठहरे जो ‘अशुद्ध कविता’ के पैरोकार थे, सो अपन से किसी भी सर्वथा शुद्ध चीज़ की आशा दुराशा ही सिद्ध होनी है, आखिरकार!