Rashtravaad Ki Sachchai Aur Jhooth – Parth Chatterjee Translation By Aanand Swaroop Verma
राष्ट्रवाद की सच्चाई और झूठ – पार्थ चटर्जी
इस पाण्डुलिपि के रचयिता का इरादा कोई ऐसा मिथकीय चरित्र गढ़ना हो जिसके जरिए वह भारतीय राष्ट्रवाद की नयी अवधारणा के सिद्धांतों को सामने लाये।
भारतीय दर्शन के जाने-माने व लगभग मिथकीय नास्तिक और वेद-विरोधी दार्शनिक चार्वाक की तबानी बयान की गयी राष्ट्रवाद के सच और झूठ दरअसल भारतीय राष्ट्रवाद के इतिहास को एक नायाब और बिल्कुल नये अन्दाज में पेश करती है। ऐसा करते हुए वह हिन्दू राष्ट्रवाद और बहुलतावादी सेकुलरवाद दोनों ही मतों की तीखी आलोचना पेश करती है और भारतीय सभ्यता को लेकर चल रही बहसों का निरीक्षण करती है, और बड़ी बारीकी से यह बताती है कि किस तरह वर्तमान भारत की सरहदें बर्तानवी औपनिवेशिक नीतियों, भारत के विभाजन व देशी रियासतों और फ्रांसीसी व पुर्तगाली क्षेत्रों के एकीकरण के जरिये बजूद में आयीं। इस पुस्तक का तोर उपनिवेशवादी निजाम से विरासत में मिले राज्य पर उतना नहीं है जितना लोगों के दीगर मगर बराबरी पर आधारित एकजुटता की बुनियाद पर खड़े नये गणतन्त्र के नैतिक आधार की शिनाख्त करने पर है। धर्म, जाति, जेण्डर, भाषा और क्षेत्रीयता पर हमारे दौर के टकरावों की बेरहम आलोचना के बाद यह किताब एक पुनर्जीवित संघवाद की नयी राजनीति का प्रस्ताव पेश करती है। जटिल अकादमिक शब्दावली में न जाकर यह किताब साधारण पाठक को सम्बोधित करती है और उन तमाम लोगों के काम आएगी जी भारत के भविष्य को लेकर चिन्तित हैं।
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