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Antim Sangrila Ki Dharti Main – Raghubir Chand
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अन्तिम संग्रीला की धरती में -रघुवीर चन्द
प्रधान सम्पादक : अशोक वाजपेयी | सम्पादक : पीयूष दईया
भूटान देखने-समझने की लालसा हर किसी यात्री के मन में विद्यमान होगी। इसका मूल कारण सम्भवतया भूटान का वह विशिष्ट सामाजिक- सांस्कृतिक परिवेश है जो भिन्न-भिन्न कालखण्डों के प्रभाव व स्पर्श से गुज़रते हुए भी अपने मूल स्वभाव के साथ अपनी एक भिन्न पहचान बनाये रखने में सफल रहा है। बौद्ध धर्म की यह धरती द्रुकयुल पूरे बौद्ध संसार की अमूल्य धरोहर है। इसे अन्तिम संग्रीला कहने के पीछे यही भाव निहित है। भूटान में कई शताब्दियाँ एकसाथ विद्यमान एवं साँस लेती हुई देखी जा सकती हैं। भूटान शेष विश्व के सम्पर्क में आने से लम्बे समय तक बचा रहा। न केवल इसका प्राकृतिक वैभव, विविधता व मानवीयता बची रही अपितु इसकी धरती एवं मानव साथ-साथ पलते रहे, पल्लवित होते रहे। इसका परिणाम है कि भूटान आज अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर सकल राष्ट्रीय ख़ुशी की पहचान वाले देश के रूप में जाना जाता है। बीसवीं शताब्दी के अन्तिम वर्षों का भूटान इस पुस्तक की आधार विषय-वस्तु है। आशा है कि यह पुस्तक भूटान को समझने की जिज्ञासा के कुछ प्रश्न हल कर सकेगी। हिमालय पर्वत-श्रृंखला में अनेक अंचल और प्रदेश अपनी विशिष्टता लिये हुए हैं और उनके बारे में हमारी जिज्ञासा और कुतूहल कभी कम नहीं हो पाते। श्री रघुबीर चन्द बीसवीं शताब्दी के अन्त और इक्कीसवीं के आरम्भ पर भूटान में थे और उन्होंने वहाँ के जनजीवन के गहन अनुभव इस वृत्तान्त में पिरोये हैं। उनकी दृष्टि पर्यटक की नहीं सहचर और सहभागी की है और वे सहजता से मर्म पकड़ पाये हैं। भूटान प्रवास के अनुभवों का यह रोचक दस्तावेज़ ‘अन्तिम संग्रीला की धरती में’, इस सन्दर्भ में, रज़ा पुस्तक माला में प्रकाशित करते हुए हमें प्रसन्नता है। पाठक भूटान के जनजीवन, प्रकृति, मानव-सम्बन्धों आदि का आत्मीय साक्षात्कार, इसके माध्यम से, कर पायेंगे, ऐसी उम्मीद है।
– अशोक वाजपेयी
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Antim Sangrila Ki Dharti Main – Raghubir Chand
| ISBN | 9789389830675 |
|---|---|
| Author | Raghubir Chand |
| Binding | Paperback |
| Pages | 548 |
| Publisher | Setu Prakashan Samuh |
| Imprint | Setu Prakashan |
| Language | Hindi |
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