Dalit Kavita – Prashana aur Paripekshya – Bajrang Bihari Tiwari

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दलित साहित्यान्दोलन के समक्ष बाहरी चुनौतियाँ तो हैं ही, आन्तरिक प्रश्न भी मौजूद हैं। तमाम दलित जाति-समुदायों के शिक्षित युवा सामने आ रहे हैं। ये अपने कुनबों के प्रथम शिक्षित लोग हैं। इनके अनुभव कम विस्फोटक, कम व्यथापूरित, कम अर्थवान नहीं हैं। इन्हें अनुकूल माहौल और उत्प्रेरक परिवेश उपलब्ध कराना समय की माँग है। वर्गीय दृष्टि से ये सम्भावनाशील रचनाकार सबसे निचले पायदान पर हैं। यह ज़िम्मेदारी नये मध्यवर्ग पर आयद होती है कि वह अपने वर्गीय हितों के अनपहचाने, अलक्षित दबावों को पहचाने और उनसे हर मुमकिन निजात पाने की कोशिश करे। ऐसा न हो कि दलित साहित्य में अभिनव स्वरों के आगमन पर वर्गीय स्वार्थ प्रतिकूल असर डालने में सफल हों।

– इसी पुस्तक से

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Dalit Kavita – Prashana aur Paripekshya – Bajrang Bihari Tiwari
दलित कविता : प्रश्न और परिप्रेक्ष्य – बजरंग बिहारी तिवारी
आत्मसम्मान या गरिमा (डिग्निटी) का प्रश्न दलित विमर्श में केन्द्रीय रहा। इस प्रश्न को लेकर दो खेमे बने । एक खेमे का कहना था कि पुरानी पहचान से छुटकारा और नयी सामाजिक स्वीकृति ही गरिमा बहाल कर सकती है। दूसरे खेमे के सदस्य इसे आर्थिक स्थिति से जोड़कर देखते थे। उनका कहना था कि आर्थिक स्थिति में बदलाव से ही ‘डिग्निटी’ की तरफ बढ़ा जा सकता है। अस्मिता विमर्श में इस प्रश्न समाधान नहीं हुआ है। पहला खेमा ज़्यादा मुखर है। इसे दलितों के नये मध्यवर्ग का समर्थन प्राप्त है। यहाँ लड़ाई मुख्यतः प्रतीकों की है। ‘डिग्निटी’ के प्रतिकूल पुराने प्रतीकों से छुटकारा पाने और नये प्रतीकों के निर्माण की है। राजसत्ता को इससे ज़्यादा दिक्कत नहीं होती। प्रतीक संवर्धन में बहुधा उसकी दिलचस्पी और भूमिका रहती है।
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Category:
Author

Bajrang Bihari Tiwari

Binding

Paperback

Language

Hindi

ISBN

9788119899982

Publisher

Setu Prakashan Samuh

Publication date

10-02-2024

Pages

192

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