KISSAGO RO RAHA HAI By Manoj Kumar Jha

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किस्सागो रो रहा है संग्रह की कविताओं में जिन्दगी के छोटे-छोटे दुख हैं, छोटे-छोटे स्वप्न भी। कोई शहीदाना अन्दाज नहीं, कोई दावे नहीं। किसी तरह का कोई बड़बोलापन नहीं। पर इसका यह अर्थ नहीं कि कवि को जगत्- दुख नहीं व्यापता इस संग्रह की कविताओं में जहाँ जीवन के तमाम अभाव झाँकते नजर आएँगे

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    ये मुश्किल समय की कविताएँ हैं। इनमें कुछ खोते जाने की पीड़ा और नागरिक भय के साथ असहमति की आवाजें हैं। ये ताकत द्वारा निर्मित मायावी दृश्यों से परे दबाये गये सत्य की अभिव्यक्तियाँ हैं। 2020-23 के बीच लिखी गयीं इन कविताओं में ‘प्रचलित’ और ‘प्रचारित’ के बाहर देखने का साहस लक्षित किया जा सकता है।

    आज जब हर तरफ शोर और वाग्जाल है, सबसे अधिक जरूरत शब्दों को बचाने की है। यह अनुभव की स्वतन्त्रता के साथ-साथ कुछ जरूरी मूल्यों को बचाना है और कृत्रिम सरहदों को लाँघना है। इस संकलन की कविताएँ वर्तमान दौर के दुख, घबराहट और निश्छल स्वप्नों में साझेदारी से जन्मी हैं। ‘हम-वे’ के उत्तेजक विभाजन के समानान्तर ये अ-पर के बोध से जुड़ी हैं। ये कविताएँ वस्तुतः सुन्दरता, स्वतन्त्रता और भाषा की नयी सम्भावनाओं की तलाश हैं।

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    “तुमने दिया है ऐसा विस्तार कि कहीं भी महसूस किया जा सकता है मुझे
    दी है ऐसी गहराई कि कहीं तक डूबा जा सकता है मुझमें
    और ऐसी उदारता कि कुछ भी माँग लिया जा सकता है मुझसे
    तुमने दिया ही है इतना सारा- कि लगता है मैं ही आकाश हूँ समन्दर हूँ, हवा और धरती हूँ सूरज और चाँद और सितारा…
    – इसी पुस्तक से”

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    इस संग्रह की कविताओं में वह सघन संवेदना और बौद्धिक बेचैनी है, जिसके माध्यम से आसिया जहूर कई स्तरों पर दुख और दमन को देखती और महसूस करती हैं। समय का दुख, समाज का दुख, और सबसे ऊपर स्त्री का दुख। लेकिन, उनकी कविता दुखों और संघर्षों की सहज अभिव्यक्ति मात्र नहीं है, वह मिथक, इतिहास, संस्कृति और लोकजीवन में गहरे प्रवेश करते हुए अपने दुख को महाकरुणा में रूपान्तरित कर देती है। वह करुणा ही है जो बुद्ध और यीशु के कई बार साधारण से लगने वाले शब्दों में भी असाधारण प्रभाव पैदा कर देती है। एक अच्छी कविता में जीवन की अभिप्रेरक अभिव्यक्ति तो होती है, लेकिन करुणा का ऐसा विस्तार दुर्लभ है। निस्सन्देह आसिया जहूर हमारे समय की एक अनोखी कवयित्री हैं। नये मिलेनियम की मेड्यूसा हैं, जो अपनी विवशता को शक्ति में बदल देती है, नये युग

    की जुलेखा, जो फ़रिश्ते जिब्राईल के सामने सौदे से इनकार कर देती है। ‘युवा लड़की और वृद्ध चिनार की प्रेम कथा’ एक अद्भुत प्रेम कविता है। चिनार कश्मीर की प्रकृति और संस्कृति का मूर्त रूप है, जो एक युवा लड़की यानी, आज के समय की जूनी अर्थात् हब्बा ख़ातून से प्रेम कर रहा है। प्रेम का यह विस्तार उसी करुणा तक पहुँचता है, जो आसिया की कविता के केन्द्र में है।
    वह समय के संकट को व्यक्त करने के लिए हर बार मिथकों या पुराकथाओं का सहारा ही नहीं लेती बल्कि, कई बार क्रूर सच से सीधे टकराती है। लेकिन, यह याद रखते हुए कि कविता अन्ततः एक कला है। मेरी दादी बुनती थी…, गहन सैन्यीकृत क्षेत्र में… और मेरी बेटी के लिए… जैसी कविताओं में अतीत, वर्तमान और भविष्य (सम्भावित) के दमन और क्रूरता की अभिव्यंजना के बीच प्रतिरोध की वह ऊँचाई है, जिसके सामने बड़ा से बड़ा अत्याचारी शासक भी बौना दीखने लगता है। यह है कविता की ताक़त !
    – मदन कश्यप
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