किस्सागो रो रहा है संग्रह की कविताओं में जिन्दगी के छोटे-छोटे दुख हैं, छोटे-छोटे स्वप्न भी। कोई शहीदाना अन्दाज नहीं, कोई दावे नहीं। किसी तरह का कोई बड़बोलापन नहीं। पर इसका यह अर्थ नहीं कि कवि को जगत्- दुख नहीं व्यापता इस संग्रह की कविताओं में जहाँ जीवन के तमाम अभाव झाँकते नजर आएँगे, चाहे वह खाने की दिक्कत हो या रहने की, वहीं कवि को चिन्ता है कि जंगल खनिज की खोज में बर्बाद किये जा रहे हैं और विकसित होते शहर में रोज पानी एक हाथ नीचे चला जाता है। उपद्रवियों ने चिता की आग छीन ली है और शीतल पेय संयन्त्रों ने खींच लिया है मटके का जल। गाँव में साँझ की गन्ध अब पहले जैसी नहीं रह गयी है बल्कि वह बहुत कुछ लुप्तप्राय होने की सूचना दे रही है चाहे वह गौरैयों का गायब होना हो या किस्से-कहानियों का।
About the Author:
मनोज कुमार झा गणित में स्नातक। संवेद-पुस्तिका के रूप में पहली काव्य-प्रस्तुति हम तक विचार नाम से प्रकाशित । दो कविता संग्रह तथापि जीवन तथा कदाचित अपूर्ण । भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार एवं भारतीय भाषा परिषद का युवा पुरस्कार से पुरस्कृत कविताओं का गुजराती, ओड़िया, मराठी, अँग्रेजी आदि भाषाओं में अनुवाद | बच्चों के लिए भी लेखन-एक कविता संग्रह ट्रेन के बाहर रात खड़ी थी प्रकाशित समकालीन चिन्तकों एवं दार्शनिकों का अँग्रेजी से हिन्दी में निरन्तर अनुवाद |
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