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Geeta Press Aur Hindu Bharat Ka Nirman by Akshay Mukul
गीता प्रेस और हिन्दू भारत का निर्माण – अक्षय मुकुल
अनुवाद : प्रीती तिवारीपुस्तक के बारे में…
अक्षय मुकुल हमारे लिए अमूल्य निधि खोज लाए हैं। उन्होंने गोरखपुर स्थित गीता प्रेस के अभिलेखों तक अपनी पहुँच बनाई। इसमें जन विस्तार वाली पत्रिका कल्याण के पुराने अंक थे। लेकिन सबसे महत्त्वपूर्ण कई दशकों तक कल्याण के संपादक और विचारक रहे हनुमान प्रसाद पोद्दार के निजी कागजात तक पहुँचना था। इन कागजात के जरिये मुकुल हमें हिन्दुत्व परियोजना के बीजारोपण से लेकर जनमानस में उसे मजबूत किए जाने के पूरे वाकये से रूबरू करवाते हैं। इससे भी आगे वे इसकी जड़ में मौजूद जटिलता तक पहुँचते हैं जहाँ रूढ़िग्रस्त ब्राह्मणवादी हिन्दुओं और मारवाड़ी, अग्रवाल और बनिया समुदाय के अग्रणी पंरॉयमदन मोहन मालवीय, गांधी, बिड़ला बंधुओं और गीता प्रेस के बीच की सहयोगी अंतरंगता, किंतु कभी मधुर कभी तिक्त संबंध बिखरे दिखाई देते हैं। यह किताब हमारी जानकारी को बहुत समृद्ध करेगी और आज जिन सूरत-ए-हालों में भारत उलझा है उसे समझने में मददगार साबित होगी।– अरुंधति रॉयBuy This Book with 1 Click Via RazorPay (15% + 5% discount Included)
₹599.00 -
Mitne Ka Adhikaar By Prachand Praveer
इस अप्रतिम प्रेम कथा में चित्रकार रघु विवाहिता और अपूर्व सुन्दरी गौरी के प्रेम में पड़कर अपने जीवन को उलझा लेता है। पुस्तक के पहले हिस्से में रघु प्रेम के आरम्भ में ही प्रेम से छुटकारा पा लेना चाहता है किन्तु वह गौरी के प्रणय को अस्वीकार नहीं कर पाता। इस कशमकश में गौरी ही हारकर रघु को छोड़कर चली जाती है। दूसरे हिस्से में पराजित और लज्जित रघु संन्यासियों जैसे भटकने के लिए निकल पड़ता है। भारतीय दर्शन से जुड़ी यह कथा इक्कीसवीं सदी के भारत से जुड़कर नये आयाम खोलती है तथा पाठक को बहुत कुछ विचारने पर विवश करती है।
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₹525.00 -
Vaasavdutta (Novel) By Mahendra Madhukar
प्रसिद्ध कवि, कथाकार और आलोचक डॉ. महेंद्र मधुकर का प्रस्तुत उपन्यास ‘वासवदत्ता’ राजा उदयन और राजकुमारी वासवदत्ता की ऐतिहासिक प्रेम-गाथा है, जो ढाई हजार वर्षों से भी अधिक समय से लोक कण्ठों में गूँजती रही है। कालिदास के भी पूर्व नाटककार भास ने ‘स्वप्न वासवदत्ता’ और ‘प्रतिज्ञा यौगन्धरायण’ जैसे नाटकों में इस प्रेम-गाथा का ताना- बाना रचा है। कवि कालिदास ने अपने ‘मेघदूत’ के तीसवें श्लोक में उदयन के प्रेम की मधुर कथा की चर्चा की है।
वास्तव में प्रेम एक अशब्द अनुभव है, जो पुरुष या स्त्री के मन में समान रूप से पल्लवित होता है। स्त्री राजनीति या साम्राज्यवाद का मोहरा नहीं बल्कि यज्ञ की अग्नि की तरह धधक उठने वाली ज्वाला है। उदयन वीर और रोमाण्टिक नायक के रूप में अपनी घोषवती वीणा के साथ प्रस्तुत होते हैं और कला ही प्रेम का सूत्रपात करती है। यहाँ प्रेम है तो पीड़ा है और इस पीड़ा में अद्भुत आनन्द का अनुभव होता है।महेंद्र मधुकर का यह उपन्यास आपकी अन्तरात्मा को द्रवित करेगा और इस उपन्यास की भाषा का प्रवाह आपको अपने साथ दूर तक बहा ले जाएगा।Buy This Book with 1 Click Via RazorPay (15% + 5% discount Included)
₹375.00 -
Maslak-e-aala Hazrat Barelavi By Anil Maheshwari
हिन्दुस्तान पर 500 साल से भी ज्यादा मुस्लिम शासकों का शासन रहा, लेकिन वे शासक ‘धार्मिक कट्टरपन्थी’ नहीं थे, इसीलिए हिन्दुस्तान की आबादी में आज भी 85 प्रतिशत हिन्दू हैं। इस दौरान स्थानीय धार्मिक और सामाजिक रीति- रिवाज और मान्यताओं ने बाहर से आने वाले मुसलमानों पर भी अपना प्रभाव डाला। हिन्दुस्तान के साधू-सन्त और उनकी परम्पराओं को भी हिन्दुस्तानी इस्लाम में कुबूल कर लिया गया। इस तरह हिन्दू और हिन्दुस्तान में आए इस्लाम के बीच धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक आदान- प्रदान हुआ, जिसकी अनदेखी नहीं की जा सकती। हिन्दुस्तान में जब धीरे-धीरे मुस्लिम शासकों का शासन कमज़ोर होता गया तो उलेमाओं के ऊपर भी रोक-भीम कम होती गयी। इसी बीच उलेमाओं ने अपने आपको मुस्लिम समुदायों के डर और आशंकाओं के बीच खुद को उनका नेतृत्वकर्ता घोषित कर लिया।
हिन्दुस्तान में ज्यादातर मुसलमान सुन्नी हैं और मुख्य रूप से हनफ़ी हैं। वे अपने-अपने फ़िक़ा (समुदाय) पर अमल करते हैं। हनफ़ी सुन्नी मुसलमानों के बीच दो मुख्य फिरने (समुदाय) हैं-बरेलवी और देवबन्दी। इन दोनों फिरकों को मानने वाले लोग एकसाथ रहते हैं और कुछ हद तक आपस में मिलते-जुलते भी हैं, लेकिन नाम रखने और ईश-निन्दा यानी अवमानना की हद तक एक-दूसरे के मुखालिफ़ भी हैं।₹275.00 -
Setu Vichar Jaiprakash Narayan by Sheodayal
गांधी जी के बाद जयप्रकाश नारायण देश में सबसे बड़े सत्ता विरक्त जन नेता थे। लोकतन्त्र को मूल्य और व्यवस्था के रूप में वास्तविक बनाने, उसे मानव मुक्ति का सुलभ साधन बनाने के लिए उन्होंने अपना जीवन लगा दिया। लोकतन्त्र को लेकर जितनी भी संकल्पनाएँ हो सकती हैं, उन सब पर उन्होंने विचार किया है। गांधी जी ने 1940 में कहा था-मार्क्सवाद के विषय में जो जयप्रकाश नहीं जानते उसे भारत में दूसरा कोई नहीं जानता। यही बात लोकतन्त्र के विषय में भी कही जा सकती है-जयप्रकाश लोकतन्त्र के बारे में जितना जानते हैं और समझते हैं, जिस गहनता और व्यापकता से उन्होंने इस पर विचार किया है, वह अन्यतम और अतुलनीय है। वे कहते हैं-‘ लोकतन्त्र एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें अधिकतम लोग अपना अधिकतम शासन कर सकें।’ इस छोटी सी, किन्तु सारगर्भित परिभाषा में लोकतन्त्र के मूल्य, उद्देश्य और लक्ष्य एक ही साथ स्पष्ट हो जाते हैं। इसी लक्ष्य के लिए वे वैचारिक रूप से, चिन्तन के स्तर पर तथा कर्म के स्तर पर भी जीवन के अन्तिम क्षणों तक सक्रिय और समर्पित रहे। भारत के अतीत, परम्पराओं तथा वर्तमान की वास्तविकताओं के अनुरूप लोकतान्त्रिक शासन के वैकल्पिक मॉडल की खोज में लगे रहे।
– प्रस्तावना से₹450.00 -
Setu Vichar: Sachidanand Sinha Edited By Arvind Mohan
सच्चिदानन्द सिन्हा छात्र जीवन में ही समाजवादी आन्दोलन से जुड़ गये। प्रारम्भ में मजदूर और किसान आन्दोलन में सक्रिय रहे । पाँच दशक से अधिक समय से लिखते रहे हैं। मूर्धन्य समाजवादी चिन्तक सच्चिादा जी की प्रकाशित पुस्तकें हैं : समाजवाद के बढ़ते चरण, जिन्दगी : सभ्यता के हाशिये पर, उपभोक्तावादी संस्कृति, भारतीय राष्ट्रीयता और साम्प्रदायिकता, मानव सभ्यता और राष्ट्र राज्य, नक्सली आन्दोलन का वैचारिक संकट, संस्कृति विमर्श । (अँग्रेजी में) द इण्टरनल कॉलोनी, सोशलिज्म ऐण्ड पॉवर, द बिटर हार्वेस्ट, एमरजेंसी इन पर्सपेक्टिव, द परमानेण्ट क्राइसिस ऑफ इण्डिया, केओस एण्ड क्रियेशन, कास्ट सिस्टम: मिथ्स, रिएलिटी, चैलेंज; द एडवेंचर्स ऑफ लिबर्टी, कोएलिशन इन पॉलिटिक्स, द अनार्ड प्रोफेट, सोशलिज्म : ए मैनिफेस्टो फॉर सर्वाइवल । लेखक बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के ग्राम मनिका में रहते हैं।
₹450.00 -
Bharat Se Kaise Gaya Buddh Ka Dharm By Chandrabhushan
औपनिवेशिक भारत में स्तूपों की खुदाई, शिलालेखों और पाण्डुलिपियों के अध्ययन ने बुद्ध को भारत में पुनर्जीवित किया। वरना एक समय यूरोप उन्हें मिस्त्र या अबीसीनिया का मानता था। 1824 में नियुक्त नेपाल के ब्रिटिश रेजिडेण्ट हॉजसन बुद्ध और उनके धर्म का अध्ययन आरम्भ करने वाले पहले विद्वान थे। महान बौद्ध धर्म भारत से ऐसे लुप्त हुआ जैसे वह कभी था ही नहीं। ऐसा क्यों हुआ, यह अभी भी अनसुलझा रहस्य है। चंद्रभूषण बौद्ध धर्म की विदाई से जुड़ी ऐतिहासिक जटिलताओं को लेकर इधर सालों से अध्ययन-मनन में जुटे हैं। यह पुस्तक इसी का सुफल है। इस यात्रा में वह इतिहास के साथ-साथ भूगोल में भी हैं। जहाँ वेदों, पुराणों, यात्रा-वृत्तान्तों, मध्यकालीन साक्ष्यों तथा अद्यतन अध्ययनों से जुड़ते हैं, वहीं बुद्धकालीन स्थलों के सर्वेक्षण और उत्खनन को टटोलकर देखते हैं। वह विहारों में रहते हैं, बौद्ध भिक्षुओं से मिलते हैं, उनसे असुविधाजनक सवाल पूछते हैं और इस क्रम में समाज की संरचना नहीं भूलते। जातियाँ किस तरह इस बदलाव से प्रभावित हुई हैं, इसकी अन्तर्दृष्टि सम्पन्न विवेचना यहाँ आद्योपान्त है।
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Akhiri Mughal Badshah Ka Court-Marshal By Rajgopal Singh Verma
इस पुस्तक में बहादुर शाह ज़फ़र के सम्प्रभु स्तर, भले ही वह नाममात्र का हो, की अन्तरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय और विदेशी कानूनों के परिप्रेक्ष्य में विवेचना की गयी है। अन्य उन कारकों का भी विश्लेषण किया गया है जिससे साबित होता है कि इस भारतीय बादशाह के विरुद्ध फिरंगी शासकों ने मनमानी, गैरकानूनी तथा अवैधानिक कार्यवाहियाँ की थीं, जिसको कोई भी सभ्य विश्व समुदाय सहमति नहीं दे सकता। साथ ही बहादुर शाह ज़फ़र पर चलाये गये इस अवैधानिक मुकदमे – कोर्ट- मार्शल की सरकारी कार्यवाही का पूरा विवरण भी परिशिष्ट के रूप में उपलब्ध कराया गया है। इस कार्यवाही को पढ़ने, सरकारी पक्ष, साक्ष्यों, अभिलेखों और प्रक्रियाओं के अवलोकन से ही ब्रिटिश प्रशासन की नीयत और मंशा आसानी से समझ आ जाती है। उम्मीद है कि 1857 के संघर्ष और पहली व्यापक क्रान्ति के सन्दर्भ में महत्त्वपूर्ण और जरूरी विश्लेषण के इस दस्तावेज को पाठक गम्भीरता से लेंगे।
– भूमिका से₹399.00 -
Itihas Purush : Bakht Khan by Rajgopal Singh Verma
चूँकि यह एक स्वतःस्फूर्त आन्दोलन था, इसलिए 1857 की इस क्रान्ति का कोई एक सर्वमान्य नेता न था, न ही सेना की कमाण्ड किसी एक उच्च अधिकारी के हाथ में थी। हर बागी एक नेता था और हर व्यक्ति आज़ादी के इस जुनून को दिल में सँजोये हुए था। ऐसे में बरेली स्थित सैन्य घुड़सवार-आर्टिलरी ब्रिगेड के एक स्थानीय अधिकारी मुहम्मद बख़्त ख़ान का अपने समर्थकों के साथ दिल्ली पहुँचना, बादशाह द्वारा उसे फिरंगियों के विरुद्ध सेना का नेतृत्व करने के लिए सर्वोच्च ओहदा देना एक बहुत बड़ा कदम और सम्मान था। बादशाह ने उसे सैन्य बलों का कमाण्डर-इन-चीफ बना दिया था। अफरातफरी और अराजकता के उस माहौल में इस जाँबाज़ सैन्य अधिकारी ने अपनी सेना में अनुशासन बनाया, व्यवस्थाओं को दुरुस्त किया, प्रशासनिक मशीनरी को सक्रिय किया और सेना का संचालन तथा शासन चलाने के लिए आवश्यक धनराशि की व्यवस्था की। उसने अव्यवस्था फैलाने और लूटपाट करने वालों को चेतावनी दी तथा न मानने पर उनके विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की। बख़्त ख़ान ने हिन्दू-मुस्लिम सौहार्द की स्थितियों
को बनाये रखने में भी अपना योगदान दिया, तथा बादशाह के खोये हुए गौरव को एक बार फिर से स्थापित करने के लिए जरूरी काम किये।₹280.00