Vaasavdutta (Novel) By Mahendra Madhukar
Vaasavdutta (Novel) By Mahendra Madhukar
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प्रसिद्ध कवि, कथाकार और आलोचक डॉ. महेंद्र मधुकर का प्रस्तुत उपन्यास ‘वासवदत्ता’ राजा उदयन और राजकुमारी वासवदत्ता की ऐतिहासिक प्रेम-गाथा है, जो ढाई हजार वर्षों से भी अधिक समय से लोक कण्ठों में गूँजती रही है। कालिदास के भी पूर्व नाटककार भास ने ‘स्वप्न वासवदत्ता’ और ‘प्रतिज्ञा यौगन्धरायण’ जैसे नाटकों में इस प्रेम-गाथा का ताना- बाना रचा है। कवि कालिदास ने अपने ‘मेघदूत’ के तीसवें श्लोक में उदयन के प्रेम की मधुर कथा की चर्चा की है।
महेंद्र मधुकर का यह उपन्यास आपकी अन्तरात्मा को द्रवित करेगा और इस उपन्यास की भाषा का प्रवाह आपको अपने साथ दूर तक बहा ले जाएगा।
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औपनिवेशिक भारत में स्तूपों की खुदाई, शिलालेखों और पाण्डुलिपियों के अध्ययन ने बुद्ध को भारत में पुनर्जीवित किया। वरना एक समय यूरोप उन्हें मिस्त्र या अबीसीनिया का मानता था। 1824 में नियुक्त नेपाल के ब्रिटिश रेजिडेण्ट हॉजसन बुद्ध और उनके धर्म का अध्ययन आरम्भ करने वाले पहले विद्वान थे। महान बौद्ध धर्म भारत से ऐसे लुप्त हुआ जैसे वह कभी था ही नहीं। ऐसा क्यों हुआ, यह अभी भी अनसुलझा रहस्य है। चंद्रभूषण बौद्ध धर्म की विदाई से जुड़ी ऐतिहासिक जटिलताओं को लेकर इधर सालों से अध्ययन-मनन में जुटे हैं। यह पुस्तक इसी का सुफल है। इस यात्रा में वह इतिहास के साथ-साथ भूगोल में भी हैं। जहाँ वेदों, पुराणों, यात्रा-वृत्तान्तों, मध्यकालीन साक्ष्यों तथा अद्यतन अध्ययनों से जुड़ते हैं, वहीं बुद्धकालीन स्थलों के सर्वेक्षण और उत्खनन को टटोलकर देखते हैं। वह विहारों में रहते हैं, बौद्ध भिक्षुओं से मिलते हैं, उनसे असुविधाजनक सवाल पूछते हैं और इस क्रम में समाज की संरचना नहीं भूलते। जातियाँ किस तरह इस बदलाव से प्रभावित हुई हैं, इसकी अन्तर्दृष्टि सम्पन्न विवेचना यहाँ आद्योपान्त है।
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फकीरा’ उपन्यास अण्णा भाऊ साठे का मास्टरपीस उपन्यास माना जाता है। यह 1959 में प्रकाशित हुआ तथा इसे 1961 में राज्य शासन का सर्वोत्कृष्ट उपन्यास पुरस्कार प्रदान किया गया। इस उपन्यास पर फ़िल्म भी बनी। ‘फकीरा’ एक ऐसे नायक पर केन्द्रित उपन्यास है, जो अपने ग्राम-समाज को भुखमरी से बचाता है, अन्धविश्वास और रूढ़िवाद से मुक्ति का पुरजोर प्रयत्न करता है तथा ब्रिटिश शासन के विरुद्ध विद्रोह करता है। एक दलित जाति के नायक का बहुत खुली मानवीय दृष्टि रखना, ब्रिटिश शासन द्वारा थोपे गये अपराधी जाति के ठप्पे से जुड़ी तमाम यन्त्रणाओं का पुरजोर विरोध करना, अपने आसपास के लोगों को अन्धविश्वास के जाल से निकालने की जद्दोजहद करना तथा बहुत साहस और निर्भयता के साथ अनेक प्रतिमान स्थापित करना ‘फकीरा’ की विशेषता है। उपन्यास का नायक ‘फकीरा’ एक नायक मात्र नहीं है, विषमतामूलक समाज के प्रति असहमति का बुलन्द हस्ताक्षर है।
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RACHANA PRAKRIYA KE PADAV (Thought on Theatre Work) by Devendra Raj Ankur
रचना प्रक्रिया के पड़ाव – देवेन्द्र राज अंकुर
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