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Bhinsar – Gyanendrapati

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Bhinsar – Gyanendrapati
भिनसार – ज्ञानेन्द्रपति

भिनसार समकालीन कविता-परिदृश्य में अपनी तरह के अकेले कवि ज्ञानेन्द्रपति का अनूठा संकलन है। इस संग्रह की कविताएँ किसी चीज या केन्द्रीय भाव या अनुभव के विकसित होने की प्रक्रिया की कविताएँ हैं

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Description

भिनसार समकालीन कविता-परिदृश्य में अपनी तरह के अकेले कवि ज्ञानेन्द्रपति का अनूठा संकलन है। इस संग्रह की कविताएँ किसी चीज या केन्द्रीय भाव या अनुभव के विकसित होने की प्रक्रिया की कविताएँ हैं-निर्णयात्मक परिणतियाँ इस कविता के क्षेत्र के बाहर पड़ती हैं। यही वजह है कि इनमें चीजें अंकुराती हैं और अपने विकास-क्रम व आवेग के बल से बढ़ती हैं। यह विकास किसी अदृश्य गोलक में होता हुआ निपट अकेला नहीं है। उसका हमेशा कोई साक्षी है। हमारी सभ्यता का प्रातिनिधिक साक्षात्कार उसमें निहित है। वह जीवन के निकट आने की ललक न होकर स्वयं जीवन है।

About the Author:

जन्म झारखण्ड के एक गाँव पथरगामा में, पहली जनवरी, 1950 को, एक किसान परिवार में। पटना विश्वविद्यालय से पढ़ाई। दसेक वर्षों तक बिहार सरकार में अधिकारी के रूप में कार्य। नौकरी को ना करी कह, बनारस में रहते हुए, फ़क़त कविता-लेखन। प्रकाशित कृतियाँ : आँख हाथ बनते हुए (1970) शब्द लिखने के लिए ही यह काग़ज़ बना है (1981) गंगातट (2000), संशयात्मा (2004), भिनसार (2006), कवि ने कहा (2007) मनु को बनाती मनई (2013), गंगा-बीती (2019), कविता भविता-2020 (कविता-संग्रह), एकचक्रानगरी-2021 (काव्य-नाटक) पढ़ते-गढ़ते (कथेतर गद्य) भी प्रकाशित। संशयात्मा के लिए वर्ष 2006 का साहित्य अकादेमी पुरस्कार। समग्र लेखन के लिए पहल सम्मान, शमशेर सम्मान, नागार्जुन सम्मान आदि कतिपय सम्मान।

Additional information

ISBN

9789391277017

Author

Gyanendrapati

Binding

Paperback

Pages

272

Publication date

14-01-2023

Imprint

Setu Prakashan

Language

Hindi

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