Dehri Par Deepak By Madhav Hada
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Dehri Par Deepak By Madhav Hada
देहरी पर दीपक – माधव हाड़ा
देहरी पर दीपक का यथार्थ वह ग्रामीण भारतीय जनमानस जानता है, जो आज के उत्तर आधुनिक, उग्र उपभोक्तावादी दौर से पहले का है। देहरी के दीपक में आश्वस्ति होती है, घुप्प अन्धकार के बीच हमारी भवता के सहकार की !
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देहरी पर दीपक का यथार्थ वह ग्रामीण भारतीय जनमानस जानता है, जो आज के उत्तर आधुनिक, उग्र उपभोक्तावादी दौर से पहले का है। देहरी के दीपक में आश्वस्ति होती है, घुप्प अन्धकार के बीच हमारी भवता के सहकार की ! उसमें ऊष्मा होती है, भरोसा होता है अन्धकार के भीतर सुरक्षित रहने का। उसी तरह माधव हाड़ा का दीपक बौद्धिक विवेक का आश्वासन है। इसमें किसी किस्म की आक्रामकता नहीं है, न ही किसी किस्म की परमुखापेक्षिता। है तो अपने विवेक के साथ समय और समाज से एक सार्थक संवाद का आग्रह। इस संवाद में न परम्परा का निषेध है, न परम्परागत विषयों और न ही आधुनिक सन्दर्भों का। इसीलिए इसमें मीरा और सूरदास हैं तो तुगलक और ब्रह्मराक्षस भी। अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता की भारतीय परम्परा है तो छायावाद का विश्लेषण भी।
About Author
माधव हाड़ा, जन्म : मई 9, 1958, शिक्षा : पी.एच.डी., एम.ए. (हिन्दी)
संप्रति : आचार्य एवं अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर
पुरस्कार : प्रकाशन विभाग, भारत सरकार का भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार (2012), राजस्थान साहित्य अकादमी का देवराज उपाध्याय आलोचना पुरस्कार (1990) रत्न; मौलिक पुस्तक : मुनि जिनविजय (2016), पचरंग चोला पहर सखी री मीरां का जीवन और समाज (2015), सीढ़ियाँ चढ़ता मीडिया (2012), मीडिया, साहित्य और संस्कृति (2006), कविता का पूरा दृश्य, (1992), तनी हुई रस्सी पर, (1987)
संपादित पुस्तक : मीरां रचना संचयन (2017), कथेतर (2017), स्वयं प्रकाश की लोकप्रिय कहानियाँ (2016), लय (1996)
ISBN | 9789391277024 |
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Author | Madhav Hada |
Binding | Hardcover |
Pages | 216 |
Publisher | Setu Prakashan Samuh |
Imprint | Setu Prakashan |
Language | Hindi |
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