Vivad Nahin Hastkshep – Virendra Yadav
₹550.00 Original price was: ₹550.00.₹468.00Current price is: ₹468.00.
विवाद नहीं हस्तक्षेप – वीरेंद्र यादव
विवाद नहीं हस्तक्षेप खासी विचारोत्तेजक पुस्तक है; और हो भी क्यों न, इसके कई सारे लेख बहस में दखल देते हुए, किसी धारणा को चुनौती देते हुए, किसी मत का प्रतिवाद करते हुए लिखे गए हैं। वीरेंद्र यादव इस किताब में साहित्य-समीक्षक के साथ ही बुद्धिजीवी या चिंतक की भूमिका में नजर आते हैं।
यह एक जाने-माने आलोचक की किताब है लेकिन सिर्फ आलोचना की नहीं, क्योंकि यह साहित्य के आन्तरिक प्रश्नों के साथ-साथ साहित्येतर समझे जाने वाले कुछ सवालों से भी काफी वास्ता रखती है। इसलिए स्वाभाविक ही वीरेन्द्र यादव इस किताब में साहित्य-समीक्षक के साथ ही बुद्धिजीवी या चिंतक की भूमिका में भी नजर आते हैं। विवाद नहीं हस्तक्षेप खासी विचारोत्तेजक पुस्तक है; और हो भी क्यों न, इसके कई सारे लेख बहस में दखल देते हुए, किसी धारणा को चुनौती देते हुए, किसी मत का प्रतिवाद करते हुए लिखे गये हैं।
खण्डन-मण्डन बहुत बार बहस या विमर्श की गम्भीरता और मर्यादा खोकर काँव-काँव में बदल जाता है। लेकिन यह किताब खण्डन-मण्डन से भरपूर होते हुए भी इस दोष से सर्वथा मुक्त है। तर्कों के पीछे तथ्यों का सबल आधार है। तथ्यपुष्ट तर्क की धार और पैना विश्लेषण वीरेन्द्र यादव के लेखन की एक बड़ी विशेषता है और यह किताब इस विशेषता का एक अकाट्य
साक्ष्य ।
एक आलोचक और बौद्धिक के रूप में वीरेन्द्र यादव किसी को भी नहीं बख्शते, चाहे वे विचारधारा के स्तर पर दूसरी तरफ के लोग हों या स्वयं अपनी तरफ के। वाम पक्षधर होते हुए भी लेखक को अगर कहीं रामविलास शर्मा या नामवर सिंह जैसे मूर्धन्य मार्क्सवादी आलोचकों की राय ठीक नहीं लगी, तो उनका भी जमकर प्रतिवाद किया है। पिछले दो-तीन दशकों में जो सवाल साहित्य में चर्चा का विषय रहे हैं उनमें से अधिकांश पर एक सजग, प्रगतिशील दृष्टिकोण सक्रिय मिलेगा, जैसा कि किताब का नाम संकेत करता है, विवाद नहीं हस्तक्षेप करते हुए। एक आलोचक या चिन्तक पिष्टपेषण से नहीं बल्कि अपनी तर्कपूर्ण असहमतियों और प्रत्याख्यान से जाना जाता है। यह किताब इस मान्यता को चरितार्थ करती है।
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