Description
मुक्तिबोध कुछ दशकों से हिंदी के सर्वाधिक चर्चित रचनाकार रहे हैं। उनपर काफी कुछ लिखा गया है। लेकिन मुक्तिबोध की लालटेन
कई मायनों में उस काफी कुछ से अलग है, इसमें आलोचनात्मक और अकादमिक दर्रे पर होने की कतई परवाह नहीं की गई है। यह किताब मुक्तिबोध को कवि, आलोचक, चिन्तक के खानों में बाँटकर उनपर विचार नहीं करती, न कुल मिलाकर कोई समालोचनात्मक सार प्रस्तुत करती है।
About the Author:
आलोचना अपूर्वानंद का व्यसन है। आलोचना अपने व्यापक अर्थ और आशय में । आलोचना का लक्ष्य पूरा मानवीय जीवन है, साहित्य जिसकी एक गतिविधि है। इसलिए शिक्षा, संस्कृति और राजनीति की आलोचना के बिना साहित्य की आलोचना संभव नहीं। लेखक के साहित्यिक आलोचनात्मक निबंधों के दो संकलन, सुंदर का स्वप्न
और साहित्य का एकांत
, ‘यह प्रेमचंद हैं’ प्रकाशित हैं। कुछ समय तक आलोचना` पत्रिका का संपादन।
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