Char Aadiroop Translated by Pragati Saxena
Four Archetypes By Carl Gustav Jung
Char Aadiroop Translated by Pragati Saxena
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चार आदिरूप – अनुवाद : प्रगति सक्सेना
यह मनुष्य के स्वतन्त्र, यानी चेतन निर्णय पर निर्भर करता है कि यह भलाई भी कहीं किसी शैतानी बुराई में ना विकृत हो जाए। मनुष्य का सबसे बड़ा पाप अचेतनता है, जिससे वे लोग भी बहुत धार्मिकता और करुणा से बर्ताव करते हैं, जिन्हें मनुष्यता के लिए शिक्षक और उदाहरण होना चाहिए। हम कब इतने क्रूर तरीक़े से मानवता को लापरवाही से लेना बन्द करेंगे और गम्भीरता से मनुष्यता को इस पैशाचिक वश से मुक्त करने के तरीक़े और साधन ढूँढ़ेंगे, ताकि हम उसे इस अचेतना और हस्तक्षेप से बचा सकें और कब इसे सभ्यता का सबसे महत्त्वपूर्ण काम बनाएँगे ? क्या हम इतना भी नहीं समझ सकते कि ये सारे बाहरी सुधार और फेरबदल मनुष्य की भीतरी प्रकृति को छू भी नहीं पाते, और अन्तत: सब कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि सारे विज्ञान और तकनीक के साथ क्या मनुष्य ज़िम्मेदारी उठाने के लिए सक्षम है या नहीं ?
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Faasiwaad Ki Dastak By RaviBhushan
अँग्रेज़ों ने यह कार्य (विभक्तीकरण और विभेदीकरण का) अपने स्वार्थ के लिए किया था। देश पर हुकूमत क़ायम करने के लिए देशवासियों को धर्मों, मज़हबों और विभिन्न धड़ों में विभाजित करना उनके अपने लिए फ़ायदेमन्द था। स्वतन्त्र भारत में वही तरीक़ा-कभी कम, कभी अधिक अपनाया जाता रहा है। यह भारत की आत्मा को कुचलना और लहूलुहान करना है। यहीं से सद्भाव समाप्त होने लगा और दुर्भाव बढ़ने लगा। देश में चुनौतियों और संकटों का इस स्थिति में बढ़ना, बढ़ते जाना स्वाभाविक था। आज भारतीय लोकतन्त्र और ‘सेकुलरिज्म’ के समक्ष जैसी चुनौतियाँ हैं, वैसी पहले कभी नहीं थीं।
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Siraj-E-Dil Jaunpur
सिराज-ए-दिल जौनपुर हिन्दी में गद्य की एक अभिनव और अनूठी पुस्तक है।
जिसमें संस्मरण और स्मृति आख्यान से लेकर ललित निबन्ध तक, गद्य की विविध मनोहारी छटाएँ हैं। ऐसे समय जब मान लिया गया है कि ललित निबन्ध की धारा सूख चुकी है, अमित श्रीवास्तव की यह किताब न सिर्फ़ ऐसी धारणा का प्रत्याख्यान है बल्कि उस धारा को नये इलाक़ों में भी ले जाती है। यों तो इस पुस्तक में संकलित ज्यादातर निबन्धों या स्मृति आख्यानों के केन्द्र में पूर्वी उत्तर प्रदेश का एक शहर जौनपुर है लेकिन लेखक ने जो रचा है वह सतही वृत्तान्त या विवरणात्मक ज्ञान के सहारे नहीं रचा जा सकता। इस रचाव के लिए बहुत कुछ विरल चाहिए: इतिहास के कोने-अन्तरे तक पहुँच, भूले-बिसरे नायकों की पहचान और उनके अवदान का ज्ञान, इतिहास और साहित्य से लेकर विज्ञान तक में रुचि, स्थानीय जीवन के रंग और विश्वबोध, आदि। इस पुस्तक को पढ़ते हुए किसी को भी हैरानी होगी कि स्थानीय खान-पान और रीति-रिवाज और गली- मोहल्लों के बारे में जिस रोचकता से स्मृति आख्यान लिखे गये हैं उसी तरह से इतिहास में गुम किरदारों और ज्ञान-विज्ञान से जुड़े प्रसंगों के बारे में भी। चाहे जौनपुर के हिन्दी भवन के बारे में लिखा गया स्मृति आख्यान हो, चाहे किसी अल्पज्ञात शख्सियत के योगदान के बारे में, चाहे साहित्य या इतिहास का कोई मसला हो, चाहे कैथी लिपि के चलन से बाहर हो जाने की पड़ताल, आप समान चाव से पढ़ सकते हैं। इन सबसे लेखक का बहुश्श्रुत और बहुपठित व्यक्तित्व उभरता है। इस पुस्तक में संकलित कई निबन्धों के मद्देनजर यह कहा जा सकता है कि ऐसा रसप्रद और खिलन्दड़ा गद्य कहीं और मुश्किल से मिलेगा। ऐसा गद्य लिखते हुए लेखक ने कई जगह नये शब्द भी रचे हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि इस पुस्तक में संकलित कथेतर गद्य की अभिनवता और अनूठेपन को अलक्षित नहीं किया जाएगा।
₹299.00 -
Ishwar Ka Dukh by Shambhu Naath
Ishwar Ka Dukh by Shambhu Naath
ईश्वर का दुख – शंभुनाथये मुश्किल समय की कविताएँ हैं। इनमें कुछ खोते जाने की पीड़ा और नागरिक भय के साथ असहमति की आवाजें हैं। ये ताकत द्वारा निर्मित मायावी दृश्यों से परे दबाये गये सत्य की अभिव्यक्तियाँ हैं। 2020-23 के बीच लिखी गयीं इन कविताओं में ‘प्रचलित’ और ‘प्रचारित’ के बाहर देखने का साहस लक्षित किया जा सकता है।
आज जब हर तरफ शोर और वाग्जाल है, सबसे अधिक जरूरत शब्दों को बचाने की है। यह अनुभव की स्वतन्त्रता के साथ-साथ कुछ जरूरी मूल्यों को बचाना है और कृत्रिम सरहदों को लाँघना है। इस संकलन की कविताएँ वर्तमान दौर के दुख, घबराहट और निश्छल स्वप्नों में साझेदारी से जन्मी हैं। ‘हम-वे’ के उत्तेजक विभाजन के समानान्तर ये अ-पर के बोध से जुड़ी हैं। ये कविताएँ वस्तुतः सुन्दरता, स्वतन्त्रता और भाषा की नयी सम्भावनाओं की तलाश हैं।
₹150.00
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