Kavita Ka Ghanatv – Jitendra Shrivastava (Paperback)

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‘कविता का घनत्व’ – जितेंद्र श्रीवास्तव


पिछले लगभग ढाई दशकों में जिन आलोचकों की आलोचना ने हिंदी को समृद्ध किया है, उनमें प्रतिष्ठित कवि-आलोचक जितेन्द्र श्रीवास्तव अग्रणी हैं। तमाम तरह के गठजोड़ों का प्रत्याख्यान करते हुए उन्होंने सर्वथा नवोन्मेषी आलोचना लिखी है। यही कारण है कि साहित्य प्रेमी और गंभीर अध्येता- दोनों ही जितेन्द्र के लिखे को ढूँढ कर पढ़ते हैं। कहने की आवश्यकता नहीं कि उनकी आलोचना मूल्यवान श्रेणी की आलोचना है। उसमें पक्ष और पक्षधरता है लेकिन कोई पूर्वाग्रह नहीं है। यह मुक्त मन और विवेक की आलोचना है।
जितेन्द्र श्रीवास्तव की यह पुस्तक हिंदी कविता को नये ढंग से समझने की ज़मीन तैयार करती है। बोझिल शब्दावलियों से परे यहाँ आलोचना की भाषा भी कविता की भाषा की तरह तरल, पारदर्शी और तर्कशील है। एक ऐसी भाषा जिसे पाकर पाठक के मन में बौद्धिकता और सहृदयता का अद्भुत रसायन जन्म लेता है।
जितेन्द्र श्रीवास्तव की यह पुस्तक हिंदी काव्यालोचना में पसरे निराशा के वातावरण को न सिर्फ दूर करती है बल्कि यह भरोसा भी पैदा करती है कि अभी बहुत कुछ बचा हुआ है। हिंदी की काव्यालोचना चुपचाप बैठी हुई नहीं है। वह कविता के साथ आत्मीय गलबहियाँ कर रही है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि ‘कविता का घनत्व’ नामक यह पुस्तक हिंदी कविता की समकालीन आलोचना में मील का पत्थर साबित होने जा रही है।
लोकप्रिय संस्कृति की कोख से जन्मी कविता बाज़ार के गणित पर चलती है। जब जैसी हवा रही, वह उधर ही मुड़ जाती है, जबकि साहित्यिक मूल्यों वाली कविता किसी भी परिस्थिति में अपनी प्रतिरोधक क्षमता को समाप्त नहीं होने देती। वह बाज़ार का विपक्ष सृजित करती है। लोकप्रिय संस्कृति का उद्देश्य तृप्ति है। रिलीज और रिलीफ। जबकि लोकवादी संस्कृति वृहत्तर अर्थों में अतृप्ति को जन्म देती है। लेकिन कभी-कभी ऐसा भी होता है जब किसी लोकगीत/लोककथा को आधार मान कर कोई कविता लिखी जाती है तब वह लोकप्रिय संस्कृति से कविता के अंतस्संबंध का ही एक उदाहरण होती है।
आज की कविता जो वैचारिक रूप से अपने अब तक के इतिहास में सर्वाधिक ऊँचाई पर है लेकिन संप्रेषणीयता में सर्वाधिक अलोकप्रिय स्थिति में है, उसे लोकप्रिय संस्कृति का पूर्ण बहिष्कार करते हुए उसे हिकारत की नज़र से नहीं देखना चाहिए। आख़िर ‘भक्ति आंदोलन’ और ‘स्वाधीनता आंदोलन’ से जन्मी कविता आज भी लोकप्रियता का मानक है। वह दिलों में बसी है। यह भी याद रखना चाहिए कि तब उसपर बाज़ार का दबाव नहीं था। लोकप्रियता और गंभीरता का मेल बराबर बड़ी घटनाओं को जन्म देता रहा है। यदि कविता में इसे आजमाया जाए तो शायद सुखद परिणाम आएँ।
– इसी पुस्तक से


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Description

About the Author:

उ.प्र. के देवरिया जिले की रुद्रपुर तहसील के गाँव सिलहटा में जन्म । बी.ए. तक की पढ़ाई गाँव और गोरखपुर में की। तत्पश्चात जे.एन.यू., नयी दिल्ली से हिंदी साहित्य में एम.ए., एम.फिल. और पी-एच.डी.। हिंदी और भोजपुरी में लेखन-प्रकाशन। इन दिनों हालचाल, अनभै कथा, असुंदर सुंदर, बिल्कुल तुम्हारी तरह, कायांतरण, कवि ने कहा, बेटियाँ, उजास (कविता संग्रह), भारतीय समाज, राष्ट्रवाद और प्रेमचंद, शब्दों में समय, आलोचना का मानुष-मर्म, सर्जक का स्वप्न, विचारधारा, नये विमर्श और समकालीन कविता, उपन्यास की परिधि, रचना का जीवद्रव्य, कहानी का क्षितिज, कविता का घनत्व (आलोचना), शोर के विरुद्ध सृजन (ममता कालिया का रचना संसार), प्रेमचंद : स्त्री जीवन की कहानियाँ, प्रेमचंद : दलित जीवन की कहानियाँ, प्रेमचंद: स्त्री और दलित विषयक विचार, प्रेमचंद : हिंदू-मुस्लिम एकता संबंधी कहानियाँ और विचार, प्रेमचंद : किसान जीवन की कहानियाँ, प्रेमचंद : स्वाधीनता आंदोलन की कहानियाँ, कहानियाँ रिश्तों की (परिवार), प्रेमचंद कहानी समग्र (संपादन) इनकी प्रकाशित कृतियाँ हैं। कई कविताओं का अंग्रेजी, मराठी, उर्द, उड़िया और पंजाबी में अनुवाद। साहित्यिक पत्रिका उम्मीद’ का संपादन। अब तक भारत भूषण अग्रवाल सम्मान’, ‘देवीशंकर अवस्थी सम्मान’, ‘कृति सम्मान’, उ.प्र. हिंदी संस्थान का ‘रामचंद्र शुक्ल पुरस्कार’ व ‘विजयदेव नारायण साही पुरस्कार’, भारतीय भाषा परिषद्, कोलकाता का युवा पुरस्कार, डॉ. रामविलास शर्मा आलोचना सम्मान और परंपरा ऋतुराज सम्मान ग्रहण कर चुके हैं।

Additional information

ISBN

9789389830903

Author

Jitendra Shrivastava

Binding

Paperback

Pages

303

Publisher

Setu Prakashan Samuh

Imprint

Setu Prakashan

Language

Hindi

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