Description
स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान मौलाना आज़ाद के ऊपर 1920 में राजद्रोह का मुक़दमा चलाया गया था, जिसके जवाब में उन्होंने कोर्ट में तहरीरी बयान दिया था, जो उर्दू भाषा में क़ौल-ए-फ़ैसल नाम से प्रकाशित हुआ। आज के समय में देशद्रोह, राष्ट्रवाद जैसे बेहद ज्वलंत मुद्दों के सन्दर्भ में यह बेहद प्रासंगिक है। मौलाना आज़ाद की इस क़ौल-ए-फ़ैसल के माध्यम से न केवल राजद्रोह क़ानून को ऐतिहासिक नज़रिए से समझा जा सकता है बल्कि मौजूदा दौर की राजद्रोह क़ानूनी की जटिलताओं को भी समझने में पाठकों के लिए यह किताब एक महत्त्वपूर्ण साबित होगी।
Reviews
There are no reviews yet.