श्रीरामकृष्ण परमहंस संपादक अवधेश प्रधान
“कछुआ रहता तो पानी में है, पर उसका मन रहता है किनारे पर जहाँ उसके अण्डे रखे हैं। संसार का काम करो, पर मन रखो ईश्वर में।”
“बिना भगवद्-भक्ति पाये यदि संसार में रहोगे तो दिनोदिन उलझनों में फँसते जाओगे और यहाँ तक फँस जाओगे कि फिर पिण्ड छुड़ाना कठिन होगा। रोग, शोक, तापादि से अधीर हो जाओगे। विषय-चिन्तन जितना ही करोगे, आसक्ति भी उतनी ही अधिक बढ़ेगी।”
“संसार जल है और मन मानो दूध । यदि पानी में डाल दोगे तो दूध पानी में मिल जाएगा, पर उसी दूध का निर्जन में मक्खन बनाकर यदि पानी में छोड़ोगे तो मक्खन पानी में उतराता रहेगा। इस प्रकार निर्जन में साधना द्वारा ज्ञान-भक्ति प्राप्त करके यदि संसार में रहोगे भी तो संसार से निर्लिप्त रहोगे।”
– इसी पुस्तक से