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Chinhat 1857 : Sangharsh Ki Gourav Gatha – Rajgopal Singh Verma

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चिनहट 1857
(संघर्ष की गौरव गाथा) — राजगोपाल सिंह वर्मा


आम-ओ-खास की यादों में जिन्दा शहरों की तादाद कम ही है। लखनऊ का मकाम इसलिए भी ऊँचा है क्योंकि यह शहर सैलानियों के साथ-साथ इतिहास के जानकारों को भी खासा आकर्षित करता रहा है। राजधानी का दर्जा हासिल रखने वाला ये शहर अपने बाशिन्दों को तो मोहता ही है प्रवासियों को भी अपना मुरीद बनाने में कोई कोर-कसर नहीं उठा रखता।
अवध सूबे की पहचान रहे इस शहर का इतिहास जानने के लिए दस्तावेजों को तफसील से उलटना-पलटना जरूरी है। शहर लखनऊ इतिहास में कितना जिन्दा बचा है इसकी मालूमात दर्ज इतिहास से की जा सकती है। वहीं लखनऊ में जिन्दा इतिहास को खंगालने के लिए भर नजर शहर को देखना ही काफी है। जर्रा-जर्रा इतिहास है यह शहर। इतिहास का वो वक्फा जो दर्ज न हो सका या माकूल तवज्जो न पा सका उसे भी ढूँढ़ा और बयान किया जा सकता है। जरूरत है तो बस नजर, हुनर और सबर की।
इन्हीं जरों में से एक पन्ना चिनहट का है जिससे राजगोपाल सिंह वर्मा जी की यह किताब हमें शिद्दत से रूबरू करवाती है। औपनिवेशिक काल में सन् 1857 का घटनाक्रम जंग-ए-आजादी का प्रस्थान बिन्दु है। उसे तय करने में चिनहट संघर्ष की अहम भूमिका रही है। 30 जून 1857 को शहर लखनऊ के इस्माइल गंज इलाके से आगे चिनहट में एक सैनिक मुठभेड़ हुई थी। कुछ ही घण्टे चले इस संघर्ष में अँग्रेजी सेना को मुँह की खानी पड़ी। बरकत अहमद के लड़ाकों ने फिरंगी सेना को खूब छकाया और बढ़त हासिल कर ली। नतीजतन उन्होंने कदम पीछे खींच रेजीडेन्सी की राह ली। कुछ देर के इस संघर्ष ने इतिहास का एक नया अध्याय लिखा जिसके विस्तार और बारीकी से राजगोपाल सिंह वर्मा जी हमें परिचित करा रहे हैं।
30 जून 1857 के घटनाक्रम के पश्चात् लखनऊ रेजीडेन्सी राजनीतिक कूटनीतिक गतिविधियों का केन्द्र बनी। बागियों पर नवाबी खानदान की सरपरस्ती थी जिसमें बेगम हजरत महल की अहम भूमिका रही। चिनहट घटनाक्रम से जुड़े पक्ष-विपक्ष के सन्दर्भ इतिहास के दस्तावेजों में मौजूद हैं, जिनका विस्तृत विश्लेषण राजगोपाल जी ने इस पुस्तक में किया है। इतिहास के ये पन्ने हमारी पहचान हमारे अतीत से करवाते हैं। इनसे हम सीखते हैं कि एका में कितना बल है। हम जानते हैं कि सामूहिकता हमारे आत्मसम्मान को तो बचाती ही है हमारे राष्ट्रीय गौरव को भी सुरक्षित रखती है। हमारे समय को इतिहास के तटस्थ विश्लेषण की दरकार है।
– नीलिमा पाण्डेय
एसोसिएट प्रोफेसर
प्राचीन इतिहास एवं पुरातत्त्व विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय


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Description

Chinhat 1857 : Sangharsh Ki Gourav Gatha – Rajgopal Singh Verma


चिनहट का युद्ध अचानक नहीं हो गया था। इसके लिए उसी तरह की परिस्थितियों का निर्माण हो रहा था, जैसे 10 मई को मेरठ के विद्रोह के पीछे विकसित हुई घटनाएँ जिम्मेदार थीं। अगर सब कुछ ठीक से चलता रहता, तो न कोई क्रान्ति होती, और न ही लोगों को कोई शिकायत। फिरंगी शासन करते रहते और यहाँ के संसाधनों का दोहन कर हमें अँधेरे युग में धकेलते रहते, पर कहते हैं कि सत्ता भ्रष्ट करती है और निरंकुश सत्ता पूरी तरह से भ्रष्ट करती है। यह कहावत इन फिरंगियों के ऊपर ठीक बैठती थी। ये हमारे प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के लिए आकण्ठ भ्रष्ट आचरण में डूबने, स्थानीय लोगों के लगातार उत्पीड़न के साथ-साथ यहाँ के निवासियों की भावनाओं के प्रति भी दुस्साहसिक रूप से असंवेदनशील हो चुके थे। ऐसे में चिनहट के रूप में इन्हें अवध के लोगों और उनकी अपनी सेनाओं के स्थानीय सैनिकों के आक्रोश का सामना तो करना ही था। ऐसे में चिनहट के इस युद्ध से पूर्व की परिस्थितियों और उसके बाद के घटनाक्रम को समझना भी जरूरी है। इसीलिए इस पुस्तक में वह विवरण भी दिया गया है जो एकबारगी इस घटनाक्रम से असम्बद्ध लगता है…
इस युद्ध से एक बात और महत्त्वपूर्ण रूप से उभरकर आयी थी। स्थानीय लोगों ने अपनी सांस्कृतिक विरासत और संस्कारों के अनुरूप सिद्ध कर दिखाया था कि वे किसी भी आक्रान्ता के विरुद्ध जी-जान से लड़ने को तैयार हैं, पर मानवीयता उनके मानस का अटूट हिस्सा है, उनके वजूद में आत्मसात् है, वे उससे भी पीछे नहीं हटने वाले। यही कारण था कि जब चिनहट के युद्ध में फिरंगियों ने हार के बाद हड़बड़ाहट में रेजीडेंसी की तरफ वापसी की तो लुटी-पिटी अवस्था में, जून की तपती गर्मी में उन भूखे-प्यासे अफसरों और सैनिकों को दूध-पानी पिलाने, उनकी सेवा-शुश्रूषा करने, खाद्य सामग्री उपलब्ध कराने में आम लोगों ने जो संवेदनशील भावनाएँ दिखाईं, वे इन तथाकथित शिक्षित और आधुनिक, परन्तु असंवेदनशील कहे जाने वाले फिरंगियों के लिए आँखें खोल देने वाली घटनाएँ थीं।
– इसी पुस्तक से


About the Author:

राजगोपाल सिंह वर्मा

पत्रकारिता तथा इतिहास में स्नातकोत्तर। केन्द्र एवं उत्तर प्रदेश सरकार में विभिन्न मन्त्रालयों में प्रकाशन, प्रचार और जनसम्पर्क के क्षेत्र में जिम्मेदार पदों पर कार्य। कई वर्षों तक उ.प्र. सरकार की साहित्यिक पत्रिका ‘उत्तर प्रदेश’ का स्वतन्त्र सम्पादन। उद्योग मन्त्रालय तथा स्वास्थ्य मन्त्रालय, भारत सरकार में भी सम्पादन का अनुभव।
इनकी प्रमुख पुस्तकें हैं- ‘बेगम समरू का सच’ (उत्तर प्रदेश राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान का ‘पं. महावीर प्रसाद द्विवेदी सम्मान’); ‘360 डिग्री वाला प्रेम’ (उपन्यास); ‘अर्थशास्त्र नहीं है प्रेम’, ‘इश्क… लखनवी मिजाज का’ (कहानी संग्रह); ‘गोरों का दुस्साहस’, ‘दुर्गावती गढ़ा की पराक्रमी रानी’; पाकिस्तान के प्रथम प्रधानमन्त्री लियाकत अली खान की पत्नी की बायोग्राफी’ पहली औरत राना बेगम’ आदि।
‘दुस्साहसी जॉर्ज थॉमस यानी हाँसी का राजा’, सन् 1857 के संग्राम पर उत्तर दोआब के क्षेत्र की घटनाओं पर आधारित उपन्यास ‘ 1857 का शंखनाद’ प्रकाशनाधीन ।—

Additional information

ISBN

9788196103408

Author

Rajgopal Singh Verma

Binding

Paperback

Pages

232

Publication date

25-02-2023

Imprint

Setu Prakashan

Language

Hindi

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