Description
Chinhat 1857 : Sangharsh Ki Gourav Gatha – Rajgopal Singh Verma
चिनहट का युद्ध अचानक नहीं हो गया था। इसके लिए उसी तरह की परिस्थितियों का निर्माण हो रहा था, जैसे 10 मई को मेरठ के विद्रोह के पीछे विकसित हुई घटनाएँ जिम्मेदार थीं। अगर सब कुछ ठीक से चलता रहता, तो न कोई क्रान्ति होती, और न ही लोगों को कोई शिकायत। फिरंगी शासन करते रहते और यहाँ के संसाधनों का दोहन कर हमें अँधेरे युग में धकेलते रहते, पर कहते हैं कि सत्ता भ्रष्ट करती है और निरंकुश सत्ता पूरी तरह से भ्रष्ट करती है। यह कहावत इन फिरंगियों के ऊपर ठीक बैठती थी। ये हमारे प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के लिए आकण्ठ भ्रष्ट आचरण में डूबने, स्थानीय लोगों के लगातार उत्पीड़न के साथ-साथ यहाँ के निवासियों की भावनाओं के प्रति भी दुस्साहसिक रूप से असंवेदनशील हो चुके थे। ऐसे में चिनहट के रूप में इन्हें अवध के लोगों और उनकी अपनी सेनाओं के स्थानीय सैनिकों के आक्रोश का सामना तो करना ही था। ऐसे में चिनहट के इस युद्ध से पूर्व की परिस्थितियों और उसके बाद के घटनाक्रम को समझना भी जरूरी है। इसीलिए इस पुस्तक में वह विवरण भी दिया गया है जो एकबारगी इस घटनाक्रम से असम्बद्ध लगता है…
इस युद्ध से एक बात और महत्त्वपूर्ण रूप से उभरकर आयी थी। स्थानीय लोगों ने अपनी सांस्कृतिक विरासत और संस्कारों के अनुरूप सिद्ध कर दिखाया था कि वे किसी भी आक्रान्ता के विरुद्ध जी-जान से लड़ने को तैयार हैं, पर मानवीयता उनके मानस का अटूट हिस्सा है, उनके वजूद में आत्मसात् है, वे उससे भी पीछे नहीं हटने वाले। यही कारण था कि जब चिनहट के युद्ध में फिरंगियों ने हार के बाद हड़बड़ाहट में रेजीडेंसी की तरफ वापसी की तो लुटी-पिटी अवस्था में, जून की तपती गर्मी में उन भूखे-प्यासे अफसरों और सैनिकों को दूध-पानी पिलाने, उनकी सेवा-शुश्रूषा करने, खाद्य सामग्री उपलब्ध कराने में आम लोगों ने जो संवेदनशील भावनाएँ दिखाईं, वे इन तथाकथित शिक्षित और आधुनिक, परन्तु असंवेदनशील कहे जाने वाले फिरंगियों के लिए आँखें खोल देने वाली घटनाएँ थीं।
– इसी पुस्तक से
About the Author:
राजगोपाल सिंह वर्मा
पत्रकारिता तथा इतिहास में स्नातकोत्तर। केन्द्र एवं उत्तर प्रदेश सरकार में विभिन्न मन्त्रालयों में प्रकाशन, प्रचार और जनसम्पर्क के क्षेत्र में जिम्मेदार पदों पर कार्य। कई वर्षों तक उ.प्र. सरकार की साहित्यिक पत्रिका ‘उत्तर प्रदेश’ का स्वतन्त्र सम्पादन। उद्योग मन्त्रालय तथा स्वास्थ्य मन्त्रालय, भारत सरकार में भी सम्पादन का अनुभव।
इनकी प्रमुख पुस्तकें हैं- ‘बेगम समरू का सच’ (उत्तर प्रदेश राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान का ‘पं. महावीर प्रसाद द्विवेदी सम्मान’); ‘360 डिग्री वाला प्रेम’ (उपन्यास); ‘अर्थशास्त्र नहीं है प्रेम’, ‘इश्क… लखनवी मिजाज का’ (कहानी संग्रह); ‘गोरों का दुस्साहस’, ‘दुर्गावती गढ़ा की पराक्रमी रानी’; पाकिस्तान के प्रथम प्रधानमन्त्री लियाकत अली खान की पत्नी की बायोग्राफी’ पहली औरत राना बेगम’ आदि।
‘दुस्साहसी जॉर्ज थॉमस यानी हाँसी का राजा’, सन् 1857 के संग्राम पर उत्तर दोआब के क्षेत्र की घटनाओं पर आधारित उपन्यास ‘ 1857 का शंखनाद’ प्रकाशनाधीन ।—
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