Waqt Ki Gulel By Ramesh Prajapati

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वक़्त की गुलेल रमेश प्रजापति का पाँचवाँ कविता-संग्रह है। समय-समाज कैसा भी रहे-एक कवि की पकड़ हमेशा अपने समाज पर बनी रहती है। वह शोषण के विरुद्ध एवं समानता, न्याय और जन-संघर्ष के साथ खड़ा रहता है। रमेश जी की कविताएँ इसी प्रतिबद्धता को दर्ज करती हैं।

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वक़्त की गुलेल रमेश प्रजापति का पाँचवाँ कविता-संग्रह है। समय-समाज कैसा भी रहे-एक कवि की पकड़ हमेशा अपने समाज पर बनी रहती है। वह शोषण के विरुद्ध एवं समानता, न्याय और जन-संघर्ष के साथ खड़ा रहता है। रमेश जी की कविताएँ इसी प्रतिबद्धता को दर्ज करती हैं। स्त्री पर अत्याचार और हिंसा, मज़दूर वर्ग का शोषण, इस सब का प्रतिकार, मध्यम वर्ग की बेचैनी और छटपटाहट इनकी कविताओं के प्राण तत्त्व हैं । वैश्वीकरण के इस दौर में पूँजीवाद ने समाज को उपभोक्तावादी बनाकर उसकी संवेदनाओं का अपहरण कर लिया है और हमारे जल, जंगल, ज़मीन को बाज़ार का उत्पाद बनाकर पर्यावरण का संकट पैदा किया है। साम्प्रदायिकता का कोढ़ समाज को लगातार खोखला करता जा रहा है जिसके तहत एक समुदाय के ख़िलाफ़ नफ़रत पैदा की जा रही है। ये प्रश्न इस संग्रह में बार-बार उठाये गये हैं।

About the Author:

जन्म : 02 जून गाँव सोरम, मुजफरनगर, उत्तर प्रदेश। शिक्षा: एम.ए. (हिन्दी, संस्कृत), पी-एच.डी. प्रकाशित कविता संग्रह- 1. पूरा हँसता चेहरा (2006) 2. शून्यकाल में बजता झुनझुना (2015) 3. भीतर का देश (2021) 4. समकाल की आवाज़ – चयनित कविताएँ (2022) 5. वक़्त की गुलेल (2023) अनुवाद: कुछ कविताएँ अँग्रेजी और चाइनीज़, के साथ-साथ उर्दू, बांग्ला, मराठी, गुजराती, मलयालम, भोजपुरी आदि भारतीय भाषाओं में भी अनूदित एवं प्रकाशित । अन्य : विविध पत्र-पत्रिकाओं में कहानी, लघुकथाएँ और आलोचनात्मक आलेख प्रकाशित । सम्मान / पुरस्कार : मलखान सिंह सिसौदिया पुरस्कार, अलीगढ़ (2015); शिक्षक साहित्यकार सम्मान, लखनऊ (2015)। सम्प्रति : शिक्षा निदेशालय, दिल्ली सरकार में कार्यरत ।

SKU: waqt-ki-gulel-by
Category:
ISBN

9788196213886

Author

Ramesh Prajapati

Binding

Paperback

Pages

136

Publication date

25-02-2023

Imprint

Setu Prakashan

Language

Hindi

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