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प्रस्तुत पुस्तक विश्वप्रसिद्ध फ्रेंच दार्शनिक ज़ाक देरिदा की चर्चित पुस्तक `स्पेक्टर्स ऑफ़ मार्क्स` का अनुवाद है। अनुवाद साहित्य और संस्कृति के गंभीर अध्येता प्रो. रामकीर्ति शुक्ल ने किया है, साथ ही उन्होंने एक विस्तृत भूमिका भी लिखी है, जो देरिदा की उपर्युक्त कृति को समझने में सहायक होगी।
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“यह पुस्तक एक तरह से बहुआयामी संवाद के लिए आग्रह है। दर्शनों के बीच संवाद, दार्शनिकों और आम लोगों के बीच संवाद, लोक परम्परा और शास्त्रीय परम्परा के बीच संवाद, पश्चिम और पूरब के बीच संवाद, संस्कृतियों के बीच संवाद, अलग-अलग धर्मों के बीच संवाद और बुद्धिजीवियों और आम जन के बीच संवाद के लिए आग्रह है।
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अक्स के संस्मरणों के चरित्र, अखिलेश की जीवनकथा में घुल-मिलकर उजागर होते हैं। अखिलेश का कथाकार इन स्मृति लेखों में मेरे विचार से नयी ऊँचाई पाता है। उनके गद्य में, उनके इन संस्मरणात्मक लेखन के वाक्य में अवधी की रचनात्मकता का जादू भरा है। -विश्वनाथ त्रिपाठी…
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दो गज़ की दूरी’ वरिष्ठ कहानीकार ममता कालिया का नवीन कहानी-संग्रह है।इन कहानियों की विशेषता इनकी सहजता और सरलता है। ये अपनी संवेदनात्मक संरचना में से होते-होते दृश्यों, कथनों, अतिपरिचित मनोभावों के सहारे आगे बढ़ती हैं। ममता कालिया व्यंग्य नहीं, विडम्बना के सहारे आज के जीवन की अर्थहीनता को तलाशती हैं।
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‘खेला’ को आख्यान की सिद्ध वर्णन कला और विरल सृजनात्मक भाषा के लिए भी पढ़ा जाना चाहिए। उक्त दोनों ही यहाँ जीवन, विचार, कला के सम्मिलित धागों से से निर्मित हुए हैं और इनकी एक बेहतर पुनर्रचना तैयार कर सकते हैं। संक्षेप में ‘खेला’ के बारे में कह सकते हैं : एक महत्वपूर्ण उपन्यास जिसमें अभिव्यक्त खुशियाँ, त्रासदियाँ असह्य, बेधक और बेचैन करने वाली हैं फिर भी पाठक उनकी गिरफ़्त में बने रहना चाहेगा।
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फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ सरकारों की तानाशाही के ख़िलाफ़ अब प्रतीक बन चुके हैं, जहाँ-जहाँ भी ज़ुल्म व सितम होते हैं उनकी कविताएँ पोस्टर और नारों की शक्ल में लहराने लगती हैं. उनके जीवन के प्रति जिज्ञासा का भाव स्वाभाविक है. उनके नाती अली मदीह हाशमी ने उनकी जीवनी अंग्रेजी में लिखी है जिसका हिंदी अनुवाद सेतु प्रकाशन से आया है. इसे फ़ैज़ की अधिकृत जीवनी कहा जा रहा है.
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बनारस-रमे विद्वान और सजग रंग-समीक्षक सत्यदेव त्रिपाठी ने जयशंकर प्रसाद की यह जीवनी लिखी है। एक मूर्धन्य कवि, उसके निजी और सर्जनात्मक-बौद्धिक संघर्ष, उनकी जिजीविषा और दुखों आदि के बारे में जानकार हम प्रसाद की महिमा और अवदान को बेहतर समझ-सराह पाएँगे।
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यह पुस्तक अपने समय कइ सम्पूर्ण तस्वीर कइ तरह उभर के सामने आयी जो हर युग के लिए मान्य है। पुस्तक में स्वाभिमान और आक्रोश का भाव रचा-बसा है, और है एक आह्यान-कि अधीरता से, लोलुपता से दूर रहो, दृढ़ बने रहो और बार-बार प्रतिरोध करके अधिक से अधिक शक्तिमान बनो।
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