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Ladki Aur Chinar Ki Prem Katha By Asiya Zahoor
इस संग्रह की कविताओं में वह सघन संवेदना और बौद्धिक बेचैनी है, जिसके माध्यम से आसिया जहूर कई स्तरों पर दुख और दमन को देखती और महसूस करती हैं। समय का दुख, समाज का दुख, और सबसे ऊपर स्त्री का दुख। लेकिन, उनकी कविता दुखों और संघर्षों की सहज अभिव्यक्ति मात्र नहीं है, वह मिथक, इतिहास, संस्कृति और लोकजीवन में गहरे प्रवेश करते हुए अपने दुख को महाकरुणा में रूपान्तरित कर देती है। वह करुणा ही है जो बुद्ध और यीशु के कई बार साधारण से लगने वाले शब्दों में भी असाधारण प्रभाव पैदा कर देती है। एक अच्छी कविता में जीवन की अभिप्रेरक अभिव्यक्ति तो होती है, लेकिन करुणा का ऐसा विस्तार दुर्लभ है। निस्सन्देह आसिया जहूर हमारे समय की एक अनोखी कवयित्री हैं। नये मिलेनियम की मेड्यूसा हैं, जो अपनी विवशता को शक्ति में बदल देती है, नये युग
की जुलेखा, जो फ़रिश्ते जिब्राईल के सामने सौदे से इनकार कर देती है। ‘युवा लड़की और वृद्ध चिनार की प्रेम कथा’ एक अद्भुत प्रेम कविता है। चिनार कश्मीर की प्रकृति और संस्कृति का मूर्त रूप है, जो एक युवा लड़की यानी, आज के समय की जूनी अर्थात् हब्बा ख़ातून से प्रेम कर रहा है। प्रेम का यह विस्तार उसी करुणा तक पहुँचता है, जो आसिया की कविता के केन्द्र में है।वह समय के संकट को व्यक्त करने के लिए हर बार मिथकों या पुराकथाओं का सहारा ही नहीं लेती बल्कि, कई बार क्रूर सच से सीधे टकराती है। लेकिन, यह याद रखते हुए कि कविता अन्ततः एक कला है। मेरी दादी बुनती थी…, गहन सैन्यीकृत क्षेत्र में… और मेरी बेटी के लिए… जैसी कविताओं में अतीत, वर्तमान और भविष्य (सम्भावित) के दमन और क्रूरता की अभिव्यंजना के बीच प्रतिरोध की वह ऊँचाई है, जिसके सामने बड़ा से बड़ा अत्याचारी शासक भी बौना दीखने लगता है। यह है कविता की ताक़त !– मदन कश्यप
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Kabhi Purniya Mein (History) By Dr. Ashok Kumar Jha
एक महत्त्वपूर्ण किताब है जो केवल पूर्णिया क्षेत्र में रहने वाले ब्रिटिश नागरिकों के जीवन के दस्तावेजीकरण तक सीमित नहीं है बल्कि इसकी वास्तविक प्रासंगिकता औपनिवेशिक भारत में यूरोपीय आबादी और स्थानीय समाज के मध्य बुने गये सम्बन्धों के उस जटिल ताने-बाने को उजागर करने में है जिसके स्रोत आज भी पूर्णिया क्षेत्र में देखे जा सकते हैं।
-देवेन्द्र चौबे,
भारतीय भाषा अध्ययन केन्द्र,
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालयBuy This Book Instantly thru RazorPay (15% + 5% extra discount)₹650.00 -
Mukkam Vashi : Kumar Gandharava Se Batcheet
कुमार गन्धर्व उन विरले शास्त्रीय संगीतकारों में से रहे हैं जिन्होंने समझ और संवेदना से, साहस और निर्भीकता से संगीत के बारे में गहन चिन्तन किया; और परम्परा, उत्तराधिकार व अन्य कलाओं के साथ संवाद, रसिकता, समकालीनता आदि का प्रश्नांकन भी किया। उनके संगीत में, उसकी सघनता, व्याप्ति और वितान में इस प्रश्नांकन ने बड़ी सर्जनात्मक भूमिका निभायी है। उनका सांगीतिक सौन्दर्य गहरे और लम्बे वैचारिक संघर्ष की आभा से उपलब्ध और आलोकित हुआ है। उनके यहाँ विचार निरा विचार नहीं रागसिक्त विचार है; उनके यहाँ राग वैचारिक कर्म भी है। I उन्होंने रसिकों, संगीतकारों आदि के साथ जो लम्बी बातचीत की थी वह मराठी में थी । कुमार शती के अवसर पर रज़ा फ़ाउण्डेशन संगीत- चिन्तन की इस मूल्यवान् पुस्तक को हिन्दी अनुवाद में प्रस्तुत करते हुए कृतकार्य अनुभव करता है।
– अशोक वाजपेयी
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Vang Chii By Manish Vaidya
ये कहानियाँ उत्तर भूमण्डलीकृत हमारे समाज का वीभत्स, क्रूर लेकिन मुस्कराता और अपनी चमक- दमक से हमें लुभाता हुआ चेहरा हमारे सामने लाता है। मानवीय संवेदनाओं के चितेरे मनीष ने आज के दौर को अनूठे ढंग और खूबी से प्रस्तुत किया है और उसमें भी वे ख़ासकर छोटे-छोटे हुनरमन्द लोगों के रोजगार के कम या बन्द होने की चिन्ता को कहानी की केन्द्रीय चिन्ता बनाकर बड़े फ़लक पर ले जाते हैं या लगातार टूटते गाँव-क़स्बों को जिस शिद्दत और अपनेपन से सामने रखते हैं, वह साबित करता है कि अपने गाँव की मिट्टी से जुड़े रहने के साथ मनीष समाज में तेजी से घट रहे बदलावों और छोटे तथा दबे-कुचले लोगों के लिए सतत क्रूर होते जा रहे समय की नब्ज़ को पहचानते हैं और अपने किरदारों के जरिये उन्हें अपनी कहानियों में जगह देते हैं। दुनिया के एक बाजार में तब्दील होते जाने और हमारे बीच से मनुष्यता, प्रेम और करुणा के कमतर होते जाने की पीड़ा को व्यक्त करती बड़बोलेपन और नारेबाज़ी से दूर उनकी यथार्थवादी कहानियों में विचार अण्डरटोन में भीनी गन्ध की तरह पाठक को छूकर निकल जाता है लेकिन उस गन्ध की महक गहरे तक धँसकर पाठक के मन में लम्बे वक़्त तक बनी रहती है।
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₹275.00 -
Ramcharitrmanas Awadhi-Hindi Kosh
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तुलसीदास का महाकाव्य ‘रामचरितमानस’ एक अप्रतिम क्लैसिक है। वह सदियों पहले लिखी गयी काव्य-गाथा भर नहीं है – वह आज भी सन्दर्भ, पाठ, प्रस्तुति, जनव्याख्या, संगीत-नृत्य-नाट्य में सजीव, सक्रिय और प्रासंगिक कविता है। हिन्दी में जितने पाठक, रसिक, व्याख्याकार, अध्येता, भक्त इस काव्य के हैं उतने किसी और काव्य के नहीं। लोकप्रियता और महत्त्व दोनों में तुलसीदास अद्वितीय हैं।
रामचरितमानस पर एकाग्र अवधी-हिन्दी कोश तुलसी अध्ययन का एक मूल्यवान् उपयोगी सन्दर्भ-ग्रन्थ है। अकेले एक महाकाव्य पर केन्द्रित यह हिन्दी का सम्भवतः पहला कोश है। इस महाकाव्य में अवधी की विपुलता, सघनता, वैभव, सुषमा-सुन्दरता आदि का अद्भुत रसायन है। एक महाकवि होने के नाते तुलसीदास ने अनेक शब्दों को नये अर्थ, नयी अर्थाभा दी है। बहुत सारे शब्दों के प्रचलित अर्थों से उन्हें ठीक या सटीक ढंग से नहीं समझा जा सकता है। इस सन्दर्भ में यह कोश उन नये और कई बार अप्रत्याशित अर्थों की ओर हमें ले जाता है।एक ऐसे समय में जब राम और तुलसीदास दोनों ही दुर्व्याख्या और दुर्विनियोजन के लगभग रोज़ शिकार हो रहे हैं तब इस कोश का प्रकाशन सम्बन्ध और संवेदना, खुलेपन और ग्रहणशीलता, समरसता और भाषिक विविधता की ओर ध्यान खींचता है। रज्जा पुस्तक माला में इस महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ को प्रकाशित करते हुए प्रसन्नता है।– अशोक वाजपेयीBuy This Book with 1 Click Via RazorPay (15% + 5% discount Included)
₹499.00 -
Asahmatiyon Ke Vaibhav Ke Kavi Shriprakash Shukla
1990 के बाद जिन कवियों ने हिन्दी कविता के आँगन में दस्तक दी, उनमें आज श्रीप्रकाश शुक्ल अग्रगण्य हैं। उनकी लगभग तीस वर्षीय काव्य-यात्रा का मूल्यांकन है यह पुस्तक ।
श्रीप्रकाश शुक्ल का काव्य-संसार मूलतः उनका आस-पड़ोस है। आस-पड़ोस का अर्थ सहजीवन से है। सहजीवन में प्रकृति और उसके उपदान हैं; सामाजिक हैं, सामाजिक की सामूहिक चेतना है; उत्सव है, ध्वंस है-विसंगतियाँ, अपक्षरण, क्रूरताएँ हैं। ये सब मिलकर जिस काव्यात्मक व्यायोम की रचना करते हैं और उसके लिए काव्य की जिस संवेदनात्मक संरचना का विस्तार करते हैं- उसके लगभग सभी आयामों को इस पुस्तक में दर्ज करने की कोशिश की गयी है। इसमें वरिष्ठ से लेकर नव्यतम पीढ़ी के रचनाकारों ने जो योगदान दिया है, वह सम्पादक द्वय के उद्यम के साथ ही कवि की व्यापक स्वीकृति का परिचायक है।
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Main Adhuri Deergh Kavita – Gajanan Madhav Muktibodh Ki Jeevani-Khand-2
यह सम्भवतः हिन्दी में किसी लेखक की सबसे लम्बी जीवनी है। इसमें सन्देह नहीं कि इस वृत्तान्त से हिन्दी के एक शीर्षस्थानीय लेखक के सृजन और विचार के अनेक नये पक्ष सामने आएँगे और कविता तथा आलोचना की कई पेचीदगियाँ समझने में मदद मिलेगी।
मुक्तिबोध के हमारे बीच भौतिक रूप से न रहने के छः दशक पूरे होने के वर्ष में इस लम्बी जीवनी को हम, इस आशा के साथ, प्रकाशित कर रहे हैं कि वह मुक्तिबोध को फिर एक जीवन्त उपस्थिति बना सकने में सफल होगी।– अशोक वाजपेयी₹750.00 -
Main Adhuri Deergh Kavita – Gajanan Madhav Muktibodh Ki Jeevani-Khand-1
यह सम्भवतः हिन्दी में किसी लेखक की सबसे लम्बी जीवनी है। इसमें सन्देह नहीं कि इस वृत्तान्त से हिन्दी के एक शीर्षस्थानीय लेखक के सृजन और विचार के अनेक नये पक्ष सामने आएँगे और कविता तथा आलोचना की कई पेचीदगियाँ समझने में मदद मिलेगी।
मुक्तिबोध के हमारे बीच भौतिक रूप से न रहने के छः दशक पूरे होने के वर्ष में इस लम्बी जीवनी को हम, इस आशा के साथ, प्रकाशित कर रहे हैं कि वह मुक्तिबोध को फिर एक जीवन्त उपस्थिति बना सकने में सफल होगी।– अशोक वाजपेयी₹750.00 -
Rang Yatriyo Ke Rahe Guzar by Satya Dev Tripathi
लेकिन इसी सिलसिले में कुछ गिने-चुने लोगों के साथ मानवोचित प्रक्रिया में ऐसे सह-सम्बन्ध भी बने, जिसमें नाटक तो मूल आधार बना और अन्त तक प्रमुख सरोकार बनकर रहा भी, लेकिन उसमें मानवीय प्रवृत्तियाँ नाटक की सीमाओं को लाँघकर जीवनपरक भी हो गयीं-सिर्फ़ नाटक को होने की मोहताज न रहीं। और यह कहने में मुझे कोई संकोच नहीं, कि जीवन से जुड़ जाने के बाद उनके साथ उनके रंगकर्म को समग्रता में जानने-समझने का लुत्फ़ ही कुछ और हो गया। इनमें कुछ बुजुर्ग व महनीय लोगों (ए.के. हंगल, हबीब तनवीर, सत्यदेव दुबे… आदि) से अकूत स्नेह मिला, अनकही सुरक्षा मिली और काफ़ी कुछ सीखने-जानने को मिला…, तो वहीं कुछ हमउम्री के आसपास के रंगकर्मियों के साथ अहर्निश के रिश्ते बने। आपसी दुख-सुख एक हो गये। उनके साथ से संघर्षों-चुनौतियों में सम्बल मिले।– आमुख से₹350.00 -
Dalit Kavita – Prashana aur Paripekshya – Bajrang Bihari Tiwari
दलित साहित्यान्दोलन के समक्ष बाहरी चुनौतियाँ तो हैं ही, आन्तरिक प्रश्न भी मौजूद हैं। तमाम दलित जाति-समुदायों के शिक्षित युवा सामने आ रहे हैं। ये अपने कुनबों के प्रथम शिक्षित लोग हैं। इनके अनुभव कम विस्फोटक, कम व्यथापूरित, कम अर्थवान नहीं हैं। इन्हें अनुकूल माहौल और उत्प्रेरक परिवेश उपलब्ध कराना समय की माँग है। वर्गीय दृष्टि से ये सम्भावनाशील रचनाकार सबसे निचले पायदान पर हैं। यह ज़िम्मेदारी नये मध्यवर्ग पर आयद होती है कि वह अपने वर्गीय हितों के अनपहचाने, अलक्षित दबावों को पहचाने और उनसे हर मुमकिन निजात पाने की कोशिश करे। ऐसा न हो कि दलित साहित्य में अभिनव स्वरों के आगमन पर वर्गीय स्वार्थ प्रतिकूल असर डालने में सफल हों।
– इसी पुस्तक सेBuy This Book with 1 Click Via RazorPay (15% + 5% discount Included)
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Renu : Kahani Ka Hiraman By Mrityunjay Pandey
फणीश्वरनाथ रेणु पर बहुत कुछ लिखा गया है लेकिन मृत्युंजय पाण्डेय की यह किताब रेणु :
कहानी का हिरामन रेणु सम्बन्धी ढेर सारी आलोचनात्मक सामग्री के बरअक्स कई मायनों में विशिष्ट है। अलबत्ता जैसा कि नाम से ही जाहिर है, इस समीक्षात्मक कृति को लेखक ने रेणु की कहानियों तक सीमित रखा है। पर इससे लाभ यह हुआ कि कहानीकार रेणु के अनूठेपन, उनकी कहानी यात्रा के विभिन्न पड़ावों, उनकी कहानियों की रचना प्रक्रिया और पृष्ठभूमि, उनके शिल्प और कथ्य आदि की विस्तार से चर्चा हो सकी है, और यह विद्यार्थियों व शोधकर्ताओं से लेकर रेणु साहित्य के रसिकों, सभी के लिए कहीं अधिक मूल्यवान साबित होगी। यह इसलिए भी जरूरी था क्योंकि रेणु सम्बन्धी समालोचना प्रायः ‘मैला आँचल’ पर सिमट जाती रही है। प्रस्तुत पुस्तक में जहाँ रेणु की कहानियों की पृष्ठभूमि तलाशते हुए उनके रचे जाने की प्रक्रिया की पड़ताल की गयी है, वहीं उनकी कहानियों की भाषा शिल्प शैली आति हरेक पक्ष
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