युवा कहानीकार प्रदीप जिलवाने का कहानी संग्रह ‘प्रार्थना-समय’ उत्तरआधुनिक समय की जटिलताओं के बीच ताजा हवा के झोंके की तरह है। निहायत मामूली, परिचित, दैनंदिन उलझनें और सवाल लेकिन कहन की गढ़न अपनी सादगी में मानवीय संघर्षों और द्वंद्वों की पर्तें खोलते हुए आगे बढ़ जाती है। स्वप्न-यथार्थ, अतीत-वर्तमान, स्मृति-सत्य और देश-काल एक-दूसरे में घुसपैठ करते हैं। नितांत सरल कथावाचन के बीच से सरसराता हुआ यथार्थ अपने वर्तमान में स्लेट पोंछकर अपनी टेढ़ी-मेढ़ी लकीरों में रूप लेने लगता है, एकदम सहज भाव से। ‘तो वह एक रंगीन खिड़की थी जिससे हमें प्यार हो गया था। उस रंगीन खिड़की ने भी धीरे-धीरे भाँप लिया कि हम तीनों ही उसे चाहने लगे थे।’ आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक संस्थानों और उनके प्रतिनिधि मठाधीशों के चंगुल में फँसे स्त्री-पुरुष के दैनंदिन संघर्ष और दर्द लेखकीय दृष्टि के घेरे में बराबर मौजूद रहते हैं। वर्तमान यथार्थ की बहुस्तरीय जटिलताओं से मुठभेड़ करती ये कहानियाँ एक खाली स्पेस को सार्थकता से भरती हैं जिसमें सामान्य कथावाचन को अद्भुत प्रयोगशीलता से आज के समय को धारण करने योग्य बनाया गया है।
About the Author:
जन्म : 14 जून 1978, खरगोन (म.प्र.) में। देवी अहिल्या विश्वविद्यालय से एम.ए. हिंदी साहित्य (विश्वविद्यालय की प्रावीण्य सूची में स्थान), अनुवाद में स्नातकोत्तर डिप्लोमा, पीजीडीसीए। फिलहाल म.प्र. ग्रामीण सड़क विकास प्राधिकरण में कार्यरत। एक कविता संग्रह ‘जहाँ भी हो जरा-सी संभावना’ एवं इसी कविता संग्रह की पांडुलिपि पर भारतीय ज्ञानपीठ का नवलेखन पुरस्कार 2011 एवं साथ ही म.प्र. हिंदी साहित्य सम्मेलन का प्रतिष्ठित ‘वागीश्वरी’ सम्मान प्राप्त। पहला उपन्यास ‘आठवाँ रंग/पहाड़-गाथा’, पहला कहानी संग्रह ‘प्रार्थना समय’। इसके अतिरिक्त आधा दर्जन से अधिक अन्य महत्त्वपूर्ण रचना संकलनों में रचनाएँ शामिल। गद्य एवं पद्य दोनों में समान लेखन। हिंदी साहित्य की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में कहानियाँ एवं कविताएँ प्रकाशित, पुरस्कृत एवं चर्चित। रचनाओं का भारतीय भाषाओं यथा मराठी, तेलुगु में अनुवाद प्रकाशित। स्थानीय और लोकप्रिय पत्रों में सांस्कृतिक एवं समसामयिक विषयों पर आलेख प्रकाशित । ब्लॉग लेखन में भी सक्रिय।
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