Hindi Bhasha Aur Sansar – Udayan Vajpeyi (Hardcover)

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Hindi Bhasha Aur Sansar – Udayan Vajpeyi

हिंदी भाषा और संसार – उदयन वाजपेयी

अशोक वाजपेयी ऐसे ही लेखक हैं जिन्होंने स्वयम को हिंदी भाषा की संस्कृति से एकाकार किया हुआ है। इस पुस्तक में प्रकाशित उनसे लंबा संवाद हिंदी भाषा और और संस्कृति पर किया गया है। इस पुस्तक के दूसरे भाग में अशोक वाजपेयी के कृतित्व पर कुछ निबन्ध हैं, उनमें से एक संस्मरण है।

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    यह एक अनूठी पुस्तक है : इसमें गम्भीर तथ्यपरक तर्कसम्मत शोध और आलोचना, सर्जनात्मक कल्पनाशीलता से किये गये सौ अनुवाद और कुछ छाया-कविताएँ एकत्र हैं। इस सबको विन्यस्त करने में सुभाष राय ने परिश्रम और अध्यवसाय, जतन और समझ, संवेदना और सम्भावना से एक महान् कवि को हिन्दी में अवतरित किया है। वह ज्योतिवसना थी, इसीलिए उसे ‘दिगम्बर’ होने का अधिकार था : अपने तेजस्वी वैभव के साथ ऐसी अक्क महादेवी का हिन्दी में हम इस पुस्तक के माध्यम से ऊर्जस्वित अवतरण का स्वागत करते हैं। रजा पुस्तक माला इस पुस्तक के प्रकाशन पर प्रसन्न है।

    -अशोक वाजपेयी
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    मैंने अब तक जिन दुर्लभ मनीषियों से ‘इण्टरव्यू’ लिये हैं उनमें से एक हैं, कवि-आलोचक अशोक वाजपेयी । अशोकजी के अनगिनत चाहने वालों में मैं भी उनका एक मुग्ध प्रशंसक हूँ। पुस्तक में चुने हुए ग्यारह संवाद सम्मिलित हैं। इन संवादों के झरोखे से अशोकजी के अन्तर्मन को समझने की कोशिश हुई है।

    संस्कृतिकर्मी अशोक वाजपेयी के बहुआयामी व्यक्तित्व को जानने की चाह के चलते कथाकार कृष्णा सोबती के साथ-साथ ललित सुरजन, रमेश नैयर और विनोद शाही से छबि-संग्रह, साहित्यिक पत्रकारिता, वक्तृत्व कला पर आमने-सामने बैठकर ‘साक्षात्कार’ लेने का सुयोग मुझे मिला। विश्व कविता समारोह, कई कला प्रदर्शनियों और शानदार नाटकों के मंचन सहित भारत भवन में आयोजित होने वाली अनेकानेक विचार गोष्ठियाँ अप्रतिम रही हैं।
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    अपने सामाजिक सरोकार और इतिहास-बोध के सहकार से ही कोई रचनाकार अपनी रचना-दृष्टि निर्धारित करता है। इतिहास-बोध और सामाजिक सरोकार से निरपेक्ष रचनाकारों की रचनाएँ हर हाल में चूका हुआ उद्यम होगा। ऐसी रचनाएँ शाश्वत तो क्या, तात्कालिक भी नहीं बन सकतीं। समकालीन यथार्थ का भाव-बोध वहन किये बिना किसी रचना के शाश्वत होने की कल्पना निरर्थक है।

    ‘हिन्दी कविता के सरोकार’ शीर्षक इस पुस्तक में यह चेष्टा सदैव जागृत रही है कि भावकों को हिन्दी कविता के समुज्ज्वल अतीत में झाँकने की दृष्टि मिले। तथ्यतः बीते इतिहास, बदलते भूगोल, प्रगतिकामी जनचेतना, अप्रत्याशित राजनीतिक वातावरण और लैंगिक संवेदनाओं की विवेकशील दृष्टि अपनाये बिना भारतीय साहित्य को समझना असम्भव है। इसलिए इन सभी बिन्दुओं पर सावधान आलोचना-दृष्टि रखते हुए, इस पुस्तक में कविता के सामाजिक सरोकार पर गम्भीरता से विचार किया गया है।
    – पुरश्चर्या से
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