Hindi Kavita Ke Sarokaar By Deo Shankar Navin
Hindi Kavita Ke Sarokaar By Devshankar Naveen
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अपने सामाजिक सरोकार और इतिहास-बोध के सहकार से ही कोई रचनाकार अपनी रचना-दृष्टि निर्धारित करता है। इतिहास-बोध और सामाजिक सरोकार से निरपेक्ष रचनाकारों की रचनाएँ हर हाल में चूका हुआ उद्यम होगा। ऐसी रचनाएँ शाश्वत तो क्या, तात्कालिक भी नहीं बन सकतीं। समकालीन यथार्थ का भाव-बोध वहन किये बिना किसी रचना के शाश्वत होने की कल्पना निरर्थक है।
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Digambar Vidrohini Akk Mahadevi By Subhash Rai
यह एक अनूठी पुस्तक है : इसमें गम्भीर तथ्यपरक तर्कसम्मत शोध और आलोचना, सर्जनात्मक कल्पनाशीलता से किये गये सौ अनुवाद और कुछ छाया-कविताएँ एकत्र हैं। इस सबको विन्यस्त करने में सुभाष राय ने परिश्रम और अध्यवसाय, जतन और समझ, संवेदना और सम्भावना से एक महान् कवि को हिन्दी में अवतरित किया है। वह ज्योतिवसना थी, इसीलिए उसे ‘दिगम्बर’ होने का अधिकार था : अपने तेजस्वी वैभव के साथ ऐसी अक्क महादेवी का हिन्दी में हम इस पुस्तक के माध्यम से ऊर्जस्वित अवतरण का स्वागत करते हैं। रजा पुस्तक माला इस पुस्तक के प्रकाशन पर प्रसन्न है।
-अशोक वाजपेयीBuy This Book Instantly thru RazorPay (15% + 5% extra discount)₹449.00 -
Asahmatiyon Ke Vaibhav Ke Kavi Shriprakash Shukla
असहमतियों के वैभव के कवी श्रीप्रकाश शुक्ल
1990 के बाद जिन कवियों ने हिन्दी कविता के आँगन में दस्तक दी, उनमें आज श्रीप्रकाश शुक्ल अग्रगण्य हैं। उनकी लगभग तीस वर्षीय काव्य-यात्रा का मूल्यांकन है यह पुस्तक ।
श्रीप्रकाश शुक्ल का काव्य-संसार मूलतः उनका आस-पड़ोस है। आस-पड़ोस का अर्थ सहजीवन से है। सहजीवन में प्रकृति और उसके उपदान हैं; सामाजिक हैं, सामाजिक की सामूहिक चेतना है; उत्सव है, ध्वंस है-विसंगतियाँ, अपक्षरण, क्रूरताएँ हैं। ये सब मिलकर जिस काव्यात्मक व्यायोम की रचना करते हैं और उसके लिए काव्य की जिस संवेदनात्मक संरचना का विस्तार करते हैं- उसके लगभग सभी आयामों को इस पुस्तक में दर्ज करने की कोशिश की गयी है। इसमें वरिष्ठ से लेकर नव्यतम पीढ़ी के रचनाकारों ने जो योगदान दिया है, वह सम्पादक द्वय के उद्यम के साथ ही कवि की व्यापक स्वीकृति का परिचायक है।
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Kavita Kedarnath Singh (Criticism)
Edited by A. Arvindakshan
केदारनाथ सिंह की कविताएँ माँग करती हैं कि उनपर अनेक तरह से विचार किया जाए। उनकी कविता के भी कई पते हैं जिनमें मेरी समझ से स्थायी पता चकिया ही है। लेकिन अन्त में होता यह है कि आप सिर्फ़ कवि का नाम लिख दें और यही उसका स्थायी पता होगा। जब किसी कवि के साथ ऐसा हो जाए तब वह कवि समूची मनुष्यता का कवि हो जाता है। केदार जी के बारे में भी शायद यही हो कि कल हम कहें, केदारनाथ सिंह – कवि । भोजपुरी, हिन्दी, बनारस, चकिया, दिल्ली सब छूट जाएँ।
येवतुशेंको ने कथाकार शूक्शिन के लिए कहा है कि- “उसकी एक हथेली पर गाँव की कील ठुकी थी और दूसरे पर शहर की।” केदारनाथ सिंह के लिए भी शायद यह बात सही हो।– अरुण कमल (इसी पुस्तक से)Use Instant Buy Button and pay securely at RazorPay Gateway
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Hindi Kahani : Parampara Aur Samkal By Ajay Verma
आज के दौर का यथार्थ जटिल और बहुरंगी है। जीवन के परिप्रेक्ष्य बहुत व्यापक हो गये हैं और उसी हिसाब से इस दौर में सक्रिय लेखकों की जीवनदृष्टि, रचना की थीम, अनुभव और संवेदना की दिशाओं, शिल्प, भाषा सब में पर्याप्त भिन्नता है। ठोस यथार्थ दीखने में आभासी मालूम पड़ता है और इसके प्रति लेखकों के दृष्टिकोण भी अलग-अलग हैं। वर्तमान समय समाज, संस्कृति, राजनीति और मानवीय सम्बन्ध-चेतना सबकी संरचना को विखण्डित कर रहा है। जाहिर है कि ऐसे समय में कोई ऐसी धारणा जिस पर आम राय बनायी जा सके, सम्भव नहीं मालूम पड़ती। इसीलिए इस काल की कहानियों के मिजाज और रूप-रंग को किसी एक संज्ञा में समेट पाना मुश्किल है क्योंकि नाम प्रस्तुत करने के लिए पहले एक ठोस अवधारणा बनाने की जरूरत पड़ती है और यह समय अवधारणा को ही संकटग्रस्त बनाता है।
– भूमिका सेBuy This Book with 1 Click Via RazorPay (15% + 5% discount Included)₹275.00
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