Description
Durgawati : Garha Ki Parakrami Rani By Rajgopal Singh Verma
रानी दुर्गावती के जीवन-चक्र की कुछ घटनाओं के विषय में अभी भी इतिहास मौन है। उदाहरणार्थ उनके पति दलपत शाह की अचानक हुई मृत्यु का कारण क्या था ? रानी ने अपनी सेना के आधुनिकीकरण को प्राथमिकता क्यों नहीं दी? क्यों नरंई के युद्ध में उसके सैन्य अधिकारियों ने उसकी रणनीति के अनुसार शत्रु पक्ष पर पूर्व में ही हमला करने की बजाय उस पक्ष को सचेत और सशक्त होने का अवसर दिया? इसके अतिरिक्त राजा दलपत शाह के छोटे भाई राजकुमार चन्द्र शाह की रानी दुर्गावती के समय में क्या स्थिति थी। क्या वह अक्षम और अकर्मण्य था, विश्वासघाती था, अथवा निष्क्रिय था !
इतिहास में अधिक विवरण नहीं मिलता, पर परिस्थितियाँ इस बात की साक्षी हैं कि वह पलायन कर चांदा चला गया था, मुगलों से युद्ध में रानी की ओर से नहीं था, बाद में मुगल बादशाह अकबर की कृपा से गढ़ा कटंगा के एक भाग का शासक बना। इसलिए यह स्पष्ट है कि वह रानी दुर्गावती के साथ तो नहीं जुड़ा था। पुस्तक में इसी तथ्य को ध्यान में रखकर चित्रण किया गया है।
रानी दुर्गावती के गौरवशाली अतीत की यह स्मृतियाँ हमें जैसे चाबुक लगाकर सचेत करती हों… यही वह समाज था, जिसमें दुर्गावती पल्लवित हुई थी, आज के समाज से थोड़ा बेहतर रहा होगा। मर्यादा, सम्बन्ध, आचार-विचार और भावनात्मक रूप से वह अवश्य समृद्ध था, यह हम समझ सकते हैं। तभी उस युग ने एक ऐसी स्त्री को रच दिया, जिसने स्वयं उस कालखण्ड को एक अलग पहचान दिलायी। यह सच है कि उस अन्तिम सत्य ने दुर्गा को भी कोई छूट नहीं दी, उसकी साँसों का लेखा-जोखा बस उतना ही था, जब उसने स्वयं के प्रति निर्मम होने की दृढ़ता दिखाई। कितने प्राणी होंगे जिन्हें इस तरह के बलिदान को चुनने और उसे निर्वहन करने का अवसर मिला होगा। हो सकता है अवसर मिला हो, संयोग भी ऐसे हों, पर कौन निभा पाया ? यक्ष प्रश्न यही है। मौत उन्हें इस नश्वर संसार से नहीं ले गयी, उन्होंने स्वयं मौत को चुना।
Kavita Anand –
‘दुर्गावती’ पुस्तक रानी दुर्गावती के शौर्य और गढ़ा-कटंगा राज्य की स्थिरता को ऐतिहासिक तथ्यों के साथ जीवंत रूप में प्रस्तुत करती है। यह एक प्रेरणादायक और तथ्यपूर्ण जीवनीपरक उपन्यास है।