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Durgawati : Garha Ki Parakrami Rani

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उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के बेचन शर्मा ‘उग्र’ पुरस्कार से सम्मानित कृति


दुर्गावती

गढ़ा की पराक्रमी रानी – राजगोपाल सिंह वर्मा

न केवल गोंड राजवंश के इतिहास में बल्कि समकालीन इतिहास में जितनी कीर्ति दुर्गावती ने अर्जित की उतनी शायद ही किसी शासक ने की हो। संग्राम शाह और फिर दुर्गावती के शासनकाल में ही गोंड सत्ता की जड़ें इतनी गहरी हो गयी थीं कि आगामी दो सौ साल की पतनावस्था में भी राज्य का अस्तित्व बना रहा। यह गढ़ा-कटंगा राज्य की जीवनीशक्ति का प्रमाण है। अकबर की सेना के आक्रमण और दुर्गावती के शौर्य की कहानी जनमानस में इस तरह अंकित हुई कि उसकी याद शताब्दियों के बाद तक अक्षुण्ण है। लोक गीतों में सजकर आज भी उसकी स्मृति सुदूर अंचलों के लोगों के मन में जीवित है।
इस पुस्तक को जीवनीपरक उपन्यास का रूप अवश्य दिया गया है, पर इतिहास के उन्हीं तथ्यों, स्थलों और तिथियों को मान्यता दी गयी है, जो शोधकर्ताओं ने हमारे सामने रखे हैं। यह पुस्तक उपन्यास रूप में है ताकि पाठकों को उस कालखण्ड की राजनीति, युद्ध और रानी के कृतित्व को समझने में सुगमता रहे। इसके बावजूद यह ध्यान रखा गया है कि घटनाओं, ऐतिहासिक तथ्यों और व्यक्तियों की बाबत प्रामाणिकता बनी रहे। आवश्यकतानुसार किये गये इस औपन्यासिक रूपान्तरण में कतिपय स्थानों पर काल्पनिकता का पुट दिया गया है, पर प्रयास किया गया है कि उससे इस वीरांगना तथा तत्कालीन परिस्थितियों की ऐतिहासिकता अक्षुण्ण बनी रहे। साथ ही एक प्रयोग और भी किया गया है। रानी दुर्गावती के युद्ध मैदान में आत्मघात के बाद उपन्यास अवश्य खत्म हुआ है, लेकिन गढ़ा साम्राज्य की इस नायिका द्वारा पल्लवित यह साम्राज्य बाद के सैकड़ों वर्षों तक अक्षुण्ण रहा, कभी थोड़ा निर्बल हुआ, तो फिर उभरकर शक्तिशाली बना। इस परिवर्तन और विवरण के ऐतिहासिक पक्ष को पुस्तक के दूसरे भाग में सामने लाया गया है। इसके लिए प्रोफेसर सुरेश मिश्र के शोध को आधार माना गया है।

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Description

Durgawati : Garha Ki Parakrami Rani By Rajgopal Singh Verma

रानी दुर्गावती के जीवन-चक्र की कुछ घटनाओं के विषय में अभी भी इतिहास मौन है। उदाहरणार्थ उनके पति दलपत शाह की अचानक हुई मृत्यु का कारण क्या था ? रानी ने अपनी सेना के आधुनिकीकरण को प्राथमिकता क्यों नहीं दी? क्यों नरंई के युद्ध में उसके सैन्य अधिकारियों ने उसकी रणनीति के अनुसार शत्रु पक्ष पर पूर्व में ही हमला करने की बजाय उस पक्ष को सचेत और सशक्त होने का अवसर दिया? इसके अतिरिक्त राजा दलपत शाह के छोटे भाई राजकुमार चन्द्र शाह की रानी दुर्गावती के समय में क्या स्थिति थी। क्या वह अक्षम और अकर्मण्य था, विश्वासघाती था, अथवा निष्क्रिय था !

इतिहास में अधिक विवरण नहीं मिलता, पर परिस्थितियाँ इस बात की साक्षी हैं कि वह पलायन कर चांदा चला गया था, मुगलों से युद्ध में रानी की ओर से नहीं था, बाद में मुगल बादशाह अकबर की कृपा से गढ़ा कटंगा के एक भाग का शासक बना। इसलिए यह स्पष्ट है कि वह रानी दुर्गावती के साथ तो नहीं जुड़ा था। पुस्तक में इसी तथ्य को ध्यान में रखकर चित्रण किया गया है।

रानी दुर्गावती के गौरवशाली अतीत की यह स्मृतियाँ हमें जैसे चाबुक लगाकर सचेत करती हों… यही वह समाज था, जिसमें दुर्गावती पल्लवित हुई थी, आज के समाज से थोड़ा बेहतर रहा होगा। मर्यादा, सम्बन्ध, आचार-विचार और भावनात्मक रूप से वह अवश्य समृद्ध था, यह हम समझ सकते हैं। तभी उस युग ने एक ऐसी स्त्री को रच दिया, जिसने स्वयं उस कालखण्ड को एक अलग पहचान दिलायी। यह सच है कि उस अन्तिम सत्य ने दुर्गा को भी कोई छूट नहीं दी, उसकी साँसों का लेखा-जोखा बस उतना ही था, जब उसने स्वयं के प्रति निर्मम होने की दृढ़ता दिखाई। कितने प्राणी होंगे जिन्हें इस तरह के बलिदान को चुनने और उसे निर्वहन करने का अवसर मिला होगा। हो सकता है अवसर मिला हो, संयोग भी ऐसे हों, पर कौन निभा पाया ? यक्ष प्रश्न यही है। मौत उन्हें इस नश्वर संसार से नहीं ले गयी, उन्होंने स्वयं मौत को चुना।

Additional information

Author

Rajgopal Singh Verma

Binding

Paperback

Language

Hindi

ISBN

978-93-6201-739-0

Pages

304

Publisher

Setu Prakashan Samuh

Publication date

18-09-2024

1 review for Durgawati : Garha Ki Parakrami Rani

  1. Kavita Anand

    ‘दुर्गावती’ पुस्तक रानी दुर्गावती के शौर्य और गढ़ा-कटंगा राज्य की स्थिरता को ऐतिहासिक तथ्यों के साथ जीवंत रूप में प्रस्तुत करती है। यह एक प्रेरणादायक और तथ्यपूर्ण जीवनीपरक उपन्यास है।

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