Description
Scindia Aur 1857 By Dr. Rakesh Pathak
सिंधिया और १८५७ – डॉक्टर राकेश पाठक
झाँसी के नेवालकर और ग्वालियर के सिंधिया, दोनों ही शासक पेशवा द्वारा नियुक्त सूबेदार थे। डॉ. राकेश पाठक ने दोनों राज्यों के रिश्तों की गहरी ऐतिहासिक पड़ताल करते हुए उन सूत्रों की तलाश की है जिनकी वजह से जयाजीराव सिंधिया और रानी लक्ष्मीबाई का कोई साझा मोर्चा बन पाना सम्भव नहीं था। उस समय के गजेटियर तथा अन्य दस्तावेजों की सहायता से न सिर्फ़ उन्होंने उस दौर के देसी राजाओं की राजनीति का खुलासा किया है अपितु अँग्रेज़ों की उस कूटनीति का भी पर्दाफाश किया है।सिंधिया परिवार और नेवालकर वंश की भीतरी राजनीति की विवेचना से यह भी तथ्य सामने आता है कि कम से कम उस दौर में एक राष्ट्र के रूप में भारत की संकल्पना सिरे से अनुपस्थित थी। अपने विशेषाधिकारों और अपनी सत्ताओं को बचाना ज्यादातर रियासतों का पहला और अन्तिम उद्देश्य था और 1857 में उनमें से ज्यादातर के हस्तक्षेप इसी स्वार्थपूर्ण उद्देश्य से संचालित हुए।
धनेश पाठक –
बहुत ही शानदार व उम्दा रचना और लेख के इंतेजार में अब पढ़ने को मिलेगा… बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं आदरणीय डॉ राकेश पाठक सर जी को सादर प्रणाम 💐🙏
संदीप शर्मा –
सैकडो हजारो पाठक इस पुस्तक की प्रतीक्षा कर रहे है!
Vikas Singh –
बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें डॉक्टर साहब 💐🙏..बेसब्री से इंतजार..
Dr Brajesh Kumar Sharma –
बहुत ही अच्छी
Pradeep bajaj jain –
अपने शहर के इतिहास को समझने में मील का पत्थर साबित होगी डॉक्टर राकेश पाठक की पुस्तक
अग्रिम शुभकामनाएं
Rehmat –
बेसब्री से इंतेजार है। उम्मीद है रोचकता के साथ नए तथ्य मिलेंगे।
prashant G –
आज पुस्तक प्राप्त हो गयी है, अब इसको पढ़ने के लिए समय निकालना ही पड़ेगा