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  • Shuddhipatra – Neelakshi Singh

    Shuddhipatra – Neelakshi Singh

    शुद्धिपत्र नीलाक्षी सिंह का ऐसा उपन्यास है जो वर्तमान समय में मनुष्य की भावनाओं-संवेदनाओं की खुले बाजार में मार्केटिंग करने वाली प्रवृत्तियों पर प्रश्न खड़े करती है। जो विडम्बना और संत्रास मानव जीवन में उपस्थित हो रहा है-वही उपन्यास की आयतन है।


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  • Jinki Mutthiyon Mein Surakh Tha – Neelakshi Singh

    जिनकी मुट्ठियों में सुराख था

    जिनकी मुट्ठियों में सुराख था नीलाक्षी सिंह द्वारा लिखित कहानी-संग्रह है। नीलाक्षी सिंह की कहानियाँ अपने कथ्य और शिल्प में असाधारण हैं। इसकी बड़ी वजहों में एक यह है कि जिन विवरणों के सहारे ये कथ्य और शिल्प का निर्माण करती हैं, उसकी द्विध्रुवीयता एक पाठक के रूप में हमें आमंत्रित करती है।


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  • Hukum Desh Ka Ikka Khota – Neelakshi Singh

    हुकुम देश का इक्का खोटा

    हुकुम देश का इक्का खोटा चर्चित कथाकार नीलाक्षी सिंह की नवीनतम कृति है। यह कृति जीवन पर मँडराते मृत्यु और अनिश्चितता के संशय वाले सफर के बरक्स स्मृति, कल्पना और आत्मजिरह के सूतों से एक ऐसा विपर्यय रचती है जिससे होकर गुजरना ही नहीं, वहाँ बेमतलब रुक कर कुछ पल ठहर जाना भी पढ़ने वाले को खुशनुमा लगने लगता है।

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  • Khela by Neelakshi Singh – Hardcover

    Khela by Neelakshi Singh
    `खेला` विश्व बाज़ार की उठापटक और इनसान की जद्दोजहद का जीता-जागता तमाशा पेश करता है। एक नितांत अलग दुनिया की तस्वीर जिसमें कच्चे तेल के करतब, मज़हब और मारकाट के खेले चलते जा रहे हैं। 

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  • Khela by Neelakshi Singh Paperback

    Khela by Neelakshi Singh


    “कच्चा तेल कभी अकेले नहीं आता। किसी के भी पास अकेले नहीं आता। किसी के पास दौलत लेकर आता है तो किसी के पास सत्ता लेकर। किसी के पास आतंक तो किसी के पास भय लेकर आता है वह।”

    नीलाक्षी सिंह के उपन्यास ‘खेला’ का यह अंश उनकी इस कृति को समझने का एक सूत्र देता है और उसके पाठ से गुजरते हुए हम पाते हैं कि कच्चा तेल अंततः दुनिया की शक्ति संरचना और लिप्सा के रूपक में बदल गया है। इस बिंदु पर यह उपन्यास दिखलाता है कि सत्ताएँ मूलतः अमानवीय, क्रूर तथा बर्बर होती हैं; वे सदैव हिंसा के मूर्त या अमूर्त स्वरूप को अपना हथियार बनाती हैं। सत्ता के ऐसे जाल के बीचोबीच और बगैर किसी शोर-शराबे के उसके खिलाफ भी खड़ी है एक स्त्री-वरा कुलकर्णी ।
     
    देश-विदेश के छोरों तक फैले इस आख्यान को नफरत और प्यार के विपर्ययों से रचा गया है। इसीलिए यहाँ भावनात्मक रूप से टूटे-बिखरे लोग हैं और उसके बावजूद जीवन को स्वीकार करके उठ खड़े होने वाले चरित्र भी हैं। युद्ध, आर्थिक होड़, आतंकवाद, धर्म के अंतर्संबंधों की सचेत पड़ताल है। ‘खेला’ तो इनका शिकार हुए मामूली, बेकसूर, निहत्थे मनुष्यों के दुख, बेबसी की कथा भी है यह उपन्यास ।
    ‘खेला’ को आख्यान की सिद्ध वर्णन कला और विरल सृजनात्मक भाषा के लिए भी पढ़ा जाना चाहिए। उक्त दोनों ही यहाँ जीवन, विचार, कला के सम्मिलित धागों से निर्मित हुए हैं और इनकी एक बेहतर पुनर्रचना तैयार कर सके हैं।
    संक्षेप में ‘खेला’ के बारे में कह सकते हैं: एक महत्त्वपूर्ण उपन्यास जिसमें अभिव्यक्त खुशियाँ, त्रासदियाँ असह्य, बेधक और बेचैन करने वाली हैं फिर भी पाठक उनकी गिरफ्त में बने रहना चाहेगा।
     
    – अखिलेश

    दफ्तर 16वें माले पर था और उसका कमरा त्रिभुज के जैसा था। कमरे की दो दीवारें शीशे की थीं और अगला हिस्सा गोल था। शीशे पर लगे हलके हरे रंग के परदे उस कमरे को कीवी केक के एक टुकड़े की झलक देते थे।
     
    यह शेयर बाजार के ट्रेंड्स का आकलन करने वाली कंपनी थी। वरा कुलकर्णी का काम खरीदारों के जोखिम का आकलन करना था। मोटे तौर से उसे भूतकाल में किसी कंपनी के शेयर मूल्यों में आए अंतर का अध्ययन करना था और भविष्य में उसके शेयरों के संभावित व्यवहार का रेखांकन करते जाना था। यह भय और लालच से नियंत्रित होने वाला बाजार था और उसे इन दोनों के बीच नियंत्रण साधे रहना था। इस तीन-दीवारी के भीतर वह मशीन थी और बाहर… और भी ज्यादा मशीन ।  – इसी पुस्तक से 

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