Description
खेला विश्व बाज़ार की उठापटक और इनसान की जद्दोजहद का जीता-जागता तमाशा पेश करता है। एक नितांत अलग दुनिया की तस्वीर जिसमें कच्चे तेल के करतब, मज़हब और मारकाट के खेले चलते जा रहे हैं। विश्व बाज़ार की भाग-दौड़, धर्म की धमक भरी अँधेरगर्दी और हिंसा की तथाकथित सहिष्णुता, पाठक को झटके से होश में लाती है।
About the Author:
जन्म : 17 मार्च 1978, हाजीपुर, बिहार प्रकाशन : परिंदे का इंतज़ार सा कुछ, जिनकी मुट्ठियों में सुराख़ था, जिसे जहाँ नहीं होना था, इब्तिदा के आगे ख़ाली ही (कहानी संग्रह); शुद्धिपत्र, खेला (उपन्यास) सम्मान : रमाकांत स्मृति सम्मान, कथा सम्मान, साहित्य अकादेमी स्वर्ण जयंती युवा पुरस्कार, प्रो. ओमप्रकाश मालवीय एवं भारती देवी स्मृति सम्मान और कलिंग बुक ऑफ़ बुक ऑफ़ द इयर 2020-21
Reviews
There are no reviews yet.