Har Jagah Se Bhagaya Gaya Hoon By Hare Prakash Upadhyay

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हर जगह से भगाया गया हूँ – हरे प्रकाश उपाध्याय

कविता के भीतर मैं की स्थिति जितनी विशिष्ट और अर्थगर्भी है, वह साहित्य की अन्य विधाओं में कम ही देखने को मिलती है। साहित्य मात्र में ‘मैं’ रचनाकार के अहं या स्व का तो वाचक है ही, साथ ही एक सर्वनाम के रूप में रचनाकार से पाठक तक स्थानान्तरित हो जाने की उसकी क्षमता उसे जनसुलभ बनाती है। कवि हरे प्रकाश उपाध्याय की इन कविताओं में ‘मैं’ का एक और रंग दीखता है। दुखों की सान्द्रता सिर्फ काव्योक्ति नहीं बनती। वह दूसरों से जुड़ने का साधन (और कभी-कभी साध्य भी) बनती है। इसीलिए ‘कबहूँ दरस दिये नहीं मुझे सुदिन’ भारत के बहुत सारे सामाजिकों की हकीकत बन जाती है। इसकी रोशनी में सम्भ्रान्तों का भी दुख दिखाई देता है-‘दुख तो महलों में रहने वालों को भी है’। परन्तु इनका दुख किसी तरह जीवन का अस्तित्व बचाये रखने वालों के दुख और संघर्ष से पृथक् है। यहाँ कवि ने व्यंग्य को जिस काव्यात्मक टूल के रूप में रखा है, उसी ने इन कविताओं को जनपक्षी बनाया है। जहाँ ‘मैं’ उपस्थित नहीं है, वहाँ भी उसकी एक अन्तर्वर्ती धारा छाया के रूप में विद्यमान है।
कविता का विधान और यह ‘मैं’ कुछ इस तरह समंजित होते हैं, इस तरह एक-दूसरे में आवाजाही करते हैं कि बहुधा शास्त्रीय पद्धतियों से उन्हें अलगा पाना सम्भव भी नहीं रह पाता। वे कहते हैं- ‘मेरी कविता में लगे हुए हैं इतने पैबन्द / न कोई शास्त्र न छन्द / मेरी कविता वही दाल भात में मूसलचन्द/ मैं भी तो कवि सा नहीं दीखता / वैसा ही दीखता हूँ जैसा हूँ लिखता’ ।
हरे प्रकाश उपाध्याय की इन कविताओं में छन्द तो नहीं है, परन्तु लयात्मक सन्दर्भ विद्यमान है। यह लय दो तरीके से इन कविताओं में प्रोद्भासित होती है। पहला स्थितियों की आपसी टकराहट से, दूसरा तुकान्तता द्वारा। इस तुकान्तता से जिस रिद्म का निर्माण होता है, वह पाठकों तक कविता को सहज सम्प्रेष्य बनाती है।
हरे प्रकाश उपाध्याय उस समानान्तर दुनिया के कवि हैं या उस समानान्तर दुनिया का प्रतिनिधित्व करते हैं जहाँ अभाव है, दुख है, दमन है। परन्तु उस दुख, अभाव, दमन के प्रति न उनका एप्रोच और न उनकी भाषा-आक्रामक है, न ही किसी प्रकार के दैन्य का शिकार हैं। वे व्यंग्य, वाक्पटुता, वक्रोक्ति के सहारे अपने सन्दर्भ रचते हैं और उन सन्दर्भों में कविता बनती चली जाती है।

– अभिताभ राय


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Har Jagah Se Bhagaya Gaya Hoon (Poems) By Hare Prakash Upadhyay


हरे प्रकाश उपाध्याय

बिहार के आरा जनपद के गाँव बैसाडीह में 5 फरवरी 1981 को जन्म। प्रारम्भिक शिक्षा जनपद के ही गाँवों में। बाद में वाया आरा-पटना इण्टर व बीए (समाजशास्त्र प्रतिष्ठा)। फिर दिल्ली में कुछ समय फ्रीलांसिंग, छोटी- मोटी नौकरी। कई पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन सहयोग। पत्रकारिता के कारण फिर लखनऊ पहुँचे। कुछ समय नौकरी के बाद, फिर 2014 से फ्रीलांसिंग व ‘मन्तव्य’ (साहित्यिक पत्रिका) का सम्पादन-प्रकाशन। सन् 2017 के अन्त में एक प्रकाशन संस्था की शुरुआत।
पुस्तकें : 2009 में पहला कविता संग्रह ‘खिलाड़ी दोस्त तथा अन्य कविताएँ’, 2014 में पहला उपन्यास ‘बखेड़ापुर’ तथा 2021 में कविता- संग्रह’ नया रास्ता’ प्रकाशित।
सम्मान: कविता के लिए अंकुर मिश्र स्मृति पुरस्कार (दिल्ली), हेमन्त स्मृति सम्मान (मुम्बई), कविता-कथा के लिए युवा शिखर सम्मान (शिमला), साहित्यिक पत्रकारिता के लिए स्पन्दन सम्मान (भोपाल), उपन्यास के लिए ज्ञानपीठ युवा लेखन पुरस्कार (दिल्ली)।

SKU: Har Jagah Se Bhagaya Gaya Hoon (Poems) PB
Categories:,
Author

Hare Prakash Upadhyay

Binding

Paperback

Language

Hindi

Pages

120

Publication date

23-01-2025

ISBN

978-93-6201-593-8

Publisher

Setu Prakashan Samuh

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