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Kavita Kedarnath Singh (Criticism)

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Edited by A. Arvindakshan

केदारनाथ सिंह की कविताएँ माँग करती हैं कि उनपर अनेक तरह से विचार किया जाए। उनकी कविता के भी कई पते हैं जिनमें मेरी समझ से स्थायी पता चकिया ही है। लेकिन अन्त में होता यह है कि आप सिर्फ़ कवि का नाम लिख दें और यही उसका स्थायी पता होगा। जब किसी कवि के साथ ऐसा हो जाए तब वह कवि समूची मनुष्यता का कवि हो जाता है। केदार जी के बारे में भी शायद यही हो कि कल हम कहें, केदारनाथ सिंह – कवि । भोजपुरी, हिन्दी, बनारस, चकिया, दिल्ली सब छूट जाएँ।

येवतुशेंको ने कथाकार शूक्शिन के लिए कहा है कि- “उसकी एक हथेली पर गाँव की कील ठुकी थी और दूसरे पर शहर की।” केदारनाथ सिंह के लिए भी शायद यह बात सही हो।
– अरुण कमल (इसी पुस्तक से)
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Description

Kavita Kedarnath Singh (Criticism) – Edited by A. Arvindakshan

केदारनाथ सिंह की कविता विश्व कविता का दर्जा पा सकी है। लोक से होकर उनकी कविता की अन्तरयात्रा शुरू होती है जहाँ वे शतशः सहज दीखते हैं; भारतीय परिवेश में उनकी कविता द्रुतगामी प्रतीत हो रही है क्योंकि हमारी बहुसंख्यक विडम्बनाओं को उन्हें सम्बोधित करना था। उनकी कविता की यात्रा यहाँ रुकती नहीं है; आगे जाती है जहाँ वह विश्व मानवता के अनेक प्रश्नों से जूझती नज़र आ रही है।

कविता केन्द्रित, समय केन्द्रित, संवेदना केन्द्रित और सौन्दर्य केन्द्रित कई बातें हैं जो केदारनाथ सिंह की कविता की सघनता को सार्थक दिशा की ओर ले चलती हैं। उनकी कविताएँ अतिशीघ्र कवितात्मक अनुभव का परिचय देती हैं। वास्तविक समय को केदारनाथ सिंह ने अपने कविता-समय में तब्दील किया है और उनके कविता-समय का अन्तर्लोक विस्मयकारी विन्यासों से युक्त है। इस सहज और सरल प्रतीत होने वाले कवि की संवेदनात्मक गहराई अतिगहन है। इस एकान्त प्रेमी, संगीत प्रेमी और कविता प्रेमी कवि की कविताएँ सौन्दर्यानुभूति के नये-नये धरातल सृजित करती रहती हैं। इन कारणों से केदारनाथ सिंह की कविता हिन्दी की विरासत बनकर नये-नये ढंग के पाठ के लिए हमें प्रेरित करती है।

भूमिका से

Additional information

Binding

Paperback

Language

Hindi

ISBN

978-93-80441-96-2

Publication date

15-07-2024

Pages

384

Editor

A. Arvindakshan

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