Nadisht By Manoj Borgaokar
Translated by Dr. Gorakh Thorat
‘नदीष्ट’ एक ऐसा उपन्यास है, जो नदी के परिवेश से जुड़े मानवीय सह- सम्बन्धों की परतें खोलता है। सामाजिक ब्योरों से भरे सामाजिक उपन्यासों की भीड़ में यह उपन्यास व्यक्ति-भाव-सम्बन्धों से एक अलग ढंग से रूबरू कराता है। बहती नदी और मानवीय आविष्कार पद्धति से सम्बन्धित इस उपन्यास के आशयसूत्रों की परतें बहुविध हैं। नदी-वैभव के प्रति गहरी आन्तरिक आस्था, सघन बुनावट, व्यक्ति-कथाओं का अनोखापन, जैविक पर्यावरण की व्याकुल चिन्ता, प्रकृति के प्रति आकर्षण जैसे कई सूत्र इसमें से आविष्कृत हुए हैं। इस उपन्यास के बहाने किन्नर समुदाय की बेचैन दुनिया और उनके प्रति स्वस्थ जीवन-दृष्टि भी प्रकट हुई है। माँ की तरह नदी का भी मानव के प्रति प्यार आदिम है। एक दृष्टि से यह गर्भदह में विश्राम की, नदी की हृदयरूपी तह की एक तलाश है। साथ ही मानवीय तृष्णा के साथ-साथ श्रद्धा और यातनाओं की चित्र-श्रृंखला भी है। उपन्यास की कथाओं को शोकान्तिका का आयाम प्राप्त हुआ है। अँधेरे से घिरे भविष्य और बेचैन दर्द भरे वर्तमान के परिपार्श्व में भाव-विभोर भूतकाल के प्रति अनामिक आकर्षण भी इसमें है।
नदी से समान्तर जुड़े अनेक व्यक्तियों की उपकथाओं से उपन्यास का कलेवर विस्तृत हुआ है। मनुष्य की बुनियादी इच्छाएँ, भावनाएँ, हिंसा, अपराधबोध और सामूहिक पुराकथाओं द्वारा संश्लिष्ट अवचेतन की प्रेरणाएँ, तड़प-बेचैनी आदि के चलते उपन्यास की संवेदनशीलता में वृद्धि हुई है। व्यक्ति-कथाओं का सामूहिक भावाविष्कार, नदी का सजीव परिवेश, किन्नर समुदाय का अद्भुत संसार, मानवीय जिन्दगी के शोकान्त रूप, अभिभूत करने वाले प्रसंग-चित्र, भाषा की अनोखी शैली के कारण मनोज बोरगावकर का नदी-कथन मौलिक साबित होता है।
– डॉ. रणधीर शिन्दे मराठी विभाग, कोल्हापुर
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