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Saanwali Ladki Ki Diary by Amita Neerav

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सुन्दर क्या है और असुन्दर क्या है यह हमेशा से दार्शनिकों को परेशान करने वाला प्रश्न रहा है। लेकिन इसमें कोई सन्देह नहीं कि समाज में प्रचलित सौन्दर्य सम्बन्धी मानक व्यक्ति के चेतन-अवचेतन को और इस तरह उसके मानस व व्यक्तित्व-विकास को गहरे प्रभावित करते हैं। इन मानकों पर खरे न उतरना व्यक्ति को हीनता-बोध और कुण्ठा से भर देता है और उसका समूचा नहीं तो अधिकांश जीवन कमतरी के अहसास में गुजरता है। जहाँ छोटा कद या गंजा सिर पुरुषों के लिए हीनता-बोध का सबसे बड़ा कारण होता है, वहीं साँवला रंग तो स्त्रियों के लिए मानो एक अभिशाप है। अन्यथा सुन्दर एक स्त्री महज साँवले रंग के कारण सुन्दर नहीं समझी जाती, और समाज के इस नजरिये से वह इस हद तक आक्रान्त रहती है कि यही नजरिया धीरे-धीरे स्वयं को परखने की कसौटी बन जाता है। हमारे समाज में त्वचा के रंग को लेकर जो मान्यता हावी है वह नये रिश्ते की पसन्दगी-नापसन्दगी, वैवाहिक विज्ञापनों और सिनेमा, फैशन तथा सौन्दर्य प्रसाधनों के बाजार में और भी प्रकट रूप से अपनी सत्ता चलाती दीखती है।

अमिता नीरव का नया उपन्यास “साँवली लड़की की डायरी” सुन्दरता के एक खूब प्रचलित मानक को प्रश्नांकित करता है। यों तो इस उपन्यास को सत्तर के दशक के उत्तरार्द्ध से लेकर नब्बे की शुरुआत से थोड़ा पहले तक के कालखण्ड में एक मध्यवर्गीय नौकरीपेशा परिवार के जीवन-अक्स की तरह भी पढ़ा जा सकता है जहाँ कोई खास उतार-चढ़ाव नहीं है; लेखिका ने छोटे- छोटे, सादे किस्सों के जरिये मध्यवर्गीय जीवन और संयुक्त परिवार का एक अक्स रचा है। इस आख्यान में व्यथा का कोई गाढ़ा रंग है तो वह है एक लड़की का साँवली होना । साँवली होने के कारण, कमतरी का अहसास हमेशा के लिए उसकी चेतना पर छा जाता है। इस तरह यह उपन्यास व्यक्तित्व विकास के सूत्रों की तलाश करते हुए, या उस तलाश के बहाने, समाज की भी पड़ताल है। यही उद्यम इस उपन्यास को अलग और खास बनाता है।


अपने साँवले रंग के प्रति अतिरिक्त संवेदनशीलता उसे लगातार अकेला कर रही थी। हर उस जगह जाने से बचने लगी थी, जहाँ उसे देखा जा सकता और उसपर गौर किया जा सकता था। अब संसार भर में ऐसी तो कोई जगह थी नहीं, जहाँ उसे देखा नहीं जा सकता तो उसने घर में ही अपनी सुरक्षा ढूँढ़ ली थी।


जाने उसका रंग-बोध गहरा था या उसका स्वभाव ही ऐसा था कि वह लगातार दब्बू होती चली जा रही थी।… जिससे भी मिलती-देखती, सबसे पहले वह खुद से उसकी तुलना करने बैठ जाती थी। रंग से शुरू करती और व्यवहार तक चली जाती। हर बार वह खुद को दूसरों से कमतर ही पाती थी। इससे उसका आत्मविश्वास और भी कम होता चला गया।


उसका साँवलापन उसकी चेतना पर फैला हुआ था। बाहर की तरफ जाने वाली उसकी राह अँधेरी थी, इसलिए वह भीतर की तरफ मुड़ गयी थी।
– इसी पुस्तक से


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Description

Saanwali Ladki Ki Diary by Amita Neerav


About the Author

अमिता नीरव
शिक्षा : एम.ए., एम. फिल., पी-एच.डी. (राजनीति विज्ञान), ‘ज्याँ पॉल सार्त्र और अल्बेयर कामू के अस्तित्ववादी विचारों का तुलनात्मक अध्ययन’ विषय पर पी-एच.डी. ।
पहला कहानी-संग्रह ‘तुम जो बहती नदी हो’ 2018
‘माधवी : आभूषण से छिटका स्वर्णकण’ 2021 में
में, पौराणिक पात्र माधवी पर आधारित वृहत् उपन्यास और प्रेमकथा पर आधारित उपन्यास ‘जब इश्क़ तुम्हें हो जाएगा’ 2022 में प्रकाशित ।
पुरस्कार : कहानी-संग्रह ‘तुम जो बहती नदी हो’ को
2020 का मध्य प्रदेश साहित्य सम्मेलन का प्रतिष्ठित वागीश्वरी पुरस्कार, उपन्यास ‘माधवी: आभूषण से छिटका स्वर्णकण’ को 2022 का मध्य प्रदेश राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, हिन्दी भवन न्यास, भोपाल का श्री शंकर शरणलाल बत्ता पौराणिक आख्यायिका पुरस्कार, कथाबिम्ब का कमलेश्वर स्मृति कथा पुरस्कार, वर्ल्ड डिग्निटी यूनिवर्सिटी का बेकन अवार्ड, पत्रकारिता के लिए विकास संवाद संविधान फेलोशिप 2022.
निवास : इन्दौर में
सम्प्रति : पूर्णकालिक रचनाकार और अंशकालिक
प्राध्यापक

Additional information

ISBN

9788119127665

Author

Amita Neerav

Binding

Paperback

Pages

304

Publisher

Setu Prakashan Samuh

Publication date

27 September 2023

Language

Hindi

2 reviews for Saanwali Ladki Ki Diary by Amita Neerav

  1. डॉ राजेश दीक्षित

    बहुत सरल लेकिन सरस भाषा -शैली में लिखा गया मार्मिक उपन्यास जो 80-90 के दशक के तात्कालिक समाज,मनोविज्ञान, मानसिकता
    और सांस्कृतिक वातावरण को दर्शाता है। भारतीय समाज में रूप-रंग के पूर्वाग्रहों का किसी व्यक्ति पर क्या प्रभाव पड़ता है और कैसे वह इससे जूझता है,इसका सहज मनोवैज्ञानिक चित्रण।

  2. Leena kumari

    अच्छी भाषा ।

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