Description
Saanwali Ladki Ki Diary by Amita Neerav
अमिता नीरव का नया उपन्यास साँवली लड़की की डायरी सुन्दरता के एक खूब प्रचलित मानक को प्रश्नांकित करता है। यों तो इस उपन्यास को सत्तर के दशक के उत्तरार्द्ध से लेकर नब्बे की शुरुआत से थोड़ा पहले तक के कालखण्ड में एक मध्यवर्गीय नौकरीपेशा परिवार के जीवन-अक्स की तरह भी पढ़ा जा सकता है जहाँ कोई खास उतार-चढ़ाव नहीं है; लेखिका ने छोटे- छोटे, सादे किस्सों के जरिये मध्यवर्गीय जीवन और संयुक्त परिवार का एक अक्स रचा है। इस आख्यान में व्यथा का कोई गाढ़ा रंग है तो वह है एक लड़की का साँवली होना । साँवली होने के कारण, कमतरी का अहसास हमेशा के लिए उसकी चेतना पर छा जाता है। इस तरह यह उपन्यास व्यक्तित्व विकास के सूत्रों की तलाश करते हुए, या उस तलाश के बहाने, समाज की भी पड़ताल है। यही उद्यम इस उपन्यास को अलग और खास बनाता है।
डॉ राजेश दीक्षित –
बहुत सरल लेकिन सरस भाषा -शैली में लिखा गया मार्मिक उपन्यास जो 80-90 के दशक के तात्कालिक समाज,मनोविज्ञान, मानसिकता
और सांस्कृतिक वातावरण को दर्शाता है। भारतीय समाज में रूप-रंग के पूर्वाग्रहों का किसी व्यक्ति पर क्या प्रभाव पड़ता है और कैसे वह इससे जूझता है,इसका सहज मनोवैज्ञानिक चित्रण।
Leena kumari –
अच्छी भाषा ।