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  • Bagalgeer By Santosh Dixit

    साम्प्रदायिकता का जहर घुलते जाने से सौहार्द किस तरह नष्ट होता है और एक समय भाईचारे की मिसाल जान पड़ते रिश्ते किस तरह शत्रुता में बदल जाते हैं, ‘बग़लगीर’ इसी की दास्तान है। संतोष दीक्षित ने इस उपन्यास में जहाँ साम्प्रदायिकता के विषैले प्रभाव को दिखया है वहीँ कई जगह सेकुलर राजनीति के पाखण्ड को भी उजागर किया है।

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  • Saanp by Ratankumar Sambharia

    Saanp by Ratankumar Sambharia

    `साँप` रत्नकुमार सांभरिया का उपन्यास है, जो हाशिए का जीवन जीने वाले खानाबदोश लोगों पर केन्द्रित है। इस कथानक पर यह हिन्दी का महत्त्वपूर्ण कार्य है। ये वो लोग हैं, जो आज भी स्थायी निवास और स्थायी रोज़गार के लिए जद्दोज़हद कर रहे हैं। इनमें कालबेलिया, करनट, मदारी आदि घुमन्तू समुदाय के लोग हैं।


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  • Mujhe Pahachaano By Sanjeev

    Mujhe Pahachaano By Sanjeev / संजीव : मुझे पहचानो 

    “साहित्य अकादमी पुरस्कार – 2023” से पुरस्कृत किताब

     

    “मुझे पहचानो” समाज के धार्मिक, सांसारिक और बौद्धिक पाखंड की परतें उधेड़ता है।
    सती होने की प्रथा प्राचीन काल से ही चली आ रही है। इस अमानवीय परंपरा के पीछे मूल कारक सांस्कृतिक गौरव है।

    सांस्कृतिक गौरव के साथ शुचिता का प्रश्न स्वतः उभरता है। इसमें समाहित है वर्ण की शुचिता, वर्ग की शुचिता, रक्त की शुचिता और लैंगिक शुचिता इत्यादि। इसी क्रम में पुरुषवादी यौन शुचिता की परिणति के रूप में सतीप्रथा समाज के सामने व्याप्त होती है।
    समाज के कुछ प्रबुद्ध लोगों के नजरिये से परे यह प्रथा सर्वमान्य रही है और वर्तमान समय में भी गौरवशाली संस्कृति के हिस्से के रूप में स्वीकार्य है। महत्त्वपूर्ण और निराशाजनक यह है कि स्त्रियाँ भी इसकी धार्मिक व सांस्कृतिक मान्यता को सहमति देती हैं। उपन्यास में एक महिला इस प्रथा को समर्थन देते हुए कहती है, जीवन में कभी-कभी तो ऐसे पुण्य का मौका देते हैं राम !
    उपन्यास मुझे पहचानो इसी तरह की अमानवीय धार्मिक मान्यताओं को खंडित करने और पाखंड में लिपटे झूठे गौरव से पर्दा हटाने का प्रयास करता है। इसी क्रम में धर्म और धन के घालमेल को भी उजागर करता है। इसके लिए सटीक भाषा, सहज प्रवाह और मार्मिक टिप्पणियों का प्रयोग उपन्यास में किया गया है जो इसकी प्रभावोत्पादकता का विस्तार करता है।


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  • Khela by Neelakshi Singh Paperback

    Khela by Neelakshi Singh


    “कच्चा तेल कभी अकेले नहीं आता। किसी के भी पास अकेले नहीं आता। किसी के पास दौलत लेकर आता है तो किसी के पास सत्ता लेकर। किसी के पास आतंक तो किसी के पास भय लेकर आता है वह।”

    नीलाक्षी सिंह के उपन्यास ‘खेला’ का यह अंश उनकी इस कृति को समझने का एक सूत्र देता है और उसके पाठ से गुजरते हुए हम पाते हैं कि कच्चा तेल अंततः दुनिया की शक्ति संरचना और लिप्सा के रूपक में बदल गया है। इस बिंदु पर यह उपन्यास दिखलाता है कि सत्ताएँ मूलतः अमानवीय, क्रूर तथा बर्बर होती हैं; वे सदैव हिंसा के मूर्त या अमूर्त स्वरूप को अपना हथियार बनाती हैं। सत्ता के ऐसे जाल के बीचोबीच और बगैर किसी शोर-शराबे के उसके खिलाफ भी खड़ी है एक स्त्री-वरा कुलकर्णी ।
     
    देश-विदेश के छोरों तक फैले इस आख्यान को नफरत और प्यार के विपर्ययों से रचा गया है। इसीलिए यहाँ भावनात्मक रूप से टूटे-बिखरे लोग हैं और उसके बावजूद जीवन को स्वीकार करके उठ खड़े होने वाले चरित्र भी हैं। युद्ध, आर्थिक होड़, आतंकवाद, धर्म के अंतर्संबंधों की सचेत पड़ताल है। ‘खेला’ तो इनका शिकार हुए मामूली, बेकसूर, निहत्थे मनुष्यों के दुख, बेबसी की कथा भी है यह उपन्यास ।
    ‘खेला’ को आख्यान की सिद्ध वर्णन कला और विरल सृजनात्मक भाषा के लिए भी पढ़ा जाना चाहिए। उक्त दोनों ही यहाँ जीवन, विचार, कला के सम्मिलित धागों से निर्मित हुए हैं और इनकी एक बेहतर पुनर्रचना तैयार कर सके हैं।
    संक्षेप में ‘खेला’ के बारे में कह सकते हैं: एक महत्त्वपूर्ण उपन्यास जिसमें अभिव्यक्त खुशियाँ, त्रासदियाँ असह्य, बेधक और बेचैन करने वाली हैं फिर भी पाठक उनकी गिरफ्त में बने रहना चाहेगा।
     
    – अखिलेश

    दफ्तर 16वें माले पर था और उसका कमरा त्रिभुज के जैसा था। कमरे की दो दीवारें शीशे की थीं और अगला हिस्सा गोल था। शीशे पर लगे हलके हरे रंग के परदे उस कमरे को कीवी केक के एक टुकड़े की झलक देते थे।
     
    यह शेयर बाजार के ट्रेंड्स का आकलन करने वाली कंपनी थी। वरा कुलकर्णी का काम खरीदारों के जोखिम का आकलन करना था। मोटे तौर से उसे भूतकाल में किसी कंपनी के शेयर मूल्यों में आए अंतर का अध्ययन करना था और भविष्य में उसके शेयरों के संभावित व्यवहार का रेखांकन करते जाना था। यह भय और लालच से नियंत्रित होने वाला बाजार था और उसे इन दोनों के बीच नियंत्रण साधे रहना था। इस तीन-दीवारी के भीतर वह मशीन थी और बाहर… और भी ज्यादा मशीन ।  – इसी पुस्तक से 

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