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  • Zubaida By Shobha Narayan – Paperback

    जुबैदा वरिष्ठ रचनाकार शोभा नारायण का हिन्दी में लिखा पहला उपन्यास है, इसके पहले उन्होंने अविस्मरणीय कहानियाँ भी लिखी हैं और अँग्रेज़ी में लिखी अपनी कविताओं के लिए एक ख़ास पहचान बना चुकी हैं। इस उपन्यास में दिल्ली की दो त्रासदियों के बीच की कथा है, जो एक स्त्री की वेदना और संघर्ष को केन्द्र में रखकर लिखी गयी है। सन् 1947 के विभाजन और हिन्दू-मुसलमान दंगे को लोग भूले नहीं थे कि 1984 का हिन्दू-सिख दंगा दिल्ली की छाती पर गहरा घाव दे गया। 1947 में जुबैदा 9 साल की थी, जब वह अपने परिवार से बिछड़ गयी और उसे चाँदनी चौक के एक नामी व्यापारी परिवार में शरण मिली, और नयी पहचान भी। वह जुबैदा से जमुना बन गयी या बना दी गयी और रास बिहारी हवेली का हिस्सा हो गयी। वहाँ उपेक्षाओं और प्रताड़नाओं के बीच उसे प्यार भी मिला और धीरे-धीरे उसने अपनी उस नियति को स्वीकार कर लिया लेकिन, 1984 में जब उसका जवान बेटा मारा गया तो वह पूरी तरह टूट गयी, उसकी शादी एक पंजाबी हिन्दू परिवार में हुई थी, लेकिन जैसा कि उस समय पंजाबी परिवारों में एक आम चलन था कि परिवार का एक बच्चा सिख धर्म अपना लेता था। उसी के अनुरूप और दादी की इच्छा की पूर्ति के लिए उसका बेटा सिख बना और उन्मादियों द्वारा मारा गया। इस घटना के बाद जुबैदा पूरी तरह टूट गयी। उपन्यास का कलेवर भले ही छोटा है, लेकिन संकेतार्थ बहुत बड़ा है। दो त्रासदियों के बीच 37 वर्षों के दौरान दिल्ली में होने वाले तमाम सारे परिवर्तनों पर लेखिका की नज़र है। इसमें रास बिहारी परिवार के अन्य सभी सदस्यों के दुख, प्रेम, संघर्ष आदि की कथा तो है ही, शरणार्थियों के आने के बाद दिल्ली की व्यापारिक संस्कृति में आए बदलावों के चलते परम्परागत रईसों के जीवन में उत्पन्न संकटों और अपने व्यवसाय में बदलाव लाने की मजबूरियों की भी चर्चा है। परिवार के चाँदनी चौक से निकलकर दक्षिण दिल्ली के सम्भ्रान्त इलाक़े में आ जाने की कहानी में, दिल्ली की जीवनशैली में आए बदलाव की कहानी भी अन्तर्निहित है। इस प्रकार इसमें एक स्त्री का दुख पूरे स्त्री समाज के दुख से और एक परिवार का संघर्ष पूरे परम्परागत व्यापारी समाज के संघर्ष से कुछ इस तरह संगुम्फित है कि यह उपन्यास एक पूरे कालखण्ड को व्यक्त करने में सफल होता है।

    – मदन कश्यप


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    221.00260.00
  • Zubaida By Shobha Narayan

    जुबैदा वरिष्ठ रचनाकार शोभा नारायण का हिन्दी में लिखा पहला उपन्यास है, इसके पहले उन्होंने अविस्मरणीय कहानियाँ भी लिखी हैं और अँग्रेज़ी में लिखी अपनी कविताओं के लिए एक ख़ास पहचान बना चुकी हैं। इस उपन्यास में दिल्ली की दो त्रासदियों के बीच की कथा है, जो एक स्त्री की वेदना और संघर्ष को केन्द्र में रखकर लिखी गयी है। सन् 1947 के विभाजन और हिन्दू-मुसलमान दंगे को लोग भूले नहीं थे कि 1984 का हिन्दू-सिख दंगा दिल्ली की छाती पर गहरा घाव दे गया। 1947 में जुबैदा 9 साल की थी, जब वह अपने परिवार से बिछड़ गयी और उसे चाँदनी चौक के एक नामी व्यापारी परिवार में शरण मिली, और नयी पहचान भी। वह जुबैदा से जमुना बन गयी या बना दी गयी और रास बिहारी हवेली का हिस्सा हो गयी। वहाँ उपेक्षाओं और प्रताड़नाओं के बीच उसे प्यार भी मिला और धीरे-धीरे उसने अपनी उस नियति को स्वीकार कर लिया लेकिन, 1984 में जब उसका जवान बेटा मारा गया तो वह पूरी तरह टूट गयी, उसकी शादी एक पंजाबी हिन्दू परिवार में हुई थी, लेकिन जैसा कि उस समय पंजाबी परिवारों में एक आम चलन था कि परिवार का एक बच्चा सिख धर्म अपना लेता था। उसी के अनुरूप और दादी की इच्छा की पूर्ति के लिए उसका बेटा सिख बना और उन्मादियों द्वारा मारा गया। इस घटना के बाद जुबैदा पूरी तरह टूट गयी। उपन्यास का कलेवर भले ही छोटा है, लेकिन संकेतार्थ बहुत बड़ा है। दो त्रासदियों के बीच 37 वर्षों के दौरान दिल्ली में होने वाले तमाम सारे परिवर्तनों पर लेखिका की नज़र है। इसमें रास बिहारी परिवार के अन्य सभी सदस्यों के दुख, प्रेम, संघर्ष आदि की कथा तो है ही, शरणार्थियों के आने के बाद दिल्ली की व्यापारिक संस्कृति में आए बदलावों के चलते परम्परागत रईसों के जीवन में उत्पन्न संकटों और अपने व्यवसाय में बदलाव लाने की मजबूरियों की भी चर्चा है। परिवार के चाँदनी चौक से निकलकर दक्षिण दिल्ली के सम्भ्रान्त इलाक़े में आ जाने की कहानी में, दिल्ली की जीवनशैली में आए बदलाव की कहानी भी अन्तर्निहित है। इस प्रकार इसमें एक स्त्री का दुख पूरे स्त्री समाज के दुख से और एक परिवार का संघर्ष पूरे परम्परागत व्यापारी समाज के संघर्ष से कुछ इस तरह संगुम्फित है कि यह उपन्यास एक पूरे कालखण्ड को व्यक्त करने में सफल होता है।

    – मदन कश्यप


     

    446.00525.00
  • O Ree Kathputli By Anju Sharma

    O Ri Kathputli – Anju Sharma
    ओ री कठपुतली अंजू शर्मा द्वारा लिखित उपन्यास है।

    ओ री कठपुतली अपने परिवेश और प्रभाव, कथावस्तु और रचाव, हर लिहाज से एक बेहतरीन उपन्यास है। महानगर के अभिजात और मध्यवर्ग से लेकर झुग्गी बस्ती तक के जीवन पर कहानियाँ और उपन्यास लिखे गये हैं लेकिन आय के इस उपन्यास के पात्र और परिवेश काफी विरल हैं। यह उपन्यास एक ऐसी बस्ती की कहानी है, जो लोक कलाकारों ने बसायी है। कठपुतली नचाने, मदारी का खेल दिखाने, दीवार पर पेंटिंग करने से लेकर नट, बाजीगर, तरह-तरह के करतब व तमाशे दिखाने वाले लोक कलाकार इस बस्ती में रहते हैं। यों कठपुतली कालोनी नाम की यह बस्ती भी, नागरिक सुविधाओं की किल्लत के कारण, स्लम जैसी ही है लेकिन तरह-तरह के लोक कलाकारों की रिहाइश इसे विशिष्ट बना देती है। एक पत्रिका के लिए कवर स्टोरी लिखने के क्रम में कथानायिका का यहाँ प्रवेश होता है और फिर पाठक के सामने एक ऐसी दुनिया परत-दर-परत खुलती जाती है जहाँ जिंदगी ज्यादा बहुरंगी है, ज्यादा दिलचस्प भी। पर उतनी ही दारुण भी, जितनी एक झुग्गी बस्ती में होती है। तरह-तरह के हुनरमन्द यहाँ रहते हैं और घूम-घूमकर देश की राजधानी में रोज कहीं न कहीं अपने हुनर का प्रदर्शन करते हैं लेकिन उनका हुनर उन्हें दो जून रोटी की गारण्टी नहीं दे पाता। यह उपन्यास उनके विस्थापन का भी दर्द समेटे हुए है। 

    298.00350.00
  • Rang Tera Mere Aage – Kailash Banwasi (Paperback)

    Rang Tera Mere Aage – Kailash Banwasi
    ‘रंग तेरा मेरे आगे’ – कैलाश बनवासी

    बेहिसाब मज़हबी नफ़रत और हिंसा के इस दौर में जब प्रेम जैसी कोमल भावनाओं को भी जिहाद में तब्दील कर दिया जा रहा है, तब कैलाश बनवासी के इस नये उपन्यास रंग तेरा मेरे आगे में आद्योपांत प्रवाहित अयाचित और अपरिभाषित प्रेम का व्यक्तित्व के पोर-पोर में प्रस्फुटित हो उठने का अहसास अत्यंत कोमल और मर्मस्पर्शी और अप्रत्याशित है।…


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    293.00325.00
  • Rang Tera Mere Aage – Kailash Banwasi

    Rang Tera Mere Aage – Kailash Banwasi
    ‘रंग तेरा मेरे आगे’ – कैलाश बनवासी

    “बेहिसाब मज़हबी नफ़रत और हिंसा के इस दौर में जब प्रेम जैसी कोमल भावनाओं को भी जिहाद में तब्दील कर दिया जा रहा है, तब कैलाश बनवासी के इस नये उपन्यास रंग तेरा मेरे आगे में आद्योपांत प्रवाहित अयाचित और अपरिभाषित प्रेम का व्यक्तित्व के पोर-पोर में प्रस्फुटित हो उठने का अहसास अत्यंत कोमल और मर्मस्पर्शी और अप्रत्याशित है।…”

    620.00775.00
  • Ek Khanjar Pani Men – Khalid Javed

    Ek Khanjar Pani Men – Khalid Javed

    `एक खंज़र पानी में`- ख़ालिद जावेद

    `एक खंज़र पानी में` ख़ालिद जावेद का उपन्यास है। इस उपन्यास में उर्दू के प्रमाणिक शब्दकोश, व्याकरण,… वग़ैरा को अमान्य तो नहीं किया गया है, मगर हर जगह बहुत सख्ती से पाबन्द भी नहीं किया गया है। इसलिए कि ये किताब दरअस्ल बहते हुए वक़्त और पानी की किताब है।

    179.00199.00
  • Tyagpatra – Jainendra Kumar

    Tyagpatra – Jainendra Kumar
    `त्यागपत्र` – जैनेंद्र कुमार

    हिंदी के अनन्य रचनाकार जैनेंद्र कुमार की तीसरी औपन्यासिक कृति `त्यागपत्र` है। इसका प्रकाशन सन 1937 में हुआ। इसका अनुवाद अनेक प्रादेशिक तथा विदेशी भाषाओं में हो चुका है। हिंदी के भी सर्वश्रेष्ठ लघु उपन्यासों में मृणाल नामक युवती के जीवन पर आधारित यह मार्मिक एवं मनोवैज्ञानिक उपन्यास है।

     

    75.0085.00
  • Deh Kutharia By Jaya Jadwani (Hardcover)

    Deh Kutharia By Jaya Jadwani – Hardcover

    ट्रांसजेण्डरों की ज़िंदगी इतनी ही नहीं है, जितनी हम देखते हैं या जितना अनुमानतःसमझते हैं। देह कुठरिया उपन्यास हमें ऐसे मानव-समूहों से जोड़ता है जो सामाजिक उपेक्षा के शिकार रहे हैं। जो मनुष्य होकर भी मनुष्य नहीं हैं।

    595.00700.00