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  • Kal ki Baat : Gandhaar by Prachand Praveer

    लघुकथा संग्रह ‘कल की बात’ एक विशिष्ट विधा में है, जिसके हर अंक में ठीक पिछले दिन की घटनाओं का मनोरंजक वर्णन है। आपबीती शैली में लिखी गयी ये कहानियाँ कभी गल्प, कभी हास्य, कभी उदासी को छूती हुयी आज के दौर की साक्षी है। 

    344.00382.00
  • Kakad Kissa By Pradeep Jilwane

    निमाड़ी लोकबोली का स्थानीय शंड काकड़ का अर्थ है—गाँव की सरहद। इस तरह का काकड़ किस्सा गाँव और उसकी सरहद के इर्द-गिर्द बुना गया वह बयान है

    479.00599.00
  • Asthan By Rajnarayan Bohre

    अस्थान ठडेसुरी बाबा का, सत्संग मण्डली का और प्रवचन कहने-सुनने वालों का। साधुओं के जीवन पर राजनारायण की खोज उनके लेखन की शुरुआत से ही रही है, क्योंकि उनका सूक्ष्म अध्ययन-अवलोकन किये बिना असली व नकली साधुओं पर, अस्थान बनाने की परम्परा और प्रकृति पर ऐसा असरदार नहीं लिख सकते थे।

    468.00550.00
  • Vyabhichari By Raju Sharma

    ‘व्यभिचारी’ फुललेन्थ नॉवेल तो नहीं हैं, न लम्बी कहानी ही हैं। अपनी सुविधा केलिए हम इन्हें उपन्यासिका कह रहे हैं। पर इन दो पुस्तकों में समाहित पाँच रचनाएँ विधा की संरचनाओं के सन्दर्भ में हमें भ्रमित करती हैं।

    764.00899.00
  • Notice 2 By Raju Sharma

    ‘नोटिस-2’ राजू शर्मा जीवन से गहरी आसक्ति और गम्भीर राजनीतिक समझ से निॢमत हैं,जीवन की डिटेलिंग इस आसक्ति और समझ को ऊध्र्व और ऊर्जावान बनाती है


    एक कथाकार के रूप में राजू शर्मा ने लम्बी यात्रा पूरी की है। अब तक उनके चार उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं। चार कहानी संग्रह भी। ‘नोटिस-2’ और ‘व्यभिचारी’ उनके फुललेन्थ नॉवेल तो नहीं हैं, न लम्बी कहानी ही हैं। अपनी सुविधा के लिए हम इन्हें उपन्यासिका कह रहे हैं। पर इन दो पुस्तकों में समाहित पाँच रचनाएँ विधा की संरचनाओं के सन्दर्भ में हमें भ्रमित करती हैं। भ्रम का एक बड़ा कारण यह है कि नोटिस नाम से ही इनकी एक रचना प्रकाशित हुई थी, जो कहानी के रूप में प्रशंसित और चर्चित रही है। वस्तुतः ये रचनाएँ अपने औपन्यासिक विजन, एपेक्लिटी (महाकाव्यात्मक अन्तर्वस्तु) और आकार के अन्तर्संघात, साथ ही अतिक्रमण, से निर्मित हुई हैं। अपने इन गुणों के कारण ये रचनाएँ पाठकों को आमन्त्रित-आकर्षित करेंगी, तो चुनौती भी प्रस्तुत करेंगी। इन दो पुस्तकों में सम्मिलित पाँच उपन्यासिकाएँ हैं- नोटिस 2, हमसैनिक फार्म्स की बदौलत, चुनाव के समक्षणिक सितम; व्यभिचारी, लवर्स।

    ये उपन्यासिकाएँ जीवन से गहरी आसक्ति और गम्भीर राजनीतिक समझ से निर्मित हैं। जीवन की डिटेलिंग इस आसक्ति और समझ को ऊर्ध्व और ऊर्जावान बनाती है।

    आशा है पाठक इन रचनाओं का स्वागत करेंगे।


    कभी उसे क्रोध होता है… जितना उसकी प्रौढ़ता जनित कर पाती है। या सहन कर सकती है। क्या वह कभी किसी आइडियोलॉजी की पनाह में खिंचेगा? आदर्श और यूटोपिया का कोई मजमून… मज़हब, भक्ति के चुंबक ?… इधर के झूठ, हिंसा, बेरहमी, हत्या और नफ़रत उसे नित्य दिखाई देंगे…। वह किस तरह उनके साथ, उनके बीच अपनी जगह बनाएगा, उन गिनती के उसूलों के सहारे जिनका साथ उसने बचपन से नहीं छोड़ा। हम कयास ही लगा सकते हैं। पर इसका पॉइंट भी क्या बनता है ? ये कथा आगे का नहीं जान सकती। पर बहुतेरे हैं जो समझते हैं वे जानते हैं। सिर्फ इतना ही नहीं कि अकेले उनकी या एक की तक़दीर में क्या बदा है। उन्हें तो 125 करोड़ के देश के भविष्य और भूत का सारा कुछ पता है।

    ये तो नोटिस 3 ही बता सकेगा कि समझावन के साथ आगे के सालों में क्या हुआ। अगर उसका वक्त कभी आया तो…! और आप, हम, समाज सुनने या पढ़ने की स्थिति में तब हुए तो !

    – इसी पुस्तक से


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    764.00899.00
  • Unnisavin Baarish By Sharmila Jalan

    कथाकार शर्मिला जालान का लीक से हटा हुआ उपन्यास है जिसे काव्यात्मक आस्वाद के साथ पढ़ा जा सकता है। चाहें तो कह सकते हैं कि यह कविता में उपन्यास है या उपन्यास में कविता। कई बार पंक्तियाँ इस तरह आती और लिखी जाती हैं जैसे वे कविता के अंश हों। उपन्यास के भीतर एक पात्र की साहित्यिक रुचि के हवाले से कई शीर्ष कवियों के काव्यांशों का बाकायदा इस्तेमाल भी किया गया है मन:स्थितियों को उभारने और जीवन-स्थितियों का बयान करने के लिए। लेकिन ‘उन्नीसवीं बारिश’ कविताई नहीं है, है कथाकृति ही, जिसके केन्द्र में एक युवती है।

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    467.00549.00
  • Wah Saal Bayalis Tha By Rashmi Bhardwaj

    Wah Saal Bayalis Tha By Rashmi Bhardwaj (Hardcover)

    वह साल बयालीस था’ एक तहदार उपन्यास है जिसमें रूप और रूद्र के दारुण प्रेम के अलावा भी बहुत कुछ है। उपन्यास सन् बयालीस के कालखण्ड को सजीव करता है जहाँ आज़ादी के संघर्ष के नेपथ्य के दो प्रेमियों की धड़कनें भी शामिल हैं। आज़ादी की तड़प, साम्प्रदायिक विभाजन, प्रेम के बदलते स्वरूप और युवा पीढ़ी के लिए उसके बदलते मयाने।

     

    473.00525.00
  • Thakuraeen Saradasundari by Kaberi Raychoudhari

    माँ नहीं, आठ वर्ष की शाकम्भरी से सारदासुंदरी में रूपांतरित होने वाली एक सम्पूर्ण नारी की प्राप्ति-अप्राप्ति, उसका जीवनबोध, यौनता बोध, संस्कृति बोध, उसकी पीड़ा, इस उपन्यास के पन्नों पर उभारी गयी हैं।

    630.00700.00
  • Nadisht By Manoj Borgavakar

    Nadisht By Manoj Borgavakar
    Translation: Gorakh Thorat

    467.00549.00
  • Pallipaar By Sheela Rohekar

    शीला रोहेकर के इस उपन्यास में कई तरह के दुखों का साक्षात्कार है-अकेले होने का, महानगर में अजनबी होने का, रिश्तों के टूटने और छूटने का, प्रेम-संबंधों में आकर्षक के बाद तनाव, कड़वाहट, ईर्ष्या, उकताहट और छले जाने का।

    446.00525.00
  • Samay Ki Ret Par By Jyotish Joshi

    ‘समय की रेत पर’ ज्योतिष जोशी का उपन्यास है।

    424.00499.00
  • Bagalgeer By Santosh Dixit

    साम्प्रदायिकता का जहर घुलते जाने से सौहार्द किस तरह नष्ट होता है और एक समय भाईचारे की मिसाल जान पड़ते रिश्ते किस तरह शत्रुता में बदल जाते हैं, ‘बग़लगीर’ इसी की दास्तान है। संतोष दीक्षित ने इस उपन्यास में जहाँ साम्प्रदायिकता के विषैले प्रभाव को दिखया है वहीँ कई जगह सेकुलर राजनीति के पाखण्ड को भी उजागर किया है।

    553.00650.00